वर्ष का इकत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार
सब मृतविश्वासियों का स्मरणोत्सव
पहला मिस्सा
पहला पाठ : योब का ग्रन्थ 19:1,23-27
1) अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहाः
23 (23-24) ओह! कौन मेरे ये शब्द लिखेगा? कौन इन्हें लोहे की छेनी और शीशे से किसी स्मारक पर अंकित करेगा? इन्हें सदा के लिए चट्टान पर उत्कीर्ण करेगा?
25) मैं यह जानता हूँ कि मेरा रक्षक जीवित हैं और वह अंत में पृथ्वी पर खड़ा हो जायेगा।
26) जब मैं जागूँगा, मैं खड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इसी शरीर में ईश्वर के दर्शन करूँगा।
27) मैं स्वयं उसके दर्शन करूँगा, मेरी ही आँखे उसे देखेंगी। मेरा हृदय उसके दर्शनों के लिए तरसता है।
अथवा -पहला पाठ : रोमियों 5:5-11
5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।
6) हम निस्सहाय ही थे, जब मसीह निर्धारित समय पर विधर्मियों के लिए मर गये।
7) धार्मिक मनुष्य के लिए शायद ही कोई अपने प्राण अर्पित करे। फिर भी हो सकता है कि भले मनुष्य के लिए कोई मरने को तैयार हो जाये,
8) किन्तु हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया है।
9) जब हम मसीह के रक्त के कारण धार्मिक माने गये, तो हम निश्चिय ही मसीह द्वारा ईश्वर के दण्ड से बच जायेंगे।
10) हम शत्रु ही थे, जब ईश्वर के साथ हमारा मेल उसके पुत्र की मृत्यु द्वारा हो गया था और उसके साथ मेल हो जाने के बाद उसके पुत्र के जीवन द्वारा निश्चय ही हमारा उद्धार होगा।
11) इतना ही नहीं, अब तो हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से हमारा मेल हो गया है; इसलिए हम उन्हीं के द्वारा ईश्वर पर भरोसा रख कर आनन्दित हैं।
सुसमाचार : योहन 6:37-40
37) पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आयेंगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा ;
38) क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।
39) जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।
40) मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को पहचान कर उस में विश्वास करता है, उसे अनन्द जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।”
दूसरा मिस्सा
पहला पाठ : इसायाह 25:6-9
6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।
7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,
8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।
9) उस दिन लोग कहेंगे – “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“
अथवा -पहला पाठ : रोमियों 8:14-23
14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।
15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, “अब्बा, हे पिता!
16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।
17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।
18) मैं समझता हूँ कि हम में जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है;
19) क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे।
20) यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है-अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है- किन्तु यह आशा भी बनी रही
21) कि वह असारता की दासता से मुक्त हो जायेगी और ईश्वर की सन्तान की महिमामय स्वतन्त्रता की सहभागी बनेगी।
22) हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं।
23) हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।
सुसमाचार : मत्ती 25:31-46
31) “जब मानव पुत्र सब स्वर्गदुतों के साथ अपनी महिमा-सहित आयेगा, तो वह अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा
32) और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा।
33) वह भेड़ों को अपने दायें और बकरियों को अपने बायें खड़ा कर देखा।
34) “तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, ’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है;
35) क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया;
36) मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।’
37) इस पर धर्मी उन कहेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया?
38) हमने कब आपको परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया ?
39) कब आप को बीमार या बन्दी देखा और आप से मिलने आये?”
40) राजा उन्हें यह उत्तरदेंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’।
41) “तब वे अपने बायें के लोगों से कहेंगे, ’शापितों! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है;
42) क्योंकि मैं भूखा था और तुम लोगों ने मुझे नहीं खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे नहीं पिलाया;
43) मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ नहीं ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे नहीं पहनाया; मैं बीमार और बन्दी था और तुम मुझ से नहीं मिलने आये’।
44) इस पर वे भी उन से पूछेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा, प्यासा, परदेशी, नंगा, बीमार या बन्दी देखा और आपकी सेवा नहीं की?”
45) तब राजा उन्हें उत्तर देंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – जो कुछ तुमने मेरे छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के लिए नहीं किया, वह तुमने मेरे लिए भी नहीं किया’।
46) और ये अनन्त दण्ड भोगने जायेंगे, परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”
तीसरा मिस्सा
पहला पाठ : प्रज्ञा ग्रन्थ 3:1-9
1) धर्मियों की आत्माएँ ईश्वर के हाथ में हैं। उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होगा।
2) मूर्ख लोगों को लगा कि वे मर गये हैं। वे उनका संसार से उठ जाना घोर विपत्ति मानते थे।
3) और यह समझते थे कि हमारे बीच से चले जाने के बाद उनका सर्वनाश हो गया है; किन्तु धर्मियों को शान्ति का निवास मिला है।
4) मनुष्यों को लगा कि विधर्मियों को दण्ड मिल रहा है, किन्तु वे अमरत्व की आशा करते थे।
5 थोड़ा कष्ट सहने के बाद उन्हें महान् पुरस्कार दिया जायेगा। ईश्वर ने उनकी परीक्षा ली और उन्हें अपने योग्य पाया है।
6) ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परखा और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया।
7) ईश्वर के आगमन के दिन वे ठूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे।
8) वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा।
9) जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे।
अथवा -पहला पाठ : प्रकाशना 21:1-7
1) तब मैंने एक नया आकाश और एक नयी पृथ्वी देखी। पुराना आकाश तथा पुरानी पृथ्वी, दोनों लुप्त हो गये थे और समुद्र भी नहीं रह गया था।
2) मैंने पवित्र नगर, नवीन येरुसालेम को ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतरते देखा। वह अपने दुल्हे के लिए सजायी हुई दुल्हन की तरह अलंकृत था।
3) तब मुझे सिंहासन से एक गम्भीर वाणी यह कहते सुनाई पड़ी, “देखो, यह है मनुष्यों के बीच ईश्वर का निवास! वह उनके बीच निवास करेगा। वे उसकी प्रजा होंगे और ईश्वर स्वयं उनके बीच रह कर उनका अपना ईश्वर होगा।
4) वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा। इसके बाद न मृत्यु रहेगी, न शोक, न विलाप और न दुःख, क्योंकि पुरानी बातें बीत चुकी हैं।”
5) तब सिंहासन पर विराजमान व्यक्ति ने कहा, “मैं सब कुछ नया बना देता हूँ”।
6) इसके बाद उसने कहा, “ये बातें लिखो, क्योंकि ये विश्वासनीय और सत्य हैं”। उसने मुझ से कहा, “समाप्त हो गया है। आल्फा और ओमेगा, आदि और अन्त, मैं हूँ। मैं प्यासे को संजीवन जल के स्त्रोत से मुफ़्त में पिलाउँगा।
7) यह विजयी की विरासत है। मैं उसका ईश्वर होउँगा और वह मेरा पुत्र होगा।
सुसमाचार : मत्ती 5:1-12
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
(3) “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।
(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
(12) खुश हो और आनन्द मनाओ – स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।