मक्काबियों का पहला ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • पवित्र बाईबल
अध्याय 15
1. राजा देमेत्रियस के पुत्र अन्तियोख ने समुद्र के द्वीपों से यहूदियों के याजक और नेता सिमोन तथा समस्त राष्ट्र के नाम एक पत्र लिखा।
2. उस में यह लिखा था: “प्रधानयाजक और नेता सिमोन तथा समस्त यहूदी राष्ट्र को राजा अन्तियोख का नमस्कार।
3. कुछ दुष्ट लोगों ने हमारे पूर्वजों के राज्य पर अधिकार कर लिया है, किन्तु मैं उस राज्य को पुनः अपने हाथ में लेने और उसे पहले की तरह प्रतिष्ठित बनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। इसलिए मैंने बड़ी संख्या में सैनिक इकट्ठे कर लिये हैं और युद्ध-नौकाएँ तैयार कीं।
4. अब मैं देश की भूमि पर उतर कर उन लोगों से बदला चुकाना चाहता हूँ जिन्होंने हमारे देश का विनाश किया है और मेरे राज्य के अनेकानेक नगरों को उजाड़ डाला है।
5. मेरे पहले के राजाओं ने आप को कर-सम्बन्धी जो छूट और अन्य विशेषाधिकार प्रदान किये हैं, वे सब मुझ भी स्वीकार्य हैं।
6. मैं आप को देश में प्रचलित सिक्के ढालने का अधिकार देता हूँ।
7. येरुसालेम और मन्दिर स्वतन्त्र होंगे। आपने जो अस्त्र-शस्त्र जमा किये हैं, जो गढ़ बनवाये हैं और जो आपके अधिकार में है, वे सब आपके हाथ में रहेंगे।
8. आप पर राजकोष का जो ऋण इस समय है या बाद में होगा, उस से आप अब और सदा के लिए मुक्त किये जाते हैं।
9. हम जैसे ही अपने राज्य पर फिर अधिकार कर लेंगे, हम आपका, आपके राष्ट्र और आपके मन्दिर का इतना सम्मान करेंगे कि आप लोगों की कीर्ति संसार के सीमान्तों तक फैल जायेगी।”
10. अन्तियोख ने एक सौ चौहत्तरवें वर्ष अपने पूर्वजों के देश के लिए प्रस्थान किया। सारी सेना आ कर उस से इस तरह मिल गयी कि त्रीफ़ोन के पास थाडे़ ही आदमी बच गये।
11. अन्तियोख ने उसका पीछा किया और वह भागते-भागते समुद्रतटवर्ती दोरा नामक नगर पहुँचा।
12. उसने देखा कि उस पर विपत्ति टूटने ही वाली हैं। उसकी समस्त सेना उस से विमुख हो गयी
13. और उधर बाहर हज़ार पैदल सैनिक और आठ हज़ार घुड़सवार ले कर अन्तियोख दोरा नगर के पास पहुँचा।
14. उसने नगर को घेर लिया और समुद्र की ओर से नावें पास आयीं। इस तरह उसने थल और समुद्र, दोनों ओर से नगर पर आक्रमण किया। न कोई व्यक्ति बाहर जा सकता था और न कोई अन्दर आ सकता था।
15. नूमेनियस और उसके साथी विभिन्न राजाओं और देशों के नाम पत्र ले कर रोम से पहुँचे। पत्र की प्रतिलिपि इस प्रकार है:
16. “राजा पतोलेमेउस को मुख्य न्यायाधीश लुसियस का नमस्कार। हमारे सन्धिबद्ध यहूदी मित्रों के यहाँ से हमारे पास दूत आये हैं, जिससे वे हमारे साथ पहले की तरह मित्रता और सन्धि का सम्बन्ध स्थापित करें।
17. वे प्रधानयाजक सिमोन और यहूदी लोगों की ओर से भेजे गये थे।
18. वे एक ढाल भी लाये जिसका मूल्य पाँच सौ सत्तर किलो सोना है।
19. इसलिए हमें यह उचित जान पड़ा कि हम विभिन्न राजाओं और देशों के नाम इस आशय का पत्र लिखें कि वे न तो उन्हें हानि पहुँचायें, न उन पर और न उनके नगरों या क्षेत्रों पर आक्रमण करें और न उन लोगों की सहायता करें, जो उन से युद्ध करते हैं।
20. हमने उनकी भेजी हुई ढाल स्वीकार करने का निश्चय किया।
21. यदि उनके देश से कुछ दुष्ट लोग आपके यहाँ भाग कर आये हों, तो उन्हें प्रधानयाजक सिमोन के हवाले कर दें, जिससे वह अपने कानून के अनुसार उन्हें दण्ड दें।”
22. उसने राजा देमेत्रियस, अत्तालस, अर्याराथेस और अर्साकेस को भी यही लिखा
23. तथा इन देशों को भी-संप्सा में, स्पार्ता, देलस, मिन्दस, सिक्योन, कारिए, सामस, पंफ़िलिया, लीसिया, हलीकरनास्सस, रोदस, फ़सेलिया, कोस, सीदे, अरादस, गोर्तिना, कनीदस, साइप्रस और कुरेने को।
24. इसकी एक प्रतिलिपि प्रधानायाजक सिमोन को भी दी गयी।
25. उधर राजा अन्तियोख देश के निकट पड़ाव डाल कर अपनी सेना से और युद्ध यन्त्रों से उस पर आक्रमण करता रहा। उसने त्रीफ़ोन को इस तरह घेर लिया कि न कोई व्यक्ति बाहर जा सकता था और न कोई अन्दर आ सकता था।
26. सिमोन ने अन्तियोख की सहायता के लिए दो हज़ार चुने हुए आदमी भेजे और उनके साथ चाँदी, सोना और विपुल युद्ध-सामग्री।
27. किन्तु उसने यह सब अस्वीकार किया। यही नहीं, उसने सिमोन के साथ जो भी समझौते पहले किये थे, सब को रद्द कर दिया और सिमोन के प्रति उसका रुख़ बदल गया।
28. उसने अपने एक मित्र अथेनोबियस के द्वारा सिमोन को यह कहला भेजा: “तुम लोगों ने मेरे राज्य के याफ़ा, गेजे़र और येरुसालेम के गढ़ पर अधिकार कर लिया।
29. तुमने उसके क्षेत्र उजाड़े, देश को भारी क्षति पहुँचायी है और मेरे राज्य के अनेक स्थानों पर अधिकार कर लिया है।
30. अब तुम वे नगर लौटा दो, जिन्हें तुमने छीना और उन स्थानों का कर दे दो, जो यहूदिया की सीमा के बाहर हैं, किन्तु जिन्हें तुमने अपने देश में मिला लिया है।
31. नहीं तो तुम उनके बदले पाँच सौ मन चाँदी दो और इसके अतिरिक्त अपने द्वारा किये हुए विनाश की क्षतिपूर्ति और नगरों के कर के रूप में और पाँच सौ मन चाँदी। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो हम आ कर तुम से युद्ध करेंगे।”
32. राजा का मित्र अथेनोबियस येरुसालेम आया। उसे सिमोन की महिमा, उसकी मेज़ पर चाँदी-सोने के बरतन और उसका भव्य वैभव देख कर आश्चर्य हुआ। उसने उसे राजा का सन्देश सुनाया।
33. सिमोन ने उसे उत्तर दिया, “हमने न तो दूसरे की भूमि पर अधिकार किया और न दूसरे की सम्पत्ति छीनी। वह तो हमारे पूर्वजों का दायभाग है। हमारे शत्रुओं ने इस पर अन्याय से कुछ समय पहले अधिकार कर लिया था।
34. जब परिस्थिति हमारे अनुकूल हुई, तो हमने फिर अपने पूर्वजों का वह दायभाग वापस ले लिया।
35. आप हम से जो याफ़ा और गेजे़र माँगते हैं, इसके विषय में हमारा उत्तर यह है कि वे नगर हमारी जनता और हमारे देश को बड़ी हानि पहुँचाते थे। हम उनके लिए एक सौ मन देंगे।”
36. अथेनोबियस ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह बड़े क्रोध में राजा के पास लौटा और उसने उसे सिमोन का उत्तर सुनाया। उसने सिमोन के वैभव और उन सब बातों का वर्णन किया, जिन्हें उसने उसके यहाँ देखा था। इस पर राजा के क्रोध की सीमा न रही।
37. त्रीफ़ोन नाव पर चढ़ कर अर्थोसिया भाग निकाला।
38. तब राजा ने कन्देबैयस को समुद्रतटवर्ती प्रदेश का सेनापति नियुक्त किया और उसे पैदल सैनिक और घुड़सवार दिये।
39. उसने उसे आज्ञा दी कि वह यहूदिया की सीमा पर पड़ाव डाले, केद्रोन नगर का पुनर्निर्माण करे, उसके फाटक मज़बूत करे और जनता पर छापा मारता रहे। इसके बाद राजा स्वयं त्रीफ़ोन का पीछा करने चला।
40. इधर कन्देबैयस यमनिया आ कर वहा से लोगों को सताने लगा, यहूदिया पर छापा मारता रहा और लोगों को बन्दी बनाता और उनका वध करता रहा।
41. उसने केद्रोन का पुनर्निर्माण किया और वहाँ घुड़सवार और पैदल सैनिक रखे, जिससे वे, जैसी कि राजा ने आज्ञा दी थी, यूदा के मार्गों पर छापा मारते रहें।