मक्काबियों का पहला ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • पवित्र बाईबल
अध्याय 9
1. इसी बीच देमेत्रियस ने सुना कि निकानोर और उसकी सेना युद्ध में हार गयी है। तब उसने बक्खीदेस और अलकिमस को फिर यूदा में भेजने का निश्चय किया और उसने उन्हें सेना का पार्श्व-भाग दिया।
2. वे गलीलिया हो कर चल पड़े और अरबेला के मैसालोथ पहुँचे। उन्होंने उसे अधिकार में कर लिया और बहुत लोगों का वध किया।
3. वे एक सौ बावनवें वर्ष के पहले महीने येरुसालेम के सामने आ पहुँचे।
4. वहाँ से वे बीस हज़ार पैदल सैनिक और दो हज़ार घुड़सवार ले कर बरेआ की ओर आगे बढे़।
5. इधर तीन हज़ार चुने हुए योद्धाओं को ले कर यूदाह एलासा के पास पड़ाव डाले पड़ा था।
6. जब उसके आदमियों ने एक विशाल सेना को आते देखा-सचमुच वह सेना बहुत बड़ी थी-तो वे बहुत अधिक डर गये। बहुत-से लोग पड़ाव से भाग गये। उन में केवल आठ सौ रह गये।
7. जब यूदाह ने देखा कि उसकी सेना भाग रही है और लड़ाई एकदम सिर पर आ गयी है, तो उसका साहस टूट गया; क्योंकि अब लोगों को एकत्रित करने का समय भी नहीं था।
8. उसने निराशा में उन शेष लोगों से कहा, “चलो, हम अपने विरोधियों से लड़ने चलें। सम्भव है, हम उनका सामना कर सकें।”
9. लेकिन वे उस से असहमति प्रकट करते हुए कहने लगे, “नहीं, हम असमर्थ हैं। इस बार हम अपने प्राणों की रक्षा की ही सोच सकते हैं। हम अपने भाइयों को ले कर शत्रुओं से लड़ने फिर लौटेंगे। हमारी संख्या बहुत थोड़ी रह गयी है।”
10. यूदाह ने कहा, “ऐसा नहीं होगा! हम उन्हें पीठ क्यों दिखायें? मरना ही है, तो हम अपने भाइयों के लिए लड़ते हुए मरें। हम अपने सम्मान पर आँच क्यों आने दें?”
11. उस समय शत्रुओं की सेना उनका मुक़ाबला करने के लिए पड़ाव से बाहर आ रही थी। उनके घुड़सवार दो दलों में विभक्त थे, गोफन चलाने वाले और तीर चलाने वाले लोग सेना में आगे-आगे चल रहे थे। सर्वोत्तम सैनिक सब से आगे थे। बक्खीदेस दाहिनी ओर था।
12. सैनिक दल तुरहियाँ बजाते हुए दोनों ओर से आगे बढ़ रहे थे। इधर यूदाह के लोगों ने भी तुरहियाँ बजायीं। सेनाओं के कोलाहल से पृथ्वी हिल उठी।
13. लड़ाई सबेरे से शाम तक चलती रही।
14. जब यूदाह ने देखा कि बक्खीदेस और उसकी सेना का प्रधान अंग दाहिनी ओर है, तो उसने अपने सब साहसी लोगों को अपने पास बुलाया।
15. और उन्होंने उस दाहिने अंग को पीस डाला। वे उन्हें अज़ोत की पहाड़ियों तक खदेड़ ले गये।
16. जब बायीं ओर के सैनिकों ने देखा कि दाहिना अंग पिस रहा है, तो वे मुड़ कर यूदाह और उसके आदमियों का पीछा करने गये।
17. घमासान युद्ध हुआ और दोनों ओर से बहुत-से लोग मारे गये।
18. यूदाह भी खेत रहा। शेष लोग भाग खड़े हुए।
19. तब योनातान और सिमोन अपने भाई यूदाह को उठा कर ले गये और उन्होंने उसे मोदीन के अपने पूर्वजों के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया।
20. उन्होंने उसके लिए शोक मनाया और इस्राएल भर के लोगों ने उसके लिए विलाप किया। वे उसके लिए कई दिनों तक शोक मनाते और कहते रहे,
21. “यह वीर योद्धा कैसे मारा गया? यही तो इस्राएल का उद्धारक था!”
22. यूदाह का शेष इतिहास, उसकी लड़ाइयाँ और उसके द्वारा किये गये वीरता के कार्य तथा उसकी महत्ता-वह सब लिखित नहीं है, क्योंकि वह अपार है।
23. यूदाह की मृत्यु के बाद विधर्मी इस्राएल भर में फिर दिखाई पड़ने लगे।
24. उन दिनों घोर अकाल पड़ा और लोगों ने उनका साथ दिया।
25. बक्खीदेस ने विधर्मियों को चुन-चुन कर उन्हें देश का अधिकारी बनाया।
26. वे यूदाह के समर्थकों को ढूंँढ़-ढूंँढ़ कर बक्खीदेस के पास ले जाते और बक्खीदेस उन्हें दण्ड देता और उनकी हँसी उड़ाता था।
27. इस तरह इस्राएल की स्थिति ऐसी दुःखद हो गयी, जैसी वह तब से कभी नहीं हुई थी, जब से उनके यहाँ कोई नबी नहीं था।
28. इसलिए यूदाह के सभी मित्रों ने आ कर योनातान से कहा,
29. “जब से आपके भाई यूदाह की मृत्यु हुई, उनके समान ऐसा कोई नहीं रहा, जो शत्रुओं के विरुद्ध, बक्खीदेस और हमारी जाति के विरोधियों से युद्ध कर सके।
30. इसलिए आज हम आपका चुनाव करते है, जिससे आप यूदाह के स्थान पर हमारे नेता बनें और हमारी ओर से युद्ध करें।”
31. योनातान ने उसी समय नेता बनना स्वीकार कर लिया और अपने भाई यूदाह का पद ग्रहण किया।
32. जैसे ही बक्खीदेस को इस बात का पता चला, वह उसकी हत्या करने की सोचने लगा,
33. जब योनातान, उसके भाई सिमोन और उनके सभी साथियों को यह बात मालूम हुई, तो वे तकोआ के उजाड़खण्ड की ओर भाग गये और उन्होंने अस्फ़ारकुण्ड के पास पड़ाव डाला।
34. बक्खीदेस को विश्राम के दिन इसका पता चल गया और वह अपनी सारी सेना ले कर यर्दन पार कर गया।
35. इधर योनातान ने अपने एक भाई को युद्ध की सामग्री के साथ अपने मित्र नबातैयी लोगों के पास भेजा और उन से निवेदन किया कि वे वह विपुल सामग्री अपने पास सुरक्षित रखें।
36. किन्तु मेदेबा से यमब्री लोगों ने छापा मार कर योहन को गिरफ़्तार किया और उसका सारा सामान ले लिया। इसके बाद वे अपनी लूट के साथ लौटे।
37. योनातान और उसके भाई सिमोन को कुछ ही दिनों बाद मालूम हुआ कि यमब्री लोगों के यहाँ भारी धूमधाम से विवाह हो रहा है और प्रतिष्ठित सामन्त की कन्या नदाबाय से विशाल बारात के साथ लायी जा रही है।
38. उन्हें अपने भाई योहन की हत्या की याद आयी और उन्होंने जा कर अपने को पहाड़ियों में पीछे छिपा लिया।
39. जब उन्होंने आंँखें उठायीं, तो यह देखा कि भारी धूमधाम से बड़ी भीड़ चली आ रही है। वर, उसके मित्र और उसके भाई बाजों, संगीतकारों और बहुत-से अस्त्र-शस्त्रों के साथ उनकी ओर आ रहे हैं।
40. तब वे ओट से उन पर टूट पड़े और उन को मार गिराया। बहुत लोग मारे गये और शेष पहाड़ियों पर भाग खड़े हुए। उन्होंने उनका सारा सामान लूट लिया।
41. विवाह शोक में और उनका वाद्य-संगीत विलाप में बदल गया।
42. इस तरह उन्होंने अपने भाई की हत्या का बदला लिया और वे फिर यर्दन के निकट की दलदल भूमि में लौट आये।
43. बक्खीदेस को इसका पता लगा। वह एक विशाल दलबल के साथ यर्दन तट पर आया। वह दिन विश्राम-दिवस था।
44. योनातान ने अपने आदिमयों से कहा, “चलो, हम जा कर अपने प्राण-रक्षा के लिए लड़ें। आज हमारी स्थिति वही नहीं रही, जो कल तक थी।
45. हम पर सामने से या पीछे से आक्रमण हो सकता है। हमारे एक ओर यर्दन फैली है, दूसरी ओर दलदल है, झाडियाँ हैं। भाग निकलने का कोई उपाय नहीं।
46. अब स्वर्ग के ईश्वर की दुहाई करो, जिससे तुम शत्रुओं के हाथ से बच निकलो।”
47. युद्ध आरम्भ हुआ। योनातान ने बक्खीदेस को मार गिराने के लिए हाथ उठाया, लेकिन वह पीछे हट गया।
48. तब योनातान और उसके आदमी यर्दन के जल में कूद पड़े जिससे वे तैर कर उस पार हो जायें। शत्रुओं ने उनका पीछा नहीं किया, वे यर्दन पार नहीं गये।
49. उस दिन बक्खीदेस के लगभग एक हज़ार आदमी मारे गये।
50. तब वह येरुसालेम की ओर चल पड़ा और उसने यहूदिया के अनेक क़िलाबन्द नगरों का निर्माण किया। उसने येरीखो़ं अम्माऊस, बेत-होरोन, बेतेल, थमनाथा, फ़ारथोन और तेफ़ोन के गढ़ बनवाये और उन्हें ऊँची दीवारों, फाटकों और अर्गलाओं से सुदृढ़ किया।
51. उन सब में उसने एक सेना-दल रखा, जिससे वह इस्राएल पर छापा मारता रहे।
52. उसने बेत-सूर और गेजे़र नगरों और (येरुसालेम के) गढ़ को भी सुदृढ़ किया तथा उन में सैनिक और खाद्य-सामग्री रखी।
53. उसने देश के कुलीन पुत्रों को पकड़ कर और येरुसालेम के गढ़ में बन्द कर बन्धक के रूप में रखा।
54. अलकिमस ने एक सौ तिरपनवें वर्ष के दूसरे महीने में मन्दिर की भीतरी आँगन की दीवार गिराने की आज्ञा दी। उसने नबियों द्वारा निर्मित भवन का विनाश करना चाहा। जैसे ही विध्वंस शुरू हुआ,
55. अलकिमस को दौरा पड़ा और काम रुक गया। अलकिमस का मुँह बन्द हो गया उसे ऐसा लकवा मार गया कि वह न एक शब्द बोल सकता था और न अपनी गृहस्थी के विषय में कोई आदेश दे सकता था।
56. अलकिमस का कष्ट बढ़ता गया और उन्हीं दिनों उसकी मृत्यु हो गयी।
57. जब बक्खीदेस ने देखा कि अलकिमस की मृत्यु हो गयी है, तो वह राजा के पास लौट गया। इसके बाद यूदा में दो साल तक शान्ति रही।
58. इसके बाद विधर्मियों ने मिल कर यह कहते हुए परामर्श किया, “देखो, योनातान और उसके आदमी शान्ति का जीवन बिताते हैं और अपने को सुरक्षित समझते हैं अब हम बक्खीदेस को बुलायें। वह रात भर में ही सब को पकड़ लेगा”।
59. इसलिए वे उसके पास गये और उसे ऐसा करने का परामर्श दिया।
60. बक्खीदेस ने एक बड़ी सेना ले कर चलने का निश्चय किया। उसने यहूदिया में अपने मित्रों के पास छिपे तौर पर चिट्ठियाँ भी लिख भेजीं, जिससे वे योनातान और उसके दल को पकड़ लें। किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि उन लोगों को इस बात का पता चल गया था।
61. बल्कि इसके विपरीत योनातान के लोगों ने ही यह षड्यन्त्र रचने वालों के लगभग पचास आदमियों को पकड़ कर मार डाला।
62. इसके बाद योनातान और सीमोन अपने सारे लोगों के साथ बेत-बासी गये, जो उजाड़खण्ड में अवस्थित नगर है। उसने वहाँ खंँडहरों को फिर से बसाया और उन्होंने उस नगर को सुदृढ़ किया।
63. जब बक्खीदेस को इस बात का पता चला, तो उसने अपनी सारी सेना एकत्रित की और यहूदिया से भी आदमी बुलाये।
64. उसने आ कर बेत-बासी को घेर लिया और बहुत दिनों तक उसके लिए युद्ध करता रहा और उसने युद्ध-यन्त्र भी बनवाये।
65. योनातान ने अपने भाई सिमोन को नगर में ही छोड़ दिया और कुछ आदमियों को ले कर खुले मैदान में निकल पड़ा।
66. उसने अदोमेर और उसके भाई-बन्धुओं को हराया और फरीसी लोगों के शिविर में घुस कर उन्हें पराजित किया। इन विजयों के फलस्वरूप उसकी सेना की वृद्धि होती गयी।
67. उधर सिमोन और उसके आदमी नगर के बाहर टूट पड़े और युद्ध-यन्त्र जला डाले। वे बक्खीदेस के विरुद्ध लड़ते रहे,
68. जो बुरी तरह हार गया और अपनी योजना की असफलता देख कर बहुत उदास हुआ।
69. इसलिए उसका क्रोध उन विधर्मियों पर भड़क उठा, जिन्होंने उसे यहाँ बुलाया था। उसने उन में से बहुतों को मार डाला और अपने देश लौट जाने का निश्चय किया।
70. जब योनातान को इसका पता चला, तो उसने उसके पास दूत भेजे, जिससे वे उसके साथ सन्धि कर लें और युद्धबन्दियों को लौटाने का प्रबन्ध करें।
71. बक्खीदेस ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर उसके अनुसार कार्य किया और यह शपथ खायी कि वह आजीवन उसकी हानि नहीं करेगा।
72. वह युद्धबन्दी लौटा कर अपने देश लौट गया। उसने यह निश्चित किया कि वह उनके देश में फिर कभी नहीं आयेगा।
73. इस प्रकार इस्राएल में तलवार को विश्राम मिला। योनातान मिकमास में रहने लगा और वहाँ रह कर लोगों का न्याय करता था। उसने इस्राएल के समस्त विधर्मियों का वध किया।