पास्का का दूसरा सप्ताह

आज के: संत युसूफ, मजदूर


📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 5: 27-33

27 उन्होंने प्रेरितों को ला कर महासभा के सामने पेश किया। प्रधानयाजक ने उन से कहा,

28 हमने तुम लोगों को कड़ा आदेश दिया था कि वह नाम ले कर शिक्षा मत दिया करो, परन्तु तुम लोगों ने येरूसालेम के कोने-कोने में अपनी शिक्षा का प्रचार किया है और उस मनुष्य के रक्त की जिम्मेवारी हमारे सिर पर मढ़ना चाहते हो”।

29 इस पर पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने यह उत्तर दिया, “मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है।

30 आप लोगों ने ईसा को क्रूस के काठ पर लटका कर मार डाला था, किन्तु हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने उन्हें पुनर्जीवित किया।

31 ईश्वर ने उन्हें शासक तथा मुक्तिदाता का उच्च पद दे कर अपने दाहिने बैठा दिया है, जिससे वह उनके द्वारा इस्राएल को पश्चाताप और पापक्षमा प्रदान करे।

32 इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी, जिसे ईश्वर ने उन लोगों को प्रदान किया है, जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।”

33 यह सुन कर वे अत्यन्त क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने प्रेरितों को मार डालने का निश्चय किया।


📙 सुसमाचार – मत्ती 13:54-58

54 वे अपने नगर आये, जहाँ वे लोगों को उनके सभागृह में शिक्षा देते थे। वे अचम्भे में पड़ कर कहते थे,”इसे यह ज्ञान और यह सामर्थ्य कहाँ से मिला?

55 क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या मरियम इसकी माँ नहीं? क्या याकूब, यूसुफ़, सिमोन और यूदस इसके भाई नहीं?

56 क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच नहीं रहतीं? तो यह सब इसे कहाँ से मिला?”

57 पर वे ईसा में विश्वास नहीं कर सके। ईसा ने उन से कहा,”अपने नगर और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता”।

58 लोगों के अविश्वास के कारण उन्होंने वहाँ बहुत कम चमत्कार दिखाये।