समूएल का पहला ग्रन्थ

अध्याय : 12345678 91011 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 •  23 24 25 26 27 2829 30 31 पवित्र बाईबल

आध्याय 15

1  समूएल ने साऊल से कहा, “प्रभु ने मुझे इसलिए भेजा कि मैं उसकी प्रजा इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करूँ। इसलिए अब प्रभु सन्देश सुनो।

2  सर्वशक्तिमान् प्रभु का कहना है: मैं अमालेकियों को इसलिए दण्ड दूँगा कि उन्होंने मिस्र से निकलते समय इस्राएलियों पर आक्रमण किया था।

3  अब जाकर अमालेक पर छापा मारो और उनके पास जो कुछ है, उसका सर्वनाश करो। उन पर दया मत करो। क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या दुधमुँहे शिशु, क्या गाय, क्या भेड़, क्या ऊँट, क्या गधा,-सब का वध करो।”

4  साऊल ने सैनिकों को एकत्रित कर टलाईम में उनकी गिनती की। दो लाख पैदल सैनिक और यूदा के दस हज़ार आदमी निकले।

5  साऊल अमालेक के नगर पर छापा मारने के लिए घाटी में घात लगा कर बैठ गया।

6  साऊल ने केनी के वंशजों को यह कहला भेजा, “जाओ। अमालेकियों को छोड़ दो, जिससे मैं उनके साथ तुम लोगों का विनाश न करूँ; क्योंकि तुमने मिस्र्र से आते हुए सभी इस्राएलियों के साथ मित्रता पूर्ण व्यवहार किया था।” इसलिए केनी के वंशज अमालेकियों से अलग हो कर चले गये।

7  साऊल ने अमालेकियों का पीछा हवीला से मिस्र के पूर्व में सूर तक किया।

8  उसने अमालेकियों के राजा अगाग को जीवित पकड़ लिया और उसकी सारी प्रजा को तलवार से घाट उतार डाला।

9  लेकिन साऊल और उसके लोगों ने अगाग, सर्वोत्तम भेड़ों, गायों मोटे-मोटे बछडों और मेमनों को -वह सब कुछ, जो मूल्यवान् था, बचा लिया; उनका संहार नहीं किया। उन्होंने केवल बेकार और रद्दी चीजों का विनाश किया।

10  समूएल को प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, “मुझे दुःख है कि मैंने साऊल क़ो राजा बनाया,

11  क्योंकि उसने मुझे त्याग दिया और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया।” यह सुन कर समूएल घबराया और उसने सारी रात प्रभु से प्रार्थना की।

12  जब सबेरे समूएल साऊल से मिलने निकला, तो समूएल को यह समाचार मिला कि साऊल अपने नाम पर एक स्मारक बनाने के लिए करमेल गया है और वहाँ से आगे बढ़ कर गिलगाल तक पहुँच गया है।

13  जब समूएल साऊल के पास आया, तो साऊल ने उस से कहा, “प्रभु का आशीर्वाद आप को प्राप्त हो! मैंने प्रभु के आदेश का पालन किया।”

14  लेकिन समूएल ने उत्तर दिया, “बकरियों का यह मिमियाना, जो मैं सुन रहा हॅूँ और गाय-बैलों का यह रँभाना, जो मैं सुन रहा हूँ इसका अर्थ क्या है?”

15  साऊल ने कहा, “मेरे सैनिक ये पशु अमालेकियों के यहाँ से ले आये हैं। उन्होंने प्रभु, आपके ईश्वर को बलि चढ़ाने के लिए सर्वोत्तम भेड़ें और बैल बचा रख हैं। शेष का हमने संहार कर दिया है।

16  समूएल ने साऊल से कहा, “बहुत हुआ। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि प्रभु ने कल रात मुझ से क्या कहा।” इस पर साऊल ने उत्तर दिया, “बताइये।”

17  समूएल ने कहा, “तुम भले ही अपने को छोटा समझते थे, फिर भी तुम इस्राएली वंशों के अध्यक्ष हो और प्रभु ने इस्राएल के राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक किया है।

18  प्रभु ने तुम्हें यह आदेश दे कर भेजा था, ‘जाओ और उन पापी अमालेकियों का संहार करो और उन से तब तक लड़ते रहो, जब तक उनका सर्वनाश न हो।’

19  तुमने क्यों प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन किया और लूट के माल पर झपट कर वह काम किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है?”

20  इस पर साऊल ने समूएल से कहा, “मैंने प्रभु की आज्ञा का पालन किया। प्रभु ने जहाँ मुझे भेजा, मैं वहाँ गया और अमालेकियों का संहार कर अमालेक के राजा अगाग को यहाँ ले आया।

21  लेकिन जनता के लूट के माल में से सर्वोत्तम भेड़ों और बैलों को संहार से बचा कर ले लिया, जिससे वे उन्हें आपके प्रभु ईश्वर को बलि चढ़ायें।”

22  समूएल ने उत्तर दिया, “क्या होम और बलिदान प्रभु को इतने प्रिय होते हैं, जितना उसके आदेश का पालन? नहीं! आज्ञापालन बलिदान से कहीं अधिक उत्तम है और आत्मसमर्पण भेड़ों की चरबी से बढ़ कर है;

23  क्योंकि विद्रोह जादू-टोने की तरह पाप है और आज्ञाभंग मूर्तिपूजा के बराबर है। तुमने प्रभु का वचन अस्वीकार किया, इसलिए प्रभु ने तुम को अस्वीकार किया – तुम अब से राजा नहीं रहोगे।”

24  साऊल ने समूएल से कहा, “मैंने प्रभु का आदेश और आपके आदेश भंग कर पाप किया है। मैंने लोगों के डर से उनकी बात मानी।

25  अब कृपा कर मेरा पाप क्षमा कर दीजिए और मेरे साथ लौट जाइए, जिससे मैं वहाँ प्रभु की आराधना कर सकूँ।”

26  परन्तु समूएल ने साऊल को उत्तर दिया, “मैं तुम्हारे साथ नहीं लौट सकता। तुमने प्रभु की आज्ञा भंग कर दी है, इसलिए प्रभु ने तुम को त्याग दिया है। तुम अब इस्राएल के राजा नहीं रहोगे।”

27  समूएल मुड़ कर जा ही रहा था कि साऊल ने उसके कपडे़ का छोर पकड़ लिया और वह फट गया।

28  इस पर समूएल ने उसे कहा, “प्रभु ने आज इस्राएल का राज्य तुम से छीन लिया और उसे एक ऐसे व्यक्ति को दे दिया, जो तुम से श्रेष्ठ है।

29  ईश्वर, ईश्वर इस्राएल का गौरव न तो झूठ बोलता और न अपना मन बदलता हैं; क्योंकि वह मनुष्य नहीं है, जो वह अपना मन बदल दे।”

30  उसने उत्तर दिया, “मैंने पाप किया है, परन्तु आप कृपा कर मेरी प्रजा के नेताओं और इस्राएल के सामने मेरी प्रतिष्ठा बनाये रखिए और मेरे साथ चलिए, जिससे मैं प्रभु आपके ईश्वर की आराधना कर सकूँ।”

31  समूएल साऊल के साथ लौट गया और साऊल ने प्रभु की आराधना की।

32  समूएल ने कहा, “अमालेकियों के राजा अगाग को मेरे पास ले आओ।” अगाग प्रसन्न हो कर उसके पास आया। उसका विचार यह था कि अब मृत्यु का भय टल गया है।

33  परन्तु समूएल ने कहा, “जैसे तुम्हारी तलवार ने स्त्रियों को निस्सन्तान कर दिया है, वैसे तुम्हारी माँ भी अब निस्सन्तान होगी।” इसके बाद समूएल ने गिलगाल में प्रभु के सामने अगाग का वध किया।

34  इसके बाद समूएल रामा चला गया और साऊल गिबआ-साऊल अपने घर गया।

35  तब से समूएल आजीवन साऊल को नहीं देख पाया। समूएल साऊल के लिए शोक मनाता रहा और प्रभु को इस बात का दुःख रहा कि उसने साऊल को इस्राएल का राजा नियुक्त किया था।