वर्ष का बत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह, शनिवार
📒 पहला पाठ : 3 योहन 5-8
5) प्रियवर! आप भाइयों के लिए -और ऐसे भाइयों के लिए, जिन से आप अपरिचित हैं – जो कुछ कर रहे हैं, वह एक सच्चे विश्वासी के योग्य है।
6) उन्होंने यहाँ की कलीसिया के सामने आपके भ्रातृप्रेम का साक्ष्य दिया है। यदि आप उनकी अगली यात्रा का ऐसा प्रबन्ध करेंगे, जो ईश्वर के योग्य हो, तो अच्छा काम करेंगे;
7) क्योंकि वे मसीह का कार्य करने चले हैं और गैर मसीहियों से कुछ नहीं लेते।
8) इसलिए ऐसे लोगों का सेवा-सत्कार करना हमारा कर्तव्य है, जिससे हम सत्य की सेवा में उनके सहयोगी बनें।
📙 सुसमाचार : लूकस 18:1-8
1) नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए-यह समझाने के लिए ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया।
2) “किसी नगर में एक न्यायकर्ता था, जो न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता था।
3) उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए’।
4) बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता हूँ,
5) किन्तु वह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं उसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे’।”
6) प्रभु ने कहा, “सुनते हो कि वह अधर्मी न्यायकर्ता क्या कहता है?
7) क्या ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?
8) मैं तुम से कहता हूँ-वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव पुत्र आयेगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास बचा हुआ पायेगा?”