उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत:संत पोंतियानुस और हिप्पोलितुस
📒पहला पाठ-विधि विवरण 34: 1-12
1 इसके बाद मूसा मोआब के मैदान से नेबो पर्वत पर पिसगा की चोटी पर चढ़ा! यह येरीखो के सामने है। प्रभु ने उसे समस्त देश दिखाया – दान तक गिलआद को,
2 सारे नफ्ताली, एफ्रईम और मनस्से प्रदेश को पश्चिमी समुद्र तक समस्त यूदा प्रदेश को,
3 नेगेब और यर्दन की घाटी तथा सोअर तक खजूरों के नगर येरीख़ो के मैदान को।
4 तब प्रभु ने उस से कहा, “यही वह देश है, जिसके विषय में मैंने शपथ खाकर इब्राहीम इसहाक और याकूब से कहा – मैं उसे तुम्हारे वंशजों को प्रदान करूँगा। मैंने इसे तुम को दिखाया और तुमने इसे अपनी आँखों से देखा किन्तु तुम इस में प्रवेश नहीं करोगे।“
5 प्रभु के सेवक मूसा की वहाँ मोआब में मृत्यु हो गयी, जैसा कि प्रभु ने कहा था।
6 लोगों ने उसे बेत-पओर के सामने मोआब की घाटी में दफनाया, किन्तु अब कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहाँ है।
7 मूसा का देहान्त एक सौ बीस वर्ष की उम्र में हुआ था। उसकी आँखों की ज्योति धुँधलायी नहीं थी और न ही उसकी तेजस्विता घटी थी।
8 इस्राएलियों ने मोआब के मैदान में तीस दिन तक मूसा के लिए विलाप किया। इसके बाद मूसा के लिए शोक का समय समाप्त हुआ।
9 नून का पुत्र योशुआ प्रज्ञा-चेतना से परिपूर्ण था, क्योंकि मूसा ने उस पर हाथ रखे थे। इस्राएली उसका आज्ञापालन करते और इस प्रकार वे प्रभु का वह आदेश पूरा करते थे, जिसे प्रभु ने मूसा को दिया था।
10 बाद में मूसा के सदृश इस्राएल में ऐसा कोई नबी प्रकट नहीं हुआ, जिसने प्रभु को आमने-सामने देखा हो।
11 ऐसा कोई नबी प्रकट नहीं हुआ, जिसने प्रभु के द्वारा भेजा जा कर मिस्र में फ़िराउन, उसके सब दरबारियों और उसके समस्त देश को इतने चिह्न तथा चमत्कार और
12 सब इस्राएलियों के सामने सामर्थ्य एवं आतंक के साथ इतने महान् कार्य कर दिखाये।
📙सुसमाचार – मत्ती 18:15-20
15 “यदि तुम्हारा भाई कोई अपराध करता है, तो जा कर उसे अकेले में समझाओ। यदि वह तुम्हारी बात मान जाता है, तो तुमने अपने भाई को बचा लिया।
16 यदि वह तुम्हारी बात नहीं मानता, तो और दो-एक व्यक्तियों को साथ ले जाओ ताकि दो या तीन गवाहों के सहारे सब कुछ प्रमाणित हो जाये।
17 यदि वह उनकी भी नहीं सुनता, तो कलीसिया को बता दो और यदि वह कलीसिया की भी नहीं सुनता, तो उसे ग़ैर-यहूदी और नाकेदार-जैसा समझो।
18 “मैं तुम से यह कहता हूँ- तुम लोग पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।
19 “मैं तुम से यह भी कहता हूँ- यदि पृथ्वी पर तुम लोगों में दो व्यक्ति एकमत हो कर कुछ भी माँगेंगे, तो वह उन्हें मेरे स्वर्गिक पिता की ओर से निश्चय ही मिलेगा;
20 क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।”