अट्ठाईसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत कालिस्तुस प्रथम (मनोहर)


📒पहला पाठ- रोमियों 1: 16-25

16  मुझे सुसमाचार से लज्जा नहीं। यह ईश्वर का सामर्थ्य है, जो प्रत्येक विश्वासी के लिए-पहले यहूदी और फिर यूनानी के लिए-मुक्ति का स्त्रोत है।

17  सुसमाचार में ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता प्रकट होती है, जो विश्वास द्वारा मनुष्य को धार्मिक बनाता है। जैसा कि लिखा है: धार्मिक मनुष्य अपने विश्वास द्वारा जीवन प्राप्त करेगा।

18  ईश्वर का क्रोध स्वर्ग से उन लोगों के सब प्रकार के अधर्म और अन्याय पर प्रकट होता है, जो अन्याय द्वारा सत्य को दबाये रखते हैं।

19  ईश्वर का ज्ञान उन लोगों को स्पष्ट रूप से मिल गया है, क्योंकि ईश्वर ने उसे उन पर प्रकट कर दिया है।

20  संसार की सृष्टि के समय से ही ईश्वर के अदृश्य स्वरूप को, उसकी शाश्वत शक्तिमत्ता और उसके ईश्वरत्व को बुद्धि की आँखों द्वारा उसके कार्यों में देखा जा सकता है। इसलिए वे अपने आचरण की सफाई देने में असमर्थ है;

21  क्योंकि उन्होंने ईश्वर को जानते हुए भी उसे समुचित आदर और धन्यवाद नहीं दिया। उनका समस्त चिन्तन व्यर्थ चला गया और उनका विवेकहीन मन अन्धकारमय हो गया।

22  वे अपने को बुद्धिमान समझते हैं, किन्तु वे मूर्ख बन गये हैं।

23  उन्होंने अनश्वर ईश्वर की महिमा के बदले नश्वर मनुष्य, पक्षियों, पशुओं तथा सर्पों की अनुकृतियों की शरण ली।

24  इसलिए ईश्वर ने उन्हें उनकी घृणित वासनाओं का शिकार होने दिया और वे एक दूसरे के शरीर को अपवित्र करते हैं।

25  उन्होंने ईश्वर के सत्य के स्थान पर झूठ को अपनाया और सृष्ट वस्तुओं की उपासना और आराधना की, किन्तु उस सृष्टिकर्ता की नहीं, जो युगों-युगों तक धन्य है। आमेन!


📙सुसमाचार – लूकस 11: 37-41

37 ईसा के उपदेश के बाद किसी फ़रीसी ने उन से यह निवेदन किया कि आप मेरे यहाँ भोजन करें और वह उसके यहाँ जा कर भोजन करने बैठे।

38 फ़रीसी को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने भोजन से पहले हाथ नहीं धोये।

39 प्रभु ने उस से कहा, “तुम फ़रीसी लोग प्याले और थाली को ऊपर से तो माँजते हो, परन्तु तुम भीतर लालच और दुष्टता से भरे हुए हो।

40 मूर्खों! जिसने बाहर बनाया, क्या उसी ने अन्दर नहीं बनाया?

41 जो अन्दर है, उस में से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जायेगा।