पास्का का चौथा सप्ता

आज के संत: संत पीटर और देवनीसिया

📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 13: 13-25

13 पौलुस और उसके साथी नाव से चल कर पाफ़ोस से पम्फुलिया के पेरगे पहुँचे। वहाँ योहन उन्हें छोड़ कर येरूसालेम लौट गया।

14 पौलुस और बरनाबस पेरगे से आगे बढ़ कर पिसिदिया के अंताखिया पहुँचे। वे विश्राम के दिन सभागृह में जा कर बैठ गये।

15 संहिता तथा नबियों का पाठ समाप्त हो जाने पर सभागृह के अधिकारियों ने उन्हें यह कहला भेजा, “भाइयों! यदि आप प्रवचन के रूप में जनता से कुछ कहना चाहें, तो कहिए”।

16 इस पर पौलुस खड़़ा हो गया और हाथ से उन्हें चुप रहने का संकेत कर बोलाः

17 इस्राएली प्रजा के ईश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना, उन्हें मिस्र देश में प्रवास के समय महान बनाया और वह अपने बाहुबल से उन्हें वहाँ से निकाल लाया।

18 उसने चालीस बरस तक मरूभूमि में उनकी देखभाल की।

19 इसके बाद उसने कनान देश में सात राष्ट्रों को नष्ट किया और उनकी भूमि हमारे पूर्वजों के अधिकार में दे दी।

20 लगभग साढ़े चार सौ वर्ष बाद वह उनके लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त करने लगा और नबी समूएल के समय तक ऐसा करता रहा।

21 तब उन्होंने अपने लिए एक राजा की माँग की और ईश्वर ने उन्हें बेनयामीनवंशी कीस के पुत्र साऊल को प्रदान किया, जो चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा

22 इसके बाद ईश्वर ने दाऊद को उनका राजा बनाया और उनके विषय में यह साक्ष्य दिया- मुझे अपने मन के अनुकूल एक मनुष्य, येस्से का पुत्र दाऊद मिल गया है। वह मेरी सभी इच्छाएँ पूरी करेगा।

23 ईश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उन्हीं दाऊद के वंश में इस्राएल के लिए एक मुक्तिदाता अर्थात् ईसा को उत्पन्न किया हैं।

24 उनके आगमन से पहले अग्रदूत योहन ने इस्राएल की सारी प्रजा को पश्चाताप के बपतिस्मा का उपदेश दिया था।

25 अपना जीवन-कार्य पूरा करते समय योहन ने कहा, ’तुम लोग मुझे जो समझते हो, मैं वह नहीं हूँ। किंतु देखो, मेरे बाद वह आने वाले हैं, जिनके चरणों के जूते खोलने योग्य भी मैं नहीं हूँ।’

📙 सुसमाचार – योहन 13:16-20

16 मैं तुम से यह कहता हूँ – सेवक अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता और न भेजा हुआ उस से, जिसने उसे भेजा।

17 यदि तुम ये बातें समझकर उनके अनुसार आचरण करोगे, तो धन्य होंगे।

18 मैं तुम सबों के विषय में यह नहीं कह रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि मैंने किन-किन लोगों को चुना है; परन्तु यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये: जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझे लंगी मारी हैं।

19 अब मैं तुम्हें पहले ही यह बताता हूँ जिससे ऐसा हो जाने पर तुम विश्वास करो कि मैं वही हूँ।

20 मैं तुम से यह कहता हूँ – जो मेरे भेजे हुये का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है जिसने मुझे भेजा।