पन्द्रहवाँ सामान्य सप्ताह

कार्मेल पर्वत की धन्य कुँवारी मरियम


📙पहला पाठ- निर्गमन 3: 1-6, 9-12

1 मूसा अपने ससुर, मिदयान के याजक, यित्रो की भेड़ें चराया करता था। वह उन्हें बहुत दूर तक उजाड़ प्रदेश में ले जा कर ईश्वर के पर्वत होरेब के पास पहुँचा।
2 वहाँ उसे झाड़ी के बीच में से निकलती हुई आग की लपट के रूप में प्रभु का दूत दिखाई दिया। उसने देखा कि झाड़ी में तो आग लगी है, किन्तु वह भस्म नहीं हो रही है।
3 मूसा ने मन में कहा कि यह अनोखी बात निकट से देखने जाऊँगा और यह पता लगाऊँगा कि झाड़ी भस्म क्यों नहीं हो रही है।
4 निरीक्षण करने के लिए उसे निकट आते देख कर ईश्वर ने झाड़ी के बीच में से पुकार कर उस से कहा, ”मूसा! मूसा!” उसने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
5 ईश्वर ने कहा, ”पास मत आओ। पैरों से जूते उतार दो, क्योंकि तुम जहाँ खड़े हो, वह पवित्र भूमि है।”
6 ईश्वर ने फिर उस से कहा, ”मैं तुम्हारे पिता का ईश्वर हूँ, इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईश्वर।” इस पर मूसा ने अपना मुख ढक लिया; कहीं ऐसा न हो कि वह ईश्वर को देख ले।

9 मैंने इस्राएलियों की पुकार सुनी और उन पर मिस्रियों का अत्याचार देखा, इसलिए मैं तुम्हें फिराउन के पास भेजता हूँ।
10 तुम मेरी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर निकाल लाओ।”
11 मूसा ने ईश्वर से कहा, ”मैं कौन हूँ, जो फिराउन के पास जाऊँ और इस्राएलियों को मिस्र देश से बाहर निकाल ले जाऊँ?”
12 ईश्वर ने उत्तर दिया, ”मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैंने तुम को भेजा है, तुम्हारे लिए इसका प्रमाण यह होगा कि जब तुम इस्राएल को मिस्र से निकाल लाओगे, तो तुम लोग इस पर्वत पर प्रभु की आराधना करोगे।”


📒सुसमाचार – मत्ती 11: 25-27

25 उस समय ईसा ने कहा, “पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ; क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है।

26 हाँ, पिता! यही तुझे अच्छा लगा।

27 मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर कोई भी पुत्र को नहीं जानता। इसी तरह पिता को कोई भी नहीं जानता, केवल पुत्र जानता है और वही, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।