पास्का का चौथा

आज के संत: सप्ताह संत सिमोन स्टोक

📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 13: 26-33

26 “भाइयों! इब्राहीम के वंशजों और यहाँ उपस्थित ईश्वर के भक्तों! मुक्ति का यह संदेश हम सबों के पास भेजा गया है।

27 येरूसालेम के निवासियों तथा उनके शासकों ने ईसा को नहीं पहचाना। उन्हें दण्डाज्ञा दिला कर उन्होंने अनजाने ही नबियों के वे कथन पूरे कर दिये, जो प्रत्येक विश्राम-दिवस को पढ़ कर सुनाये जाते हैं।

28 उन्हें प्राणदण्ड के योग्य कोई दोष उन में नहीं मिला, फिर भी उन्होंने पिलातुस से अनुरोध किया कि उनका वध किया जाये।

29 उन्होंने उनके विषय में जो कुछ लिखा है, वह सब पूरा करने के बाद उन्हें क्रूस के काठ से उतारा और कब्र में रख दिया।

30 ईश्वर ने उन्हें तीसरे दिन मृतकों में से पुनर्जीवित किया

31 और वह बहुत दिनों तक उन लोगों को दर्शन देते रहे, जो उनके साथ गलीलिया से येरूसालेम आये थे। अब वे ही जनता के सामने उनके साक्षी हैं।

32 हम आप लोगों का यह सुसमाचार सुनाते हैं कि ईश्वर ने हमारे पूर्वजों से जो प्रतिज्ञा की थी।

33 उसे उनकी संतति के लिए अर्थात् हमारे लिए पूरा किया है। उसने ईसा को पुनर्जीवित किया है, जैसा कि द्वितीय स्तोत्र में लिखा है, तुम मेरे पुत्र हो। आज मैंने तुम को उत्पन्न किया हैं।

📙 सुसमाचार- योहन 14: 1-6

1 तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर में विश्वास करो और मुझ में भी विश्वास करो!

2 मेरे पिता के यहाँ बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये स्थान का प्रबंध करने जाता हूँ।

3 मैं वहाँ जाकर तुम्हारे लिये स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाउँगा, जिससे जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो।

4 मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।

5 थोमस ने उन से कहा, “प्रभु! हम यह भी नहीं जानते कि आप कहाँ जा रहे हैं, तो वहाँ का मार्ग कैसे जान सकते हैं?”

6 ईसा ने उस से कहा, “मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।”