चौबीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत रोबर्ट बेलारमिन
📒पहला पाठ- 1 तिमथी 3: 14-16
14 मुझे आशा है कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊँगा,
15 किन्तु यह पत्र इसलिए लिख रहा हूँ कि मेरे आने में देर हो जाये, तो तुम यह जान जाओ कि ईश्वर के घर में लोगों का आचरण कैसा होना चाहिए। ईश्वर का घर जीवन्त ईश्वर की कलीसिया है, जो सत्य का स्तम्भ और मूलाधार है।
16 धर्म का यह रहस्य निस्सन्देह महान् है – मसीह मनुष्य के रूप में प्रकट हुए, आत्मा के द्वारा सत्य प्रमाणित हुए, स्वर्गदूतों को दिखाई पड़े, ग़ैर-यहूदियों में प्रचारित हुए, संसार भर में उन पर विश्वास किया गया और वह महिमा में आरोहित कर लिये गये।
📙सुसमाचार – लूकस 7: 31-35
31 मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किस से करूँ? वे किसके सदृश हैं?
32 वे बाज़ार में बैठे हुए छोकरों के सदृश हैं, जो एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं: हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी और तुम नहीं नाचे, हमने विलाप किया और तुम नहीं रोये;
33 क्योंकि योहन बपतिस्ता आया, जो न रोटी खाता और न अंगूरी पीता है और तुम कहते हो-उसे अपदूत लगा है।
34 मानव पुत्र आया, जो खाता-पीता है और तुम कहते हो-देखो, यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है, नाकेदारों और पापियों का मित्र है।
35 किन्तु ईश्वर की प्रज्ञा उसकी प्रजा द्वारा सही प्रमाणित हुई है।”