पन्द्रहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत जुस्ता और रूफिना


📙पहला पाठ- निर्गमन 12: 37-42

37 इस्राएलियों ने रामसेस से सुक्कोत की ओर प्रस्थान किया। बच्चों और स्त्रियों के अतिरिक्त पैदल चलने वाले पुरुषों की संख्या लगभग छः लाख थी।
38 बहुत-से परदेशी उनके साथ हो लिये और भेड़-बकरियों तथा बैल-गायों के बहुत भारी झुण्ड भी।
39 वे मिस्र से जो गूँधा हुआ आटा अपने साथ ले गये थे, उन्होंने उसकी बेख़मीर रोटियाँ पकायीं। उनके पास ख़मीर नहीं था, क्योंकि वे इतनी जल्दी में मिस्र से निकाल दिये गये थे कि उन्हें रास्ते के लिए भोजन तैयार करने का समय तक नहीं मिला था।
40 इस्राएली चार सौ तीस वर्ष तक मिस्र में रहे थे।
41 जिस दिन ये चार सौ तीस वर्ष समाप्त हुए, उसी दिन प्रभु की समस्त प्रजा मिस्र से निकल गयी।
42 प्रभु उस रात जागरण करता रहा, जिससे वह इस्राएलियों को मिस्र से बाहर ले जाये। इसलिए समस्त इस्राएली पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसी रात को प्रभु के आदर में जागरण करते है।


📒सुसमाचार – मत्ती 12: 14-21

14 इस पर फ़रीसियों ने बाहर निकल कर ईसा के विरुद्ध यह परामर्श किया कि हम किस तरह उनका सर्वनाश करें।

15 ईसा यह जान कर वहाँ से चले गये। बहुत से लोग ईसा के पीछे हो लिये। वे सबों को चंगा करते थे,

16 किन्तु साथ-साथ यह चेतावनी देते थे कि तुम लोग मेरा नाम नहीं फैलाओ।   

17 इस प्रकार नबी इसायस का यह कथन पूरा हुआ-

18 यह मेरा सेवक है, इसे मैंने चुना है; मेरा परम प्रिय है, मैं इस पर अति प्रसन्न हूँ। मैं इसे अपना आत्मा प्रदान करूँगा और यह ग़ैर-यहूदियों में सच्चे धर्म का प्रचार करेगा।

19 यह न तो विवाद करेगा और न चिल्लायेगा और न बाज़ारों में कोई इसकी आवाज़ सुनेगा।

20 यह न तो कुचला हुआ सरकण्डा ही तोड़ेगा और न धुँआती हुई बत्ती ही बुझायेगा, जब तक वह सच्चे धर्म को विजय तक न ले जाये।

21 इसके नाम पर ग़ैर-यहूदी भरोसा रखेंगे।