ग्यारहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत रोमुआल्द
📒 पहला पाठ- 2 कुरिंथियों 11: 1-11
1 ओह, यदि आप लोग मेरी थोड़ी-सी नादानी सह लेते! खैर, आप मुझ को अवश्य सहेंगे।
2 मैं जितनी तत्परता से आप लोगों की चिन्ता करता हूँ वह ईश्वर की चिन्ता जैसी है। मैंने आपके एकमात्र दुलहे मसीह के साथ आपका वाग्दान सम्पन्न किया, जिससे मैं आप को पवित्र कुँवारी की तरह उनके सामने प्रस्तुत कर सकूँ।
3 मुझे डर है कि जिस प्रकार साँप ने अपनी धूर्तता से हेवा को धोखा दिया था, उसी प्रकार आप लोगों का मन भी न बहका दिया जाये और आप मसीह के प्रति अपनी निष्कपट भक्ति न खो बैठें ;
4 क्योंकि जब कोई आप लोगों के पास एक ऐसे ईसा का प्रचार करने आता है, जो हमारे द्वारा प्रचारित ईसा से भिन्न हैं, या एक ऐसा आत्मा अथवा सुसमाचार ग्रहण करने को कहता है, जो आपके द्वारा स्वीकृत आत्मा अथवा सुसमाचार से भिन्न है, तो आप लोग उस व्यक्ति का स्वागत करते हैं।
5 ऐसे महान् प्रचारकों से मैं अपने को किसी तरह कम नहीं समझता।
6 मैं अच्छा वक्ता नहीं हूँ, किन्तु मुझ में ज्ञान का अभाव नहीं। इसका प्रमाण मैं सब तरह से और हर प्रकार की बातों में आप लोगों को दे चुका हूँ।
7 आप लोगों को ऊपर उठाने के लिए मैंने अपने को दीनहीन बनाया और बिना कुछ लिए आप लोगों के बीच ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार किया। क्या इस में मेरा कोई दोष था?
8 आप लोगों की सेवा करने के लिए मैंने दूसरी कलीसियाओं से चन्दा माँगा।
9 आप लोगों के यहाँ रहते समय मैं आर्थिक संकट में पड़ने पर भी किसी के लिए भी भार नहीं बनता था। मकेदूनिया से आने वाले भाइयो ने मेरी आवश्यकताओं को पूरा किया। मैं आपके लिए भार नहीं बना और कभी नहीं बनूँगा।
10 मुझ में विद्यमान मसीह की सच्चाई की शपथ! अखै़या भर में कोई या कुछ भी मुझे इस गौरव से वंचित नहीं कर सकेगा।
11 ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि मैं आप को प्यार नहीं करता? ईश्वर जानता हैं कि मैं आप लोगों को प्यार करता हूँ।
📙 सुसमाचार – मत्ती 6: 7-15
7 “प्रार्थना करते समय ग़ैर-यहूदियों की तरह रट नहीं लगाओ। वे समझते हैं कि लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करने से हमारी सुनवाई होती है।
8 उनके समान नहीं बनो, क्योंकि तुम्हारे माँगने से पहले ही तुम्हारा पिता जनता है कि तुम्हें किन-किन चीज़ों की ज़रूरत है।
9 तो इस प्रकार प्रार्थना किया करो—स्वर्ग में विराजमान हमारे पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाये।
10 तेरा राज्य आये। तेरी इच्छा जैसे स्वर्ग में, वैसे पृथ्वी पर भी पूरी हो।
11 आज हमारा प्रतिदिन का आहार हमें दे।
12 हमारे अपराध क्षमा कर, जैसे हमने भी अपने अपराधियों को क्षमा किया है
13 और हमें परीक्षा में न डाल, बल्कि बुराई से हमें बचा।
14 “यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा।
15 परन्तु यदि तुम दूसरों को क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।