उनतीसवाँ सामान्य रविवार
संत आज के संत: इसहाक जोग और साथी क्रूस के संत
📒पहला पाठ- निर्गमन 17: 8-13
8 अमालेकी लोगों ने आ कर रफीदीम में इस्राएलियों पर आक्रमण किया।
9 मूसा ने योशुआ से कहा, ”अपने लिए आदमी चुन लो और कल सुबह अमालेकियों से युद्ध करने जाओ।
10 मैं हाथ में ईश्वर का डण्डा लिये पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूँगा।” मूसा के आदेश के अनुसार योशुआ अमालेकियों से युद्ध करने निकला और मूसा, हारून तथा हूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़े।
11 जब तक मूसा हाथ ऊपर उठाये रखता था, तब तक इस्राएली प्रबल बने रहते थे और जब वह अपने हाथ गिरा देता था, तो अमालेकी प्रबल हो जाते थे।
12 जब मूसा के हाथ थकने लगे, तो उन्होंने एक पत्थर ला कर भूमि पर रख दिया और मूसा उस पर बैठ गया। हारून और हूर उसके हाथ सँभालते रहे, पहला इस ओर से और दूसरा उस ओर से।
13 इस तरह मूसा ने सूर्यास्त तक अपने हाथ ऊपर उठाये रखा। योशुआ ने अमालेकियों और उनके सैनिकों को तलवार के घाट उतार दिया।
📙दूसरा पाठ- 2 तिमथी 3: 14-4: 2
14 तुम्हें जो शिक्षा मिली है और तुमने जिस में विश्वास किया है, उस पर आचरण करते रहो। याद रखो कि तुम्हें किन लोगों से यह शिक्षा मिली थी और
15 यह कि तुम बचपन से धर्मग्रन्थ जानते हो। धर्मग्रन्थ तुम्हें उस मुक्ति का ज्ञान दे सकता है, जो ईसा मसीह में विश्वास करने से प्राप्त होती है।
16 पूरा धर्मग्रन्थ ईश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह शिक्षा देने के लिए, भ्रान्त धारणाओं का खण्डन करने के लिए, जीवन के सुधार के लिए और सदाचरण का प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है।
17 जिससे ईश्वर-भक्त सुयोग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त बन जाये।
2 सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ;
📘सुसमाचार – लूकस 18: 1-8
1 नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए-यह समझाने के लिए ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया।
2 “किसी नगर में एक न्यायकर्ता था, जो न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता था।
3 उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, ‘मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए’।
4 बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, ‘मैं न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता हूँ,
5 किन्तु वह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं उसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे’।”
6 प्रभु ने कहा, “सुनते हो कि वह अधर्मी न्यायकर्ता क्या कहता है?
7 क्या ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?
8 मैं तुम से कहता हूँ – वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव पुत्र आयेगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास बचा हुआ पायेगा?”