चालीसे का चौथा सप्ताह
आज के संत :पौला के संत फ्रांसिस
📒 पहला पाठ- इसायस 49: 8-15
8 प्रभु यह कहता हैः “मैं उपयुक्त समय में तुम्हारी सुनूँगा, मैं कल्याण के दिन तुम्हारी सहायता करूँगा। मैंने तुम को सुरक्षित रखा है और अपने विधान की प्रज़ा नियुक्त किया है। मैं भूमि का उद्धार करूँगा और तुम्हें उजाड़ प्रदेशों में बसाऊँगा।
9 मैं बन्दियों से यह कहूँगा, ’मुक्त हो जाओ! और अन्धकार में रहने वालों से, ’सामने आओ’। वे मार्गों के किनारे चरेंगे और उन्हें उजाड़ स्थानों में चारा मिलेगा।
10 उन्हें फिर कभी न तो भूख लगेगी और न प्यास, उन्हें न तो लू से कष्ट होगा और न धूप से, क्योंकि जो उन्हें प्यार करता है, वह उनका पथप्रदर्शन करेगा और उन्हें उमड़ते हुए जलस्रोतों तक ले चलेगा।
11 मैं पर्वतों में रास्ता निकालूँगा और मार्गों को समतल बना दूँगा।
12 “देखो, कुछ लोग दूर से आ रहे हैं, कुछ उत्तर से, कुछ पश्चिम से और कुछ अस्सुआन देश से।“
13 आकाश जयकार करे! पृथ्वी उल्लसित हो और पर्वत आनन्द के गीत गायें! क्योंकि प्रभु अपनी प्रजा को सान्त्वना देता है और अपने दीन-हीन लोगों पर दया करता है।
14 सियोन यह कह रही थी, “प्रभु ने मुझे छोड़ दिया है। प्रभु ने मुझे भुला दिया है।“
15 “क्या स्त्री अपना दुधमुँहा बच्चा भुला सकती है? क्या वह अपनी गोद के पुत्र पर तरस नहीं खायेगी? यदि वह भुला भी दे, तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भुलाऊँगा।
📙 सुसमाचार – योहन 5:17-30
17 ईसा ने उन्हें यह उत्तर दिया, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है और मैं भी काम कर रहा हूँ।
18 अब यहूदियों का उन्हें मार डालने का निश्चय और भी दृढ़ हो गया, क्योंकि वे न केवल विश्राम-दिवस का नियम तोड़ते थे, बल्कि ईश्वर को अपना निजी पिता कह कर ईश्वर के बराबर होने का दावा करते थे।
19 ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – पुत्र स्वयं अपने से कुछ नहीं कर सकता। वह केवल वही कर सकता है, जो पिता को करते देखता है। जो कुछ पिता करता है, वह पुत्र भी करता है;
20 क्योंकि पिता पुत्र को प्यार करता है, और वह स्वयं जो कुछ करता है, उसे पुत्र को दिखाता है। वह उसे और महान् कार्य दिखायेगा, जिन्हें देख कर तुम लोग अचम्भे में पड़ जाओगे।
21 जिस तरह पिता मृतकों को उठाता और जिलाता है, उसी तरह पुत्र भी जिसे चाहता, उसे जीवन प्रदान करता है;
22 क्योंकि पिता किसी का न्याय नहीं करता। उसने न्याय करने का पूरा अधिकार पुत्र को दे दिया है,
23 जिससे सब लोग जिस प्रकार पिता का आदर करते हैं, उसी प्रकार पुत्र का भी आदर करें। जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का, जिसने पुत्र को भेजा, आदर नहीं करता।
24 “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – जो मेरी शिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा, उस में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। वह दोषी नहीं ठहराया जायेगा। वह तो मृत्यु को पार कर जीवन में प्रवेश कर चुका है।
25 “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब मृतक ईश्वर के पुत्र की वाणी सुनेंगे, और जो सुनेंगे, उन्हें जीवन प्राप्त होगा।
26 जिस तरह पिता स्वयं जीवन का स्रोत है, उसी तरह उसने पुत्र को भी जीवन का स्रोत बना दिया
27 और उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, क्योंकि वह मानव पुत्र है।
28 इस पर आश्चर्य न करो। वह समय आ रहा है, जब वे सब, जो कब्रों में है, उसकी वाणी सुन कर निकल आयेंगे।
29 सत्कर्मी जीवन के लिए पुनर्जीवित हो जायेंगे और कुकर्मी नरकदण्ड के लिए।
30 मैं स्वयं अपने से कुछ भी नहीं कर सकता। मैं जो सुनता, उसी के अनुसार निर्णय देता हूँ और मेरा निर्णय न्यायसंगत है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करना चाहता हूँ।”