दूसरा इतिहास-ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • पवित्र•बाईबल
अध्याय 5
1 जब वह सब काम समाप्त हो चुका, जिसकी आज्ञा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए दी थी, तो सुलेमान ने अपने पिता दाऊद द्वारा समर्पित समस्त सामग्री, अर्थात् चाँदी, सोने और अन्य सब सामान ला कर ईश्वर के मन्दिर के भण्डारों में रखवा दिया।
2 इसके बाद सुलेमान ने दाऊदनगर, अर्थात् सियोन से प्रभु के विधान की मंजूषा ऊपर ले जाने के लिए इस्राएल के नेताओं और वंशों के सब अध्यक्षों, इस्राएली घरानों के मुखियाओं को येरुसालेम में एकत्रित किया।
3 इसलिए सातवें महीने के पर्व के अवसर पर इस्राएल के सब पुरुष राजा के पास एकत्रित हुए।
4 सब इस्राएली नेता आये और लेवियों ने मंजूषा उठायी।
5 वे मंजूषा, दर्शन-कक्ष और तम्बू का सब पवित्र सामान ऊपर ले गये। याजक और लेवी उन्हें ऊपर ले गये।
6 राजा सुलेमान तथा इस्राएल का समस्त समुदाय मंजूषा के सामने इकट्ठा हो गया। उन्होंने असंख्य भेड़ों तथा साँड़ों की बलि चढ़ायी।
7 याजकों ने विधान की मंजूषा को उसके स्थान पर, परमपवित्र-स्थान में केरूबों के पंखों के नीचे रख दिया।
8 केरूबों के पंख मंजूषा के स्थान के ऊपर फैले हुए थे और इस प्रकार मंजूषा तथा उसके डंडों को आच्छादित करते थे।
9 डण्डे इतने ही लम्बे थे कि उनके सिरे परम-पवित्र-स्थान के सामने के पवित्र-स्थान में दिखाई देते थे, किन्तु बाहर से नहीं। वे आज तक वहीं हैं।
10 मंजूषा में केवल विधान की वे दो पाटियाँ थीं, जिन्हें मूसा ने होरेब में उस में रख दिया था। जब इस्राएली मिस्र से निकले थे, तो प्रभु ने उनके लिए होरेब में वह नियम ठहराया था।
11 तब याजक पवित्र-स्थान से बाहर आये। सब याजकों ने, जो उपस्थित थे, अपने दलों के क्रम का ध्यान रखेे बिना, अपने को पवित्र किया।
12 लेवियों के समस्त गायक, आसाफ़, हेमान, यदूतून, उनके पुत्र और भाई-बन्धु-सब छालटी के वस्त्र पहने और मंजीरे, सारंगियाँ और सितार बजाते हुए वेदी के पूर्व में खड़े थे। उनके साथ तुरहियाँ बजाते हुए एक सौ बीस याजक थे।
13 तुरही बजाने वाले और गायक सब मिल कर ईश्वर की प्रशंसा और स्तुतिगान करते थे। तुरही, झाँझ तथा अन्य वाद्यों से स्वर मिला कर वे यह कहते हुए प्रभु की स्तुति करते थे: “क्योंकि वह भला है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अनन्त काल तक बनी रहती है।” उस समय ईश्वर का मन्दिर एक बादल से भर गया।
14 और याजक मन्दिर में अपना सेवा-कार्य पूरा करने में असमर्थ थे- ईश्वर का मन्दिर प्रभु की महिमा से भर गया था।