मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ

अध्याय 11

1 लीसियस को इन घटनाओं से बड़ा क्षोम हुआ। वह राजा का अभिभावक और सम्बन्धी था और उसे राज्य का प्रबन्ध सौंपा गया था।

2 कुछ दिन बाद वह अस्सी हज़ार पैदल सैनिक और अपना सारा घुड़सवार दल ले कर यहूदियों से लड़ने चल पड़ा। वह येरुसालेम में यूनानियों को बसाना चाहता था।

3 उसका विचार था कि दूसरी जातियों के मन्दिरों की तरह उस मन्दिर पर भी कर लगेगा और वह प्रति वर्ष प्रधानयाजक का पद बेच देगा।

4 उसने ईश्वर के सामर्थ्य का ध्यान नहीं रखा, उसे केवल अपने लाखों पैदल सैनिकों, हज़ार घुड़सवारों और अपने अस्सी हाथियों का भरोसा था।

5 वह यहूदिया में प्रवेश कर बेत-सूर के पास पहुँचा। वह एक किलाबन्द स्थान है, जो येरुसालेम से लगभग डेढ़ सौ फर्लांग दूर है। उसने उसका घेराव किया।

6 जैसे ही मक्काबी के आदमियों ने सुना कि लीसियस ने किलाबन्द नगर पर घेरा डाला है, तो वे सारी जनता के साथ रोते और विलाप करते हुए प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि वह इस्राएल की रक्षा के लिए उन्हें एक सहायक दूत भेजे।

7 मक्काबी ने स्वयं सब से पहले शस्त्रों से सुसज्जित हो कर दूसरों को उत्साहित किया कि वे जोखिम का सामना करते हुए अपने भाइयों की सहायता करें। वे एक साथ पूरे उत्साह से निकल पड़े।

8 अभी वे येरुसालेम के पास ही थे कि उन्हें उज्वल वस्त्र और सोने के कवच पहने एक घुड़सवार दिखाई पड़ा, जो उनके आगे-आगे चल रहा था।

9 उन्होंने दयालु ईश्वर को एक स्वर में धन्यवाद किया और इसके बाद उन में इतना साहस भर आया कि वे न केवल मनुष्यों, बल्कि उग्र जानवरों का सामना करने और लोहे की दीवारों पर भी आक्रमण करने की तैयार हो गये।

10 वे पंक्तिबद्ध हो कर आगे बढ़ते गये। उनके साथ स्वर्ग का वह सहायक था, जिसे दयालु प्रभु ने उन्हें भेजा था।

11 वे सिंहों की तरह शत्रुओं पर टूट पडे़ और ग्यारह हज़ार पैदल सौनिकों तथा सोलह सौ घुड़सवारों को मार गिराया। बचे हुए लोगों को उन्होंने खदेड़ दिया।

12 उन में जो भागने में सफल हुए, वे अधिकांश घायल थे और उन्हें अपने हथियार खोने पड़े। लीसियस को भी लज्जित हो कर भागना पडा़।

13 लीसियस नासमझ व्यक्ति था जब उसने अपनी पराजय पर विचार किया, तो वह समझ गया कि इब्रानी लोग केवल इसलिए अजय हैं कि सर्वशक्तिमान् ईश्वर उनके लिए युद्ध करता है।

14 इसलिए उसने उचित शर्तों पर यहूदियों के साथ सन्धि करने दूत भेजे। उसने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वह राजा को उनके पक्ष में कर लेगा।

15 मक्काबी लीसियस के ये सभी प्रस्ताव स्वीकार कर गया; क्योंकि उसने देखा कि लोगों का हित इसी में है। राजा ने भी वे सभी शर्तें स्वीकार कर ली, जिन्हें मक्काबी ने यहूदियों की ओर से लिख कर लीसियस को दिया था।

16 यहूदियों के नाम लीसियस का पत्र इस प्रकार था: “लीसियस का यहूदियों को नमस्कार!

17 आपके दूत योहन और अबसालोम ने मुझे आपका पत्र दिया और निवेदन किया कि मैं उस में लिखित प्रस्तावों का अनुमोदन करूँ।

18 राजा के सामने जो कुछ प्रस्तुत करना था, उसे मैंने प्रस्तुत किया और उन्होंने जो उचित था, उसे स्वीकार किया।

19 यदि भविष्य में आप लोग राज्य के प्रति सद्भाव बनाये रखेंगे, तो मैं भी आपके कल्याण के लिए प्रयत्न करता रहूँगा।

20 मैंने अपने और आप लोगों के दूतों को आज्ञा दी है कि वे एक-एक विषय पर आप से बातचीत करें।

21 आप लोगों का कल्याण हो! एक सौ अड़तालीसवें वर्ष के ज़्यूस करिंथस मास के चौबीसवें दिन।”

22 राजा का पत्र इस प्रकार था:

23 “भाई लीसियस को राजा अन्तियोख का नमस्कार! हमारे पिता देवलोक सिधार गये। हमारी इच्छा है कि हमारे राज्य के लोग विश्वस्त हो कर अपने-अपने कामों में लगे रहें।

24 हम सुनते हैं कि यहूदी हमारे पिता की इच्छा के अनुसार यूनानी रीति – रिवाज अपनाना स्वीकार करते हैं। वे अपनी ही रीति के अनुसार रहना चाहते हैं और इसलिए वे निवेदन करते हैं कि उन्हें अपने विधि-निषेधों के पालन की अनुमति दी जाये।

25 हम चाहते हैं कि उस जाति को तंग नहीं किया जाये इसलिए हमने यह निर्णय किया कि उन्हें मन्दिर लौटा दिया जाये और उन्हें अपने पूर्वजों के परंपरागत रीति-रिवाजों के अनुसार जीवन बिताने की अनुमति दी जाये।

26 अच्छा हो, यदि आप दूत भेज कर उन से सन्धि कर लें, जिससे वे हमारे विचार जान कर निश्चिन्त हो जायें और अपने कामों में शान्तिपूर्वक लगे रहें।”

27 लोगों के नाम राजा का पत्र इस प्रकार था: “यहूदियों की परिषद् तथा शेष यहूदियों को राजा अन्तियोख का नमस्कार!

28 हम आपका कल्याण चाहते हैं। हम सकुशल हैं।

29 मनेलास ने हमें बतलाया है कि आप लोग अपने यहाँ लौट कर अपने काम-काज में लग जाना चाहते हैं।

30 इसलिए जो यहूदी ज़ंथिकस मास की तीसवीं तारीख़ तक ऐसा करेंगे, उन्हें आश्वासन दिया जाता है कि

31 वे पहले की तरह भोजन-सम्बन्धी अपने नियमों और अपने विधि-निषेधों का पालन कर सकते हैं। उन में किसी को भी अनजान में किये हुए अपराधों के लिए तंग नहीं किया जायेगा।

32 मैंने मनेलास को भेजा, जिससे वह आप लोगों को आश्वासन दे।

33 आप लोगों का कल्याण हो! एक सौ अड़तालीसवें वर्ष के ज़ंथिकस मास के पन्द्रहवें दिन।”

34 रोमियों ने भी उन्हें एक पत्र भेजा। वह इस प्रकार था: “यहूदियों को क्विन्तुस मम्मियुस और तितुस मानियुस नामक राजदूतों का नमस्कार!

35 राजा के सम्बन्धी लीसियस ने आप लोगों को जिन बातों की अनुमति दी है, उस से हम भी सहमत हैं।

36 जिन बातों के सम्बन्धी में उन्होंने राजा की राय लेना उचित समझा, आप उन पर विचार कर लेने के बाद किसी को शीघ्र हमारे पास भेज दें, जिससे हम वे बातें आपकी ओर से राजा के सामने प्रस्तुत कर सकें। कारण यह है कि हम अन्ताकिया जाने वाले हैं।

37 इसलिए आप शीघ्र ही कुछ लोगों को हमारे पास भेजें, जिससे हमें आपके विचारों का पता चले।

38 आप लोग स्वस्थ रहें! एक सौ अड़तालीसवें वर्ष के ज़ंथिकस मास के पन्द्रहवें दिन।”