मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ

अध्याय 3

1 पवित्र नगर में शान्ति का साम्र्राज्य था और जनता विधि-निषेधों का अच्छी तरह पालन करती थी; क्योंकि प्रधानयाजक ईश्वरभक्त था और बुराई से घृणा करता था।

2 राजा लोग भी पवित्रस्थान का सम्मान करते थे और मन्दिर को बहुमूल्य उपहार चढ़ाते थे।

3 एशिया का राजा सिलूकस तो अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति से मन्दिर के बलिदानों का आवश्यक ख़र्च देता था।

4 किन्तु बिलगावंशी सिमोन नामक एक व्यक्ति मन्दिर का प्रबन्धक नियुक्त किया गया। नगर के बाज़ारों के निरीक्षण के विषय में उसका प्रधानयाजक से मतभेद हो गया।

5 जब वह ओनियस को प्रभावित नहीं कर सका, तो थरसूस के पुत्र अपल्लोनियस के पास गया जो उस समय केलेसीरिया और फे़नीके का शासक था।

6 सिमोन ने उसे यह बताया कि येरूसालेम के कोषागार में इतनी सम्पत्ति भरी है कि उसका कुल जोड़ निकालना असम्भव है और बलिदानों के ख़र्च से उसकी कोई तुलना नहीं है। उसने यह भी कहा कि वह सम्पत्ति राजा को दिलायी जा सकती थी।

7 जब अपल्लोनियस राजा से मिला, तो कोष के सम्बन्ध में उसे जो कुछ बताया गया था, उसने वह सब राजा से कहा। राजा ने अपने प्रधान मन्त्री हेल्यादोरस को बुला कर उसे आज्ञा दी कि वह वहाँ जा कर वह सम्पत्ति ज़ब्त करे।

8 हेल्योदोरस तुरन्त चल पड़ा। उसने यह बहाना किया कि वह केले-सीरिया और फ़नीके के नगरों के दौरे पर जा रहा है, लेकिन सच तो यह था कि वह राजा का उद्देश्य पूरा करने गया।

9 जब वह येरूसालेम पहुँचा, तो नगर के प्रधानयाजक ने सद्भाव से उसका स्वागत किया हेल्योदोरस ने बतलाया कि उसने क्या सुना है और यह भी स्पष्ट किया कि वह क्यों आया है। उसने पूछा कि सुनी हुई बात कहाँ तक सच है।

10 प्रधानयाजक ने उसे बतलाया कि यह कोष विधवाओं और अनाथों का है

11 और इसका कुछ भाग टोबीयाह के पुत्र हिर्कानस का है, जो एक बड़ा पदाधिकारी है। बात वैसी नहीं है, जैसी विधर्मी सिमोन ने बतायी है। कोष मे कुल मिला कर सौ मन चाँदी और दो सौ मन सोना है।

12 यह भी असम्भव था कि उन लोगों का रुपया ले लिया जाये, जिन्होंने इस स्थान की पवित्रता और संसार भर में प्रसिद्ध मन्दिर की परमपावन, अनुल्लंघनीयता पर विश्वास किया था।

13 किन्तु हेल्योदोरस ने राजा का आदेश दृष्टि में रख कर इस बात पर बल दिया कि वह सम्पत्ति राजकोष में रखी जानी चाहिए।

14 उसने मन्दिर में प्रवेश करने और कोष के निरीक्षण के लिए जो दान निश्चित किया, उसने उसी दिन मन्दिर में प्रवेश किया। इस पर सारा नगर भयभीत हो उठा।

15 याजक अपने याजकीय वस्त्र धारण कर और मुँह के बल गिर कर ईश्वर से, जिसने मन्दिर में रखी हुई सम्पत्ति के विषय में नियम बनाया था, यह प्रार्थना करते थे कि वह उन लोगों की सम्पत्ति की रक्षा करे, जिन्होंने उसे मन्दिर में रखवाया था।

16 प्रधानयाजक को देख कर कोई भी व्यक्ति अप्रभावित नहीं रह सकता था। उसके चेहरे का मनोभाव और पीला रंग उसकी आत्मा का दुःख व्यक्त करता था।

17 वह अत्यन्त भयभीत था और उसका सारा शरीर इस प्रकार काँप रहा था कि जो भी उसे देखता, वह समझ जाता कि उसके हृदय में कितनी तीव्र वेदना है।

18 लोग बड़ी संख्या में अपने घरों से निकल कर सामूहिक प्रार्थना में सम्मिलित हो जाते थे, जिससे मन्दिर का अपवित्रीकरण नहीं हो पाये।

19 स्त्रियाँ छाती के नीचे टाट के कपडे पहन कर गलियों में एकत्र हो जाती थीं। लड़कियाँ, जो प्रायः घर के अन्दर रहती थीं, अब झुण्ड बना कर मन्दिर के फाटकों या दीवारों की ओर दौड़ती या खिड़कियों से बाहर देखती थीं।

20 सभी स्वर्ग की ओर हाथ पसार कर प्रार्थना करती थीं।

21 यह दृश्य कितना करूणाजनक था-सभी लोग मुँह के बल गिर कर प्रार्थना करते थे और प्रधानयाजक भावी अनिष्ट की आशंका से अत्यंत व्याकुल था।

22 जिस समय सभी प्रार्थना कर रहे थे कि प्रभु उन लोगों की सम्पत्ति की पूरी-पूरी रक्षा करें, जिन्होंने उसे मन्दिर में रखवाया था,

23 उस समय हेल्योदोरस ने अपना संकल्प पूरा किया।

24 जब वह अपने अंगरक्षकों के साथ कोष के पास पहुँचा, तो आत्माओं का सर्वशक्मिान् प्रभु उसके सामने इतनी महिमा के साथ प्रकट हुआ कि जितने लोगों ने मन्दिर में प्रवेश करने का साहस किया था वे सभी ईश्वरीय तेज के सामने अशक्त और निरुत्साह हो गये।

25 उन्हें सुसज्जित घोड़े पर एक भयानक आकार वाला घुड़सवार दिखाई पड़ा। वह घोड़ा हेल्योदोरस पर टूट पड़ा और उसने उस पर अपनी अगली टापों से प्रहार किया। घुड़सवार सोने का कवच पहने था।

26 भड़कीले वस्त्र पहने दो अत्यन्त बलवान् और सर्वांगसुन्दर नवयुवक दिखाई पड़े। वे हेल्योदोरस के दोनों ओर खड़े हो कर उस निरन्तर कोडे़ लगाते हुए मारते थे।

27 हेल्योदोरस अचानक ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों के सामने गहरा अन्धकार छा गया। तब उसे उठा कर एक तख्ते पर रखा गया।

28 वह, जो दलबल और अंगरक्षकों के साथ उपर्युक्त कोष के पास पहुँचा था, अब अशक्त हो कर बाहर ले जाया जा रहा था। उसने ईश्वरीय सामर्थ्य का अनुभव किया।

29 वह ईश्वरीय सामर्थ्य के प्रभाव के कारण बोलने में असमर्थ हो कर पड़ा रहा और उसके बचने की कोई आशा नहीं थी।

30 उधर लोगों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, जिसने अपने मन्दिर की महिमा की रक्षा की थी। वह मन्दिर, जो अभी-अभी भय और आतंक से आच्छादित था, अब हर्ष और उल्लास से गूँज उठा, क्योंकि सर्वशक्मिान् प्रभु वहाँ दिखाई पड़ा था।

31 हेल्योदोरस के कुछ साथियों ने ओनियस से तुरन्त यह निवेदन किया कि वह सर्चोच्च प्रभु से प्रार्थन करे, जिससे वह मरणासन्न हेल्योदोरस को जीवन प्रदान करे।

32 राजा कहीं यह न सोचे कि यहूदियों ने हेल्योदोरस को छल-कपट से मारा है, इसलिए प्रधानयाजक ने उसकी प्राणरक्षा के लिए बलिदान चढ़ाया।

33 प्रधानयाजक अभी प्रायश्चित-बलि चढ़ा ही रहा था कि उसी समय हेल्योदोरस को वे दोनों नवयुवक वही वस्त्र पहने दिखाई पडे़। उन्होंने उसके सामने आकर कहा, “तुम्हें प्रधानयाजक ओनियस को बहुत धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि उनकी प्रार्थना के कारण प्रभु ने तुम को जीवन प्रदान किया है।

34 ईश्वर ने तुम का दण्ड दिया, इसलिए तुम को सब के सामने ईश्वरीय सामर्थ्य की महिमा घोषित करनी चाहिए।” इतना कह कर वे अन्तर्धान हो गये।

35 हेल्योदोरस ने भी प्रभु को बलिदान चढ़ाया और उसके लिए बड़ी मन्नतें मानीं, क्योंकि उसने उसे जीवित रहने दिया। इसके बाद उसने ओनियस से विदा ली और अपनी सेना के साथ राजा के पास लौटा।

36 उसने सब के सामने सर्वोच्च प्रभु के उन चमत्कारों का साक्ष्य दिया, जिन्हें उसने अपनी आँखों से देखा था।

37 जब राजा ने हेल्योदोरस से पूछा कि अब किसे येरुसालेम भेजा जाना चाहिए, तो उसने उत्तर दिया,

38 “यदि कोई आपका शत्रु या राजद्रोही हो, तो उसे वहाँ भेजिए। यदि वह जीवित रह गया, तो वह कोड़े खाने के बाद आपके पास लौटेगा; क्योंकि एक दिव्य शक्ति वहाँ निवास करती है।

39 जो स्वर्ग में विराजमान है, वह उस स्थान की रक्षा करता और उसे सहायता देता है। जो उसे हानि पहुँचाने आते हैं, वह उन पर प्रहार करता और उसका विनाश करता है।”

40 यह हेल्योदोरसस और कोष की रक्षा का वृत्तान्त है।