मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ
अध्याय 9
1 उसी समय अन्तियोख को भी फारस के प्रान्तों से बुरी तरह पराजित हो कर हट जाना पड़ा।
2 वह फ़ारसीपुलिस नामक नगर में घुस आया था। वह मन्दिर को लूटने और नगर पर अधिकार करने ही वाला था कि वहाँ की जनता ने अपनी रक्षा के लिए अस्त्र उठा लिये। अन्तियोख को देशवासियों द्वारा भगा दिया गया और उसे अपमानपूर्वक हटना पड़ा।
3 एकवतना पहुँचने पर उसे सन्देश मिला कि निकानोर, तिमोथेव और उसके आदिमयों पर क्या बीती।
4 उसने क्रोध के आवेश में शपथ खायी कि भगाये जाने से उसका अभी जो अपमान हुआ है, इसका बदला यहूदियों से अवश्य लेगा। इसलिए उसने अपने सारथी को बिना रुके रथ चलाने का आदेश दिया, किन्तु ईश्वर का दण्ड उसक साथ-साथ चल रहा था। उसने अपने अहंकार में यह कहा था, ”मैं वहाँ पहुँच कर येरुसालेम को यहूदियों का क़ब्रिस्तान बना दूँगा”।
5 किन्तु प्रभु ने जो सब कुछ देखता है और जो इस्राएल का ईश्वर है, उसे असाध्य एवं अज्ञात रोग का शिकार बना दिया। जैसे ही उसने ये बाते कहीं, उसे अपनी अँतड़ियों में एक असह्यपीड़ा का अनुभव हुआ और उसके शरीर मे तेज़ दर्द होने लगा।
6 यह उसका उचित दण्ड था, क्योंकि उसने क्रूर यन्त्रणाओं से दूसरों की अंतड़ियों को उत्पीड़ित किया था।
7 इसके बावजूद उसने अपना अहंकार नहीं छोड़ा। उसने यहूदियों पर क्रोध में आ कर जल्दी करने को कहा, किन्तु वह तेज़ी से चलते रथ से अचानक गिर पड़ा और इतने ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया गया कि उसके सभी अंग टूट गये।
8 जो अभी-अभी अहंकार के आवेश में समुद्र की लहरों पर अधिकार करने और बड़े-बड़े पर्वतों को तराजू पर तौलने की सोच रहा था, उसे अब भूमि पर से उठा कर पालकी पर बिठाया जा रहा था। यह ईश्वर के सामर्थ्य का सुस्पष्ट प्रमाण था।
9 उस विधर्मी की हालत इतनी ख़राब हुई कि उसकी आँतों से कीडे़ निकल आये, उसके ज़िंदा रहते ही उसका माँस गल-गल कर गिरने लगा और उसे घोर पीड़ा सहनी पड़ी। उसके शरीर की दुर्गन्ध से उसकी सारी सेना परेशान थी।
10 जो व्यक्ति अभी-अभी आकाश के तारों की ओर हाथ बढ़ाने की सोच रहा था, उसकी असहनीय दुर्गन्ध के कारण कोई साथ नहीं रह सकता था।
11 जब उसका शरीर टूट गया था और वह ईश्वर से दण्डित हो कर निरन्तर पीड़ा झेल रहा था, जो उसका घमण्ड कम हो गया और उस में सद् बुद्धि आ गयी।
12 जब वह अपने शरीर की दुर्गन्ध सहने में असमर्थ हो गया, तो उसने कहा, “मरणशील मनुष्य को ईश्वर की अधीनता स्वीकार कर घमण्ड नहीं करना चाहिए”।
13 प्रभु ने उस दुष्ट की प्रार्थना स्वीकार करना और उस पर दया करना उचित नहीं समझा।
14 उसने अपनी प्रार्थना में यह प्रतिज्ञा की कि वह उस नगर को स्वतन्त्रता प्रदान करेगा, जिसकी ओर वह शीघ्रता से यात्रा कर रहा था, जिससे वह उसे धूल में मिलाये और क़ब्रिस्तान बनाये।
15 जिन यहूदियों को उसने दफ़नाने लायक भी नहीं समझा था और जिन्हें वह उनके बाल-बच्चों के साथ पक्षियों और जंगली जानवारों का आहार बनाना चाहता था, उन्हें उसने एथेंस की नागरिकता प्रदान करने की प्रतिज्ञा की।
16 जिस पवित्र मन्दिर को उसने पहले लूटा था, उसे उसने सर्वोत्तम उपहारों से सजाने, उसके बहुसंख्यक पवित्र पात्र लौटाने और फिर से बलिदानों का ख़र्च चुकाने का वचन दिया।
17 इसके सिवा उसने स्वयं यहूदी बनने और हर जगह जा कर ईश्वर का सामर्थ्य घोषित करने की प्रतिज्ञा की।
18 जब दर्द किसी तरह कम नहीं हुआ, क्योंकि ईश्वर उसे उचित दण्ड दे रहा था, तो उसकी हालत से निराश हो कर यहूदियों के नाम बड़े विनम्र शब्दों में यह पत्र लिखा:
19 “राजा और सेनापति अन्तियोख की ओर से आदरणीय यहूदी नागरिकों को अनेकानेक नमस्कार! आप स्वस्थ और सकुशल रहें।
20 यदि आप और आपके बच्चे कुशल-क्षेम से हैं और आपके सभी कार्य आपकी इच्छा के अनुकूल सफल हैं, तो मैं इसके लिए ईश्वर को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ; क्योंकि मुझे ईश्वर का भरोसा है।
21 मैं पलंग पर बीमार पड़ा हुआ आप लोगों द्वारा दिये हुए सम्मान और सद्भाव का स्मरण प्रेम से करता हूँ। जब मैं फ़ारस से लौटते समय एक कष्टदायक बीमारी का शिकार बना, तो मुझे सारे देश की सुरक्षा का प्रबन्ध करना पड़ा।
22 मैं अपनी हालत से निराश नहीं हूँ, बल्कि मुझे पक्का विश्वास है कि मैं इस बीमारी से अच्छा हो जाऊँगा।
23 किन्तु मेरे पिता का उदाहरण मेरे सामने है। जब वह उत्तरी प्रान्तों में अपनी सेना को ले कर युद्ध करने जाते थे, तो वह सदा अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते थे।
24 इस तरह अप्रत्याशित घटना या अशुभ समाचार के कारण किसी को चिन्ता नहीं रहती थी; क्योंकि सब जानते थे कि शासन किसके हाथ में होगा।
25 मैं यह भी जानता हूँ हमारे निकटवर्ती शासक और हमारे राज्य के पड़ोसी अवसर की ताक में हैं, इसलिए मैंने अपने पुत्र अन्तियोख को राजा नियुक्त कर दिया है। जब पहले कभी-कभी मैं उत्तरी प्रदेशों की यात्रा करता था, तो मैंने उसे आपके अधिकांश लोगों के सामने प्रस्तुत किया था और उसकी सिफ़ारिश की थी। मैंने उसके नाम एक पत्र भी लिखा है, जिसे मैं भेज रहा हूँ।
26 मैं आप लोगों से निवेदन करता हूँ और यह चाहता हूँ कि आप उन उपकारों को स्मरण रखें, जो जनता और प्रत्येक व्यक्ति के साथ किये गये हैं और आप मेरे और मेरे पुत्र के प्रति सद्भाव बनाये रखें।
27 मुझे विश्वास है कि वह मेरी इच्छा के अनुसार आप लोगों के साथ विनम्र और सहृदय व्यवहार करेगा।”
28 जिस तरह उस हत्यारे और ईश-निन्दक ने दूसरों को उत्पीड़ित किया था, उसी तरह वह असहय पीड़ा झेलने के बाद परदेश के पर्वतों के बीच चल बसा।
29 फ़िलिप जिसके साथ उसका पालन-पोषण हुआ था, उसका शव साथ ले गया। किन्तु फिलिप ने उसके पुत्र अन्तियोख से भयभीत हो कर पतोलेमेउस फ़िलोमेतोर के यहाँ मिस्र में शरण ली।