पहला पाठ: मक्काबियों का पहला ग्रन्थ 1:10-15,41-43,54-57,62-63
10) उन में राजा अंतियोख का पुत्र अंतियोख एपीफानेस बड़ा दुष्ट था वह रोम में बंधक के रूप में रहा चुका था। वह यूनानी साम्राज्य के एक सौ सैंतीसवें वर्ष राजा बना।
11) उन दिनों इस्राएल में ऐसे लोग थे, जो संहिता ही परवाह नहीं करते थे और यह कहते हुए बहुतों को बहकाते थे, ’’आओं! हम अपने चारों ओर के राष्ट्रों के साथ संधि करें, क्योंकि जब से हम उन से अलग हुए, हमें अनेक विपत्तियों का सामना करना पड़ा’’।
12) यह बात उन्हें अच्छी लगी।
13) उन में से कई लोग तुरंत राजा से मिलने गये और राजा ने उन्हें गैर-यहूदी जीवन-चर्या के अनुसार चलने की अनुमति दी।
14) इसलिए उन्होंने गैर-यहूदियों के रिवाज के अनुसार येरुसालेम में एक व्यायामशाला बनवायी।
15) उन्होंने अपने को बेख़तना कर लिया और पवत्रि विधान को त्याग दिया। वे गैर-यहूदियों से मेल-जोल रखने लगे और पाप के दास बन गये।
41) राजा ने अपने समस्त राज्य के लिए यह लिखित आदेश निकाला कि सब लोग एक ही राष्ट्र बन जायें
42) और सब अपने विशेष विराजों का परित्याग कर दे। सब लोगों ने राजा के आदेश का पालन किया।
43) इस्राएलियों में भी बहुतों ने, देवमूर्तियों को बलि चढ़ा कर और विश्राम दिवस को अपवत्रि कर, राजा का धर्म सहर्ष स्वीकार कर लिया।
54) एक सौ पैतालीसवें वर्ष के किसलेव महीने के पन्द्रहवें दिन राजा ने होम-बलि की वेदी पर उजाड़ का वीभत्स दृश्य (अर्थात् देव-मूर्ति को) स्थापित किया। यूदा के नगरों में चारों ओर देवमूर्तियों की वेदियाँ बनायी गयीं
55) और लोग के घरों के द्वार के सामने तथा चैंको में धूप चढाने लगे।
56) जब उन्हें सहिता की पोथियाँ मिलती थीं, तो वे उन्हें फाड़ कर आग में डाल देते थे।
57) जिसके यहाँ विधान का ग्रन्थ पाया जाता अथवा जो संहिता का पालन करता, उसे राजा के आदेशानुसार प्राणदण्ड दिया जाता था।
62) फिर भी बहुत-से इस्राएली दृढ़ बने रहे और उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे अशुद्ध भोजन नहीं खायेगे।
63) वे मृत्यु को स्वीकार करते थे, जिससे वे अवैध भोजन खा कर दूशित न हो जायें और पवत्रि विधान भंग न करें। इस प्रकार बहुत-से इस्राएली मर गये।
सुसमाचार : सन्त लूकस 18:35-43
35) जब ईसा येरीख़ो के निकट आ रहे थे, तो एक अन्धा सड़क के किनारे बैठा भीख माँग रहा था।
36) उसने भीड़ को गुज़रते सुन कर पूछा कि क्या हो रहा है।
37) लोगों ने उसे बताया कि ईसा नाज़री इधर से आ रहे हैं।
38) इस पर वह यह कहते हुए पुकार उठा, ‘‘ईसा! दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए’’।
39) आगे चलने वाले उसे चुप करने के लिए डाँटते थे, किन्तु वह और भी ज़ोर से पुकारता रहा, ‘‘दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए’’।
40) ईसा ने रुक कर उसे पास ले आने को कहा। जब वह पास आया, तो ईसा ने उस से पूछा,
41) ‘‘क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?’’ उसने उत्तर दिया, ‘‘प्रभु! मैं फिर देख सकूँ’’।
42) ईसा ने उस से कहा, ‘‘जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है’’।
43) उसी क्षण उसकी दृष्टि लौट आयी और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए ईसा के पीछे हो लिया। सारी जनता ने यह देख कर ईश्वर की स्तुति की।