वर्ष का चौंतीसवाँ सामान्य सप्ताह, सोमवार
📒 पहला पाठ : प्रकाशना 14:1-5
1) मैंने फिर देखा- मेमना सियोन पर्वत पर खड़ा है। उसके साथ एक लाख चैवालीस हजार व्यक्ति हैं, जिनके माथे पर उसका नाम और उसके पिता का नाम अंकित है।
2) मैंने तेजी से बहती हुई नदियों के निनाद और घोर मेघगर्जन की-सी आवाज स्वर्ग से आती हुई सुनी। मैं जो आवाज सुन रहा था, वह वीणा बजाने वालों की-सी आवाज थी।
3) वे सिंहासन और चार प्राणियों एवं वयोवृद्धों के सामने एक नया गीत गा रहे थे। उन एक लाख चैवालीस हजार व्यक्तियों के सिवा, जिन को पृथ्वी पर से खरीद लिया गया था, और कोई वह गीत नहीं सीख सकता था।
4) ये वे लोग हैं, जो स्त्रियों के संसर्ग से दूषित नहीं हुए हैं, ये कुँवारे हैं। जहाँ कहीं भी मेमना जाता है, ये उसके साथ चलते हैं। ईश्वर और मेमने के लिए प्रथम फल के रूप में इन्हें मनुष्यों में से खरीदा गया है।
5) इनके मुख में झूठ नहीं पाया गयाः ये अनिन्द्य हैं।
📙 सुसमाचार : लूकस 21:1-4
1) ईसा ने आँखें ऊपर उठा कर देखा कि धनी लोग ख़ज़ाने में अपना दान डाल रहे हैं।
2) उन्होंने एक कंगाल विधवा को भी दो अधेले डालते हुए देखा
3) और कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ-इस कंगाल विधवा ने उन सबों से अधिक डाला है।
4) उन्होंने तो अपनी समृद्धि से दान दिया, परन्तु इसने तंगी में रहते हुए भी जीविका के लिए अपने पास जो कुछ था, वह सब दे डाला।”