बीसवाँ सामान्य सप्ताह धन्य
आज की संत: संत कुँवारी मरियम, महारानी
📒पहला पाठ- रूत 1: 1, 3-6, 14-16, 22
1 न्यायकर्ताओं के समय देश में अकाल पड़ा, इसलिए यूदा के बेथलेहेम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी और अपने दोनों पुत्रों के साथ मोआब के मैदान में बसने आया।
3 नोमी का पति एलीमेलेक मर गया और वह अपने दोनों पुत्रों के साथ रह गयी।
4 उन्होंने मोआबी स्त्रियों के साथ विवाह किया – एक ओर्पा कहलाती थी और दूसरी रूत। उन्होंने दस वर्ष तक वहाँ निवास किया।
5 इसके बाद महलोन और किल्योन भी मर गये और नोमी अपने दोनों पुत्रों और अपने पति से वंचित हो गयी।
6 तब उसने अपनी बहुओं के साथ मोआब के मैदान से चल देने का निश्चय किया; क्योंकि उसने सुना था कि प्रभु ने अपनी प्रजा की सुधि ली और उसे खाने के लिए रोटी दी थी।
14 दोनों बहुएँ फिर फूट-फूट कर रोने लगीं। ओर्पा अपनी सास को गले लगा कर अपने लोगों के यहाँ लौट गयी, किन्तु रूत अपनी सास से लिपट गयी।
15 नोमी ने उस से कहा, “देखो, तुम्हारी जेठानी अपने लोगों और अपने देवताओं के पास लौट गयी है। तुम भी अपनी जेठानी की तरह लौट जाओ।”
16 किन्तु रूत ने उत्तर दिया, “इसके लिए अनुरोध न कीजिए कि मैं आप को छोड़ दूँ और लौट कर आप से दूर हो जाऊँ। आप जहाँ जायेंगी, वहाँ मैं भी जाऊँगी और आप जहाँ रहेंगी, वहाँ मैं भी रहूँगी। आपकी जाति मेरी भी जाति होगी और आपका ईश्वर मेरा भी ईश्वर होगा।
22 इस प्रकार नोमी अपनी मोआबी बहू रूत के साथ मोआब के मैदान से लौटी। वे जौ की कटनी के प्रारम्भ में बेथलेहेम पहॅुँची।
📙सुसमाचार – मत्ती 22:34-40
34 जब फ़रीसियों ने यह सुना कि ईसा ने सदूकियों का मुँह बन्द कर दिया था, तो वे इकट्ठे हो गये
35 और उन में से एक शास्त्री ने ईसा की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा,
36 “गुरुवर! संहिता में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?”
37 “ईसा ने उस से कहा, “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।
38 यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है।
39 दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।
40 इन्हीं दो आज्ञाओं पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।”