पहला पाठ: मक्काबियों का दूसरा ग्रन्थ 7:1,20-31
1) किसी अवसर पर सात भाई अपनी माता के साथ गिरफ्तार हो गये थे। राजा उन्हें कोड़े लगवा कर और यंत्रणा दिला कर बाध्य करना चाहता था कि वे सूअर का माँस खायें, जो संहिता में मना किया गया है।
20) माता विशेष रूप से प्रंशसनीय तथा प्रातः स्मरणीय है। एक ही दिन में अपने सात पुत्रों को अपनी आँखों के सामने मरते देखकर भी वह विचलित नहीं हुई; क्योंकि वह प्रभु पर भरोसा रखती थी।
21) वह अपने पूर्वजों की भाषा में हर एक का साहस बँधाती रही। उच्च संकल्प से प्रेरित हो कर तथा अपने नारी-हृदय में पुरुष का तेज भर कर, वह अपने पुत्रों से यह कहती थी,
22) ’’मुझे नहीं मालूम कि तुम कैसे मेरे गर्भ में आये। मैंने न तो तुम्हें प्राण तथा जीवन प्रदान किया और न तुम्हारे अंगों की रचना की।
23) संसार का सृष्टिकर्ता मानव जाति की रचना करता और सब कुछ उत्पन्न करता है। वह दया कर तुम्हें अवश्य ही फिर प्राण तथा जीवन प्रदान करेगा; क्योंकि तुम उसकी विधियों की रक्षा के लिए अपने जीवन का तिरस्कार कर रहे हो।’’
24) अंतियोख को लगा कि वह उसका तिरस्कार और निंदा कर रही है। अब केवल उसका सब से छोटा पुत्र जीवित रहा। अंतियोख ने उसे समझाया ही नहीं, बल्कि शपथ खा कर आश्वासन भी दिया कि ’’यदि तुम अपने पूर्वजों के रीति-रिवाजों का परित्याग करोगे, तो मैं तुम को धन और सुख प्रदान करूँगा, तुम्हें अपना मित्र बना कर उच्च पद पर नियुक्त करूँगा”।
25) जब नवयुवक ने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया तो अंतियोख ने माता को बुला भेजा और उस से अनुरोध किया कि वह नवयुवक को समझाये, जिससे वह जीवित रह सके।
26) राजा के कई बार अनुरोध करने के बाद वह अपने पुत्र को समझाने को राजी हो गयी।
27) वह उस पर झुक गयी और क्रूर तानाशाह की अवज्ञा करते हुए उसके पूर्वजों की भाषा में उस से यह कहा, ’’बेटा! मुझ पर दया करो। मैंने तुम्हें नौ महीनों तक गर्भ में धारण किया और तीन वर्षों तक दूध पिलाया। मैंने तुम्हें खिलाया और तुम्हारी इस उमर तक तुम्हारा पालन-पोषण किया।
28) बेटा! मैं तुम से अनुरोध करती हूँ। तुम आकाश तथा पृथ्वी की ओर देखो- उन में जो कुछ है, उसका निरीक्षण करो और यह समझ लो कि ईश्वर ने शून्य से उसकी सृष्टि की है। मनुष्य भी इस प्रकार उत्पन्न हुआ है।
29) इस जल्लाद से मत डरो। अपने भाइयों के योग्य बनो और मृत्यु स्वीकार करो, जिससे मैं दया के दिन तुम्हें अपने भाइयों के साथ फिर पा सकूँ।’’
30) जब वह ऐसा कह चुकी थी, तो नवयुवक तुरंत बोल उठा ’’तुम देर क्यों करते हो? मैं राजा का आदेश नहीं मानूँगा। मैं अपने पुरखों को मूसा द्वारा प्रदत्त संहिता के नियमों का पालन करता हूँ।
31) और तुम राजा, अंतियोख! जिसने इब्रानियों पर हर प्रकार का अत्याचार किया, तुम ईश्वर के हाथ से नहीं बच सकोगे।
सुसमाचार : सन्त लूकस 19:11-28
11) जब लोग ये बातें सुन रहे थे, तो ईसा ने एक दृष्टान्त भी सुनाया; क्योंकि ईसा को येरुसालेम के निकट पा कर वे यह समझ रहे थे कि ईश्वर का राज्य तुरन्त प्रकट होने वाला है।
12) उन्होंने कहा, ‘‘एक कुलीन मनुष्य राजपद प्राप्त कर लौटने के विचार से दूर देश चला गया।
13) उसने अपने दस सेवकों को बुलाया और उन्हें एक-एक अशर्फ़ी दे कर कहा, ‘मेरे लौटने तक व्यापार करो’।
14) ‘‘उसके नगर-निवासी उस से बैर करते थे और उन्होंने उसके पीछे एक प्रतिनिधि-मण्डल द्वारा कहला भेजा कि हम नहीं चाहते कि वह मनुष्य हम पर राज्य करे।
15) ‘‘वह राजपद पा कर लौटा और उसने जिन सेवकों को धन दिया था, उन्हें बुला भेजा और यह जानना चाहा कि प्रत्येक ने व्यापार से कितना कमाया है।
16) पहले ने आ कर कहा, ‘स्वामी! आपकी एक अशर्फ़ी ने दस अशर्फि़य़ाँ कमायी हैं’।
17) स्वामी ने उस से कहा, ‘शाबाश, भले सेवक! तुम छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार निकले, इसलिए तुम्हें दस नगरों पर अधिकार मिलेगा’।
18) दूसरे ने आ कर कहा, ‘स्वामी! आपकी एक अशर्फ़ी ने पाँच अशर्फि़याँ कमायी हैं’
19) और स्वामी ने उस से भी कहा, ‘तुम्हें पाँच नगरों पर अधिकार मिलेगा’।
20) अब तीसरे ने आ कर कहा, ’स्वामी! देखिए, यह है आपकी अशर्फ़ी। मैंने इसे अँगोछे में बाँध रखा था।
21) मैं आप से डरता था, क्योंकि आप कठोर हैं। आपने जो जमा नहीं किया, उसे आप निकालते हैं और जो नहीं बोया, उसे लुनते हैं।’
22) स्वामी ने उस से कहा, ‘दुष्ट सेवक! मैं तेरे ही शब्दों से तेरा न्याय करूँगा। तू जानता था कि मैं कठोर हूँ। मैंने जो जमा नहीं किया, मैं उसे निकालता हूँ और जो नहीं बोया, उसे लुनता हूँ।
23) तो, तूने मेरा धन महाजन के यहाँ क्यों नहीं रख दिया? तब मैं लौट कर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।’
24) और स्वामी ने वहाँ उपस्थित लोगों से कहा, ‘इस से वह अशर्फ़ी ले लो और जिसके पास दस अशर्फि़याँ हैं, उसी को दे दो’।
25) उन्होंने उस से कहा, ‘स्वामी! उसके पास तो दस अशर्फि़याँ हैं’।
26) “मैं तुम से कहता हूँ-जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।
27) और मेरे बैरियों को, जो यह नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, इधर ला कर मेरे सामने मार डालो’।
28) इतना कह कर ईसा येरुसालेम की ओर आगे बढ़े।