पास्का बुधवार,
पास्का का पहला सप्ताह
आज के संत: संत जॉर्ज, संत अदालबर्ट

📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 3: 1-10

1 पेत्रुस और योहन तीसरे पहर की प्रार्थना के समय मन्दिर जा रहे थे।

2 लोग एक मनुष्य को ले जा रहे थे, जो जन्म से लँगड़ा था। वे उसे प्रतिदिन ला कर मन्दिर के ‘सुन्दर’ नामक फाटक के पास रखा करते थे, जिससे वह मन्दिर के अन्दर जाने वालों से भीख माँग सके।

3 जब उसने पेत्रुस और योहन को मन्दिर में प्रवेश करते देखा, तो उन से भीख माँगी।

4 पेत्रुस और योहन ने उसे ध्यान से देखा। पेत्रुस ने कहा, “हमारी ओर देखो”

5 और वह कुछ पाने की आशा से उनकी ओर देखता रहा।

6 किन्तु पेत्रुस ने कहा, ‘मेरे पास न तो चाँदी है और न सोना; बल्कि मेरे पास जो, वही तुम्हें देखा हूँ- ईसा मसीह नाज़री के नाम पर चलो”

7 और उनसे उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसी क्षण लँगड़े के पैरों और टखनों में बल आ गया।

8 वह उछल कर खड़ा हो गया और चलने-फिरने लगा। वह चलते, उछलते तथा ईश्वर की स्तुति करते हुए उनके साथ मन्दिर आया।

9 सारी जनता ने उस को चलते-फिरते तथा ईश्वर की स्तुति करते हुए देखा।

10 लोग उसे पहचानते थे। यह वही था, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक के पास बैठ कर भीख माँगा करता था और यह देख कर कि उसे क्या हुआ है, वे अचम्भे में पड़ कर चकित थे।

📙 सुसमाचार – लूकस 24: 13-35

13 उसी दिन दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए एम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह येरूसालेम से कोई चार कोस दूर है।

14 वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे

15 कि ईसा स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये,

16 परन्त शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं।

17 ईसा ने उन से कहा, “आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे रुक गये। उनके मुख मलिन थे।

18 उन में एक क्लेओपस-ने उत्तर दिया, “येरूसालेम में रहने वालों में आप ही एक ऐसे हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है’।

19 ईसा ने उन से कहा, “क्या हुआ है?” उन्होंने उत्तर दिया, “बात ईसा नाज़री की है वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे।

20 हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया।

21 हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करने वाले थे। यह आज से तीन दिन पहले की बात है।

22 यह सच है कि हम में से कुछ स्त्रियों ने हमें बड़े अचम्भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे क़ब्र के पास गयीं

23 और उन्हें ईसा का शव नहीं मिला। उन्होंने लौट कर कहा कि उन्हें स्वर्गदूत दिखाई दिये, जिन्होंने यह बताया कि ईसा जीवित हैं।

24 इस पर हमारे कुछ साथी क़ब्र के पास गये और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्त्रियों ने कहा था; परन्तु उन्होंने ईसा को नहीं देखा।”

25 तब ईसा ने उन से कहा, “निर्बुद्धियों! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो !

26 क्या यह आवश्यक नहीं था कि मसीह वह सब सहें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?”

27 तब ईसा ने मूसा से ले कर अन्य सब नबियों का हवाला देते हुए, अपने विषय में जो कुछ धर्मग्रन्थ में लिखा है, वह सब उन्हें समझाया।

28 इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। लग रहा था, जैसे ईसा आगे बढ़ना चाहते हैं।

29 शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, “हमारे साथ रह जाइए। साँझ हो रही है और अब दिन ढल चुका है” और वह उनके साथ रहने भीतर गये।

30 ईसा ने उनके साथ भोजन पर बैठ कर रोटी ली, आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उसे तोड़ कर उन्हें दे दिया।

31 इस पर शिष्यों की आँखे खुल गयीं और उन्होंने ईसा को पहचान लिया … किन्तु ईसा उनकी दृष्टि से ओझल हो गये।

32 तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वे रास्ते में हम से बातें कर रहे थे और हमारे लिए धर्मग्रन्थ की व्याख्या कर रहे थे!”

33 वे उसी घड़ी उठ कर येरूसालेम लौट गये। वहाँ उन्होंने ग्यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया,

34 जो यह कह रहे थे, “प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं”।

35 तब उन्होंने भी बताया कि रास्ते में क्या-क्या हुआ और उन्होंने ईसा को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचान लिया।