बीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: लीमा की संत रोज़


📒पहला पाठ- रूत 2: 1-3, 8-11 4: 13-17

1 अपने पति की तरफ़ से नोमी के बोअज़ नामक एक सम्बन्धी था। वह एलीमेलेक के कुल का बहुत धनी मनुष्य था।

2 मोआबिन रूत ने नोमी से कहा, “मुझे खेतों में जाने दीजिए। जो मुझ पर कृपा करेगा, उसी के पीछे-पीछे सिल्ला बीनना चाहती हूँ।” उसने उत्तर दिया, “बेटी, जाओ।”

3 वह गयी और खेतों में फ़सल काटने वालों के पीछे-पीछे सिल्ला बीनने लगी। सौभाग्य से वह जिस खेत पर पहुँची, वह एलीमेलेक के कुल के बोअज़ का ही था।

8 बोअज़ ने रूत से कहा, “बेटी! सुनो। दूसरे खेत में सिल्ला बीनने मत जाओ। यहाँ रहो। मेरी नौकरानियों के साथ रहो।

9 इसका ध्यान रखा करो कि किस खेत में फ़सल कट रही है और उनके पीछे-पीछे चलो। मैं अपने नौकरों को आदेश दे चुका हूँ कि वे तुम को तंग न करें। यदि तुम्हें प्यास लगे, तो नौकरों द्वारा भरे हुए घड़ों में से पानी पीने जाओ।”

10 रूत ने साष्टांग प्रणाम किया और कहा, “मुझे आपकी कृपादृष्टि कैसे प्राप्त हुई? मैं तो परदेशिनी हूँ और आप मेरी सुधि लेते हैं।”

11 बोअज़ ने उत्तर दिया, “लोगों ने मुझे बताया कि तुमने अपने पति की मृत्यु के बाद अपनी सास के लिए क्या-क्या किया है। तुम अपने माता-पिता और अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर, ऐसे लोगों के यहाँ चली आयी हो, जिन्हें तुम पहले नहीं जानती थी।

13 बोअज़ ने रूत को अपनी पत्नी के रूप में अपनाया। बोअज़ का उस से संसर्ग हुआ। प्रभु की कृपा से रूत गर्भवती हो गयी और उसने पुत्र प्रसव किया।

14 स्त्रियों ने नोमी से कहा, “धन्य हैं प्रभु! उसने अब आप को एक उत्तराधिकारी दिया है और उसका नाम इस्राएल में बना रहेगा।

15 वह आप को नया जीवन प्रदान करेगा और बुढ़ापे में आपका सहारा होगा, क्योंकि आपकी बहू ने उसे जन्म दिया है। वह आप को प्यार करती है और आपके लिए सात पुत्रों से भी बढ़ कर है।”

16 नोमी ने शिशु को अपनी छाती से लगा लिया और उसका पालन-पोषण किया।

17 पड़ोस की स्त्रियों ने यह कहते हुए शिशु का नाम रखा, “नोमी को पुत्र उत्पन्न हुआ है।” उन्होंने उसका नाम ओबेद रखा वही दाऊद के पिता यिषय का पिता है।


📙सुसमाचार – मत्ती 23: 1-12

1 उस समय ईसा ने जनसमूह तथा अपने शिष्यों से कहा,

2 “शास्त्री और फ़रीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,

3 इसलिए वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वह करते और मानते रहो; परन्तु उनके कर्मों का अनुसरण न करो,

4 क्योंकि वे कहते तो हैं, पर करते नहीं। वे बहुत-से भारी बोझ बाँध कर लोगों के कन्धों पर लाद देते हैं, परन्तु स्वंय उँगली से भी उन्हें उठाना नहीं चाहते।

5 वे हर काम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही करते हैं। वे अपने तावीज चौड़े और अपने कपड़ों के झब्बे लम्बे कर देते हैं।

6 भोजों में प्रमुख स्थानों पर और सभागृहों में प्रथम आसनों पर विराजमान होना,

7 बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना और जनता द्वारा गुरुवर कहलाना- यह सब उन्हें बहुत पसन्द है।

8 “तुम लोग ’गुरुवर’ कहलाना स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है और तुम सब-के-सब भाई हो।

9 पृथ्वी पर किसी को अपना ’पिता’ न कहो, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।

10 ’आचार्य’ कहलाना भी स्वीकार न करो, क्योंकि तुम्हारा एक ही आचार्य है अर्थात् मसीह।

11 जो तुम लोगों में से सब से बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने।

12 जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।