सोलहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: स्वीडेन की संत ब्रिजिट


📙पहला पाठ- निर्गमन 16:1-5, 9-15

1 इस्राएली एलीम से आगे बढ़े। मिस्र देश से निकलने के बाद दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन इस्राएलियों का सारा समुदाय एलीम और सोनई के बीच सीन नामक मरूभूमि पहुँचा।
2 इस्राएलियों का सारा समुदाय मरूभूमि में मूसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगा।
3 इस्राएलियों ने उन से कहा, ”हम जिस समय मिस्र देश में मांस की हड्डियों के सामने बैठते थे और इच्छा-भर रोटी खाते थे, यदि हम उस समय प्रभु के हाथ मर गये होते, तो कितना अच्छा होता! आप हम को इस मरूभूमि में इसलिए ले आये हैं कि हम सब-के-सब भूखों मर जायें।”
4 प्रभु ने मूसा से कहा, ”मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा। लोग बाहर निकल कर प्रतिदिन एक-एक दिन का भोजन बटोर लिया करेंगे। मैं इस तरह उनकी परीक्षा लूँगा और देखूँगा कि वे मेरी संहिता का पालन करते हैं या नहीं।
5 छठे दिन उन्हें दूसरे दिनों की अपेक्षा दुगुनी रोटी बटोर कर तैयार करनी चाहिए।”

9 मूसा ने हारून से कहा, ”इस्राएलियों के सारे समुदाय को यह आदेश दो – प्रभु के सामने उपस्थित हो, क्योंकि वह तुम्हारा भुनभुनाना सुन चुका हे।”
10 जब हारून इस्राएलियों को सम्बोधित कर रहा था, तो उन्होंने मुड़ कर मरुभूमि की ओर देखा और प्रभु की महिमा बादल के रूप में उन्हें दिखाई दी।
11 प्रभु ने मूसा से यह कहा,
12 ”मैं इस्राएलियों का भुनभुनाना सुन चुका हूँ। तुम उन से यह कहना-शाम को तुम लोग मांस खा सकोगे और सुबह इच्छा-भर रोटी। तब तुम जान जाओगे कि मैं,प्रभु तुम लोगों का ईश्वर हूँ।”
13 उसी शाम को बटेरों का झुण्ड उड़ता हुआ आया और छावनी पर बैठ गया और सुबह छावनी के चारों और कुहरा छाया रहा।
14 कुहरा दूर हो जाने पर मरुभूमि की ज़मीन पर पाले की तरह एक पतली दानेदार तह दिखाई पड़ी।
15 इस्राएली यह देखकर आपस में कहने लगे, ”मानहू” अर्थात् ”यह क्या है?” क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि यह क्या था। मूसा ने उन से कहा, ”यह वही रोटी है, जिसे प्रभु तुम लोगों को खाने के लिए देता है।


📒सुसमाचार – मत्ती 13:1-9

1 ईसा किसी दिन घर से निकल कर समुद्र के किनारे जा बैठे।

2 उनके पास इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वे नाव पर चढ़ कर बैठ गये और सारी भीड़ तट पर बनी रही।

3 उन्होंने दृष्टान्तों द्वारा उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। उन्होंने कहा, “सुनो! कोई बोने वाला बीज बोने निकला।

4 बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया।

5 कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी

6 सूरज चढ़ने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये।

7 कुछ बीज काँटो में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया।

8 कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाये- कुछ सौ गुना, कुछ साठ गुना और कुछ तीस गुना।

9 जिसके कान हों, वह सुन ले।”