वर्ष का चौंतीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार
📒 पहला पाठ : प्रकाशना 15:1-4
1) मैंने स्वर्ग में एक और महान् एवं आश्चर्यजनक चिन्ह देखा। सात स्वर्गदूत सात विपत्तियाँ लिये थे। ये अन्तिम विपत्तियाँ हैं, क्योंकि इनके द्वारा ईश्वर का क्रोध पूरा हो जाता है।
2) मैंने आग से मिले कुए काँच के समुद्र-सा कुछ देखा। जो लोग पशु उसकी प्रतिमा और उसके नाम की संख्या पर विजयी हुए थे, वे काँच के समुद्र पर खड़े थे। वे ईश्वर की वीणाएं लिये
3) ईश्वर के दास मूसा का गीत और मेमने का गीत गाते हुए कहते थे। “सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर! तेरे कार्य महान् और अपूर्व हैं। राष्ष्ट्रों के राजा! तेरे मार्ग न्यायसंगत और सच्चे हैं।
4) “प्रभु! कौन तुझ पर श्रद्धा और तेरे नाम की स्तुति नहीं करेगा? क्योंकि तू ही पवित्र है। ” सभी राष्ष्ट्र आ कर तेरी आराधना करेंगे, क्योंकि तेरे न्यायसंगत निर्णय प्रकट हो गये हैं।”
📙 सुसमाचार : लूकस 21:12-19
12) “यह सब घटित होने के पूर्व लोग मेरे नाम के कारण तुम पर हाथ डालेंगे, तुम पर अत्याचार करेंगे, तुम्हें सभागृहों तथा बन्दीगृहों के हवाले कर देंगे और राजाओं तथा शासकों के सामने खींच ले जायेंगे।
13) यह तुम्हारे लिए साक्ष्य देने का अवसर होगा।
14) अपने मन में निश्चय कर लो कि हम पहले से अपनी सफ़ाई की तैयारी नहीं करेंगे,
15) क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी वाणी और बुद्धि प्रदान करूँगा, जिसका सामना अथवा खण्डन तुम्हारा कोई विरोधी नहीं कर सकेगा।
16) तुम्हारे माता-पिता, भाई, कुटुम्बी और मित्र भी तुम्हें पकड़वायेंगे। तुम में से कितनों को मार डाला जायेगा
17) और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे।
18) फिर भी तुम्हारे सिर का एक बाल भी बाँका नहीं होगा।
19) अपने धैर्य से तुम अपनी आत्माओं को बचा लोगे।