इक्कीसवाँ सामान्य रविवार
आज के संत: संत बरथोलोमी। प्रेरित
📒पहला पाठ- इसायस 66: 18-21
18 “मैं सभी भाषाओं के राष्ट्रों को एकत्र करूँगा। वे मेरी महिमा के दर्शन करने आयेंगे।
19 मैं उन में एक चिह्न प्रकट करूँगा। जो बच गये होंगे, उन में से कुछ लोगों को मैं राष्ट्रों के बीच भेजूँगा- तरशीश, पूट, धनुर्धारी लूद, तूबल, यूनान और उन सुदूर द्वीपों को, जिन्होंने अब तक न तो मेरे विषय में सुना है और न मेरी महिमा देखी है। उन राष्ट्रों में वे मेरी महिमा प्रकट करेंगे।
20 वे प्रभु की भेंटस्वरूप सभी राष्ट्रों में से तुम्हारे सब भाइयों को ले आयेंगे।“ प्रभु कहता है, “जिस तरह इस्राएली शुद्ध पात्रों में चढ़ावा लिये प्रभु के मन्दिर आते हैं, उसी तरह वे उन्हें घोड़ों, रथों, पालकियों, खच्चरों और साँड़नियों पर बैठा कर मेरे पवित्र पर्वत येरुसालेम ले आयेंगे।
21 मैं उन मे से कुछ को याजक बनाऊँगा और कुछ लोगों को लेवी।“ यह प्रभु का कहना है।
📙दूसरा पाठ- इब्रानियों 12: 5-7, 11-13
5 क्या आप लोग धर्मग्रन्थ का यह उपदेश भूल गये हैं, जिस में आप को पुत्र कह कर सम्बोधित किया गया है? -मेरे पुत्र! प्रभु के अनुशासन की उपेक्षा मत करो और उसकी फटकार से हिम्मत मत हारो;
6 क्योंकि प्रभु जिसे प्यार करता है, उसे दण्ड देता है और जिसे पुत्र मानता है, उसे कोड़े लगाता है।
7 आप जो कष्ट सहते हैं, उसे पिता का दण्ड समझें, क्योंकि वह इसका प्रमाण है, कि ईश्वर आप को पुत्र समझ कर आपके साथ व्यवहार करता है। और कौन पुत्र ऐसा है, जिसे पिता दण्ड नहीं देता?
11 जब दण्ड मिल रहा है, तो वह सुखद नहीं, दुःखद प्रतीत होता है; किन्तु जो दण्ड द्वारा प्रशिक्षित होते हैं, वे बाद में धार्मिकता का शान्तिप्रद फल प्राप्त करते हैं।
12 इसलिए ढीले हाथों तथा शिथिल घुटनों को सबल बना लें।
13 और सीधे पथ पर आगे बढ़ते जायें, जिससे लंगड़ा भटके नहीं, बल्कि चंगा हो जाये।
📘सुसमाचार – लूकस 13: 22-30
22 ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरूसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे।
23 किसी ने उन से पूछा, “प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?’ इस पर ईसा ने उन से कहा,
24 “सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ – प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।
25 जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, ’प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए’, तो वह तुम्हें उत्तर देगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो’।
26 तब तुम कहने लगोगे, ’हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया’।
27 परन्तु वह तुम से कहेगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।’
28 जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे।
29 पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।
30 देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।”