सोलहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत सार्बेलियुस माखसुफ / संत फ्रांसिस
📙पहला पाठ- निर्गमन 19: 1, 2, 9-11, 16-20
1 मिस्र देश से निकलने के ठीक तीन महीने बाद इस्राएली सीनई की मरुभूमि पहुँचे।
2 वे रफीदीम से चले थे और उन्होंने सीनई की मरुभूमि पहुँच कर पहाड़ के सामने ही पड़ाव डाला।
9 प्रभु ने मूसा से कहा, ”मैं एक काले बादल में तुम्हारे पास आ रहा हूँ, जिससे ये लोग मुझे तुम्हारे साथ बातें करता हुआ सुनें और तुम में सदैव अटल विश्वास करें।” मूसा ने प्रभु को लोगों का उत्तर सुना दिया।
10 प्रभु ने मूसा से कहा, ”तुम लोगों के पास जा कर आदेश दो कि वे आज और कल अपने को पवित्र करें और अपने वस्त्र धो लें।
11 वे परसों के लिए अपने को तैयार करें, क्योंकि परसों प्रभु सभी लोगों के सामने सीनई पर्वत पर उतरेगा।
16 तीसरे दिन प्रातःकाल बादल गरजे, बिजली चमकी, पर्वत पर काले बादल छा गये और तुरही का प्रचण्ड निनाद सुनाई पड़ा-शिविर में सभी लोग काँपने लगे।
17 तब मूसा ईश्वर से भेंट करने के लिए लोगों को शिविर से बाहर ले गया और वे पहाड़ के नीचे खड़े हो गये। सीनई पर्वत धुएँ से ढका हुआ था, क्योंकि ईश्वर अग्नि के रूप में उस पर उतरा था।
18 धुआँ भट्ठी के धुएँ की तरह ऊपर उठ रहा था और सारा पहाड़ ज़ोर से काँप रहा था।
19 तुरही का निनाद बढ़ता जा रहा था। मूसा बोला और ईश्वर ने उसे मेघगर्जन में से उत्तर दिया।
20 ईश्वर सीनई पर्वत की चोटी पर उतरा और उसने मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर गया।
📒सुसमाचार – मत्ती 13: 10-17
10 ईसा के शिष्यों ने आ कर उन से कहा, “आप क्यों लोगों को दृष्टान्तों में शिक्षा देते हैं?”
11 उन्होंने उत्तर दिया, “यह इसलिए है कि स्वर्गराज्य का भेद जानने का वरदान तुम्हें दिया गया है, उन लोगों को नहीं;
12 क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा। लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उससे वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।
13 मैं उन्हें दृष्टान्तों में शिक्षा देता हूँ, क्योंकि वे देखते हुए भी नहीं देखते और सुनते हुए भी न तो सुनते और न समझते हैं।
14 इसायस की यह भविष्यवाणी उन लोगों पर पूरी उतरती है- तुम सुनते रहोगे, परन्तु नहीं समझोगे। तुम देखते रहोगे, परन्तु तुम्हें नहीं दिखेगा;
15 क्योंकि इन लोगों की बुद्धि मारी गयी है। ये कानों से सुनना नहीं चाहते; इन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली हैं। कहीं ऐसा न हो कि ये आँखों से देख लें, कानों से सुन लें, बुद्धि से समझ लें, मेरी ओर लौट आयें और मैं इन्हें भला-चंगा कर दूँ।
16.”परन्तु धन्य हैं तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं!
17 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ-तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।