पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज की संत: संत मरियम – दया की माँ


📒पहला पाठ- एज्रा. 9: 5-9

5 सन्ध्याकालीन यज्ञ के समय मैं अपने विषाद की अवस्था से जागा। मेरा कुरता और मेरी चादर फटी हुई थी। मैं घुटनों के बल गिर कर और अपने प्रभु-ईश्वर की ओर हाथ फैला कर

6 इस प्रकार प्रार्थना करने लगाः “मेरे ईश्वर! मैं इतना लज्जित हूँ कि तेरी ओर दृष्टि लगाने का साहस नहीं हो रहा है, क्योंकि हम अपने पापों में डूब गये हैं और हमारा दोष आकाश छूने लगा है।

7 अपने पूर्वजों के समय से आज तक हम भारी अपराध करते आ रहे हैं। अपने पापों के कारण हम, हमारे राजा और हमारे याजक विदेशी राजाओं के हाथ, तलवार, निर्वासन, लूट और अपमान के हवाले कर दिये गये, जैसी कि आज हमारी दुर्गति है।

8 अब हमारे प्रभु-ईश्वर ने हम पर थोड़े समय के लिए दया प्रदर्शित की। उसने कुछ लोगों को निर्वासन से वापस बुलाया और हमें अपने पवित्र स्थान में शरण दी है। उसने हमारी आँखों को फिर ज्योति प्रदान की और हमें हमारी दासता में विश्राम दिया है;

9 क्योंकि हम दास ही हैं, किन्तु हमारे ईश्वर ने हमें हमारी दासता में नहीं त्यागा और हमें फ़ारस के राजाओं का कृपापात्र बनाया है। उन्होंने हमें हमारे ईश्वर का मन्दिर फिर बनाने और उसका पुनरुद्धार करने की अनुमति दी और यूदा तथा येरुसालेम में सुरक्षित स्थान दिलाया है।


📙सुसमाचार- लूकस 9: 1-6

1 ईसा ने बारहों को बुला कर उन्हें सब अपदूतों पर सामर्थ्य तथा अधिकार दिया और रोगों को दूर करने की शक्ति प्रदान की।

2 तब ईसा ने उन्हें ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगा करने भेजा।

3 उन्होंने उन से कहा, “रास्ते के लिए कुछ भी न ले जाओ-न लाठी, न झोली, न रोटी, न रुपया। अपने लिए दो कुरते भी न रखो।

4 जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो।

5 यदि लोग तुम्हारा स्वागत न करें, तो उनके नगर से निकलने पर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।”

6 वे चले गये और सुसमाचार सुनाते तथा लोगों को चंगा करते हुए गाँव-गाँव घूमते रहे।