दूत-संदेश का पर्व
📙 पहला पाठ : इसायस 7: 10-14, 8:10
10 प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,
11 “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिह्न माँगो”।
12 आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।”
13 इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?
14 प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिह्न देगा और वह यह है – एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
10 योजना बनाओ – वह असफ़ल होगी; विचार – विमर्श करो – वह व्यर्थ होगा; क्योंकि ईश्वर हमारे साथ है।
📒 दूसरा पाठ : इब्रानियों 10: 4-10
4 सांडों तथा बकरों का रक्त पाप नहीं हर सकता,
5 इसलिए मसीह ने संसार में आ कर यह कहा: तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढ़ावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है।
6 तू न तो होम से प्रसन्न हुआ और न प्रायश्चित्त के बलिदान से;
7 इसलिए मैंने कहा – ईश्वर! मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ, जैसा कि धर्मग्रन्थ में मेरे विषय में लिखा हुआ है।
8 मसीह ने पहले कहा, “तूने यज्ञ, चढ़ावा, होम या या प्रायचित्त का बलिदान नहीं चाहा। तू उन से प्रसन्न नहीं हुआ”, यद्यपि ये सब संहिता के अनुसार ही चढ़ाये जाते हैं।
9 तब उन्होंने कहा, “देख, मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ”। इस प्रकार वह पहली व्यवस्था को रद्द करते और दूसरी का प्रवर्तन करते हैं।
10 ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढ़ाये जाने के कारण हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।
📕 सुसमाचार: लूकस 1: 26-38
26 छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाज़रेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27 जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ़ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
28 स्वर्गदूत ने उसके यहाँ अन्दर आ कर उससे कहा, “प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री! प्रभु आपके साथ है।”
29 वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30 तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, “मरियम ! डरिए नहीं।आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31 देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32 वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33 वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।”
34 पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।”
35 स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36 देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37 क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”
38 मरियम ने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।” और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।