पहला पाठ: मक्काबियों का पहला ग्रन्थ 6:1-13
1) जब अंतियोख पहाड़ी प्रांतों का दौरा कर रहा था, तो उसने सुना कि फारस देश का एलिमईस नगर अपनी संपत्ति और सोना-चाँदी के लिए प्रसिद्ध है।
2) और यह कि वहाँ का मंदिर अत्यंत समृद्ध है और उस में वे स्वर्ण ढाले, कवच और अस्त्र-शस्त्र सुरक्षित हैं, जिन्हें फिलिप के पुत्र सिंकदर, मकूदूनिया के राजा और यूनानियों के प्रथम शासक, ने वहाँ छोड दिया था।
3) इसलिए वह उस नगर पर अधिकार करने और उसे लूटने के उद्देश्य से चल पडा, किंतु वह ऐसा नहीं कर पाया; क्योंकि नागरिकों को उस अभियान का पता चल गया था।
4) उन्होंने हथियार ले कर उसका सामना किया और उसे भागना पड़ा। उसने दुःखी हो कर वहाँ से बाबुुल के लिए प्रस्थान किया।
5) वह फारस में ही था, जब उसे यह समाचार मिला कि जो सेना यहूदिया पर आक्रमण करने निकली थी, वह पराजित हो कर भाग रही है।
6) लीसियस एक विशाल सेना ले कर वहा गया था, किंतु उसे यहूदियों के सामने से पीछे हट जाना पडा। अब यहूदी अपने अस्त्रों, अपने सैनिकों की संख्या और पराजित सेनाओं की लूट के कारण शक्तिशाली बन गये थे।
7) उन्होंने येरुसालेम की होम-वेदी पर अन्तियोख द्वारा स्थापित घृणित मूर्ति को ढाह दिया, पहले की तरह मंदिर के चारों ओर ऊँची दीवार बनवायी और उसके नगर बेत-सूर की भी किलाबंदी की।
8) राजा यह सुन कर चकित रह गया वह बहुत घबराया, पलंग पर लेट गया और दुःख के कारण बीमार हो गया; क्योंकि वह जो चाहता था, वह नहीं हो पाया था।
9) वह इस तरह बहुत दिनों तक पड़ा रहा, क्योंकि एक गहरा विषाद उस पर छाया रहा। तब वह समझने लगा कि वह मरने को है
10) और उसने अपने सब मित्रों को बुला कर उन से कहा, ’’मुझे पर दुःख का कितना बड़ा पहाड टूट पड़ा है! मैं तो अपने शासन के दिनों में दयालु और लोकप्रिय था’।
11) मैंने पहले अपने मन में कहा, मैं कितना कष्ट सह रहा हूँ ओर मुझ पर दुःख का कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है। मैं तो अपने शासन के दिनों दयालु और लोकप्रिय था।
12) किंतु अब मुझे याद आ रहा है कि मैंने येरुसालेम के साथ कितना अत्याचार किया- मैं वहाँ के चाँदी और सोने के पात्र चुरा कर ले गया और मैंने अकारण यूदा के निवासियों को मारने का आदेश दिया।
13) मुझे लगता है कि मैं इसी से कष्ट भोग रहा हूँ और गहरे शोक के कारण यहाँ विदेश में मर रहा हूँ’’
सुसमाचार : सन्त लूकस 20:27-40
27) इसके बाद सदूकी उनके पास आये। उनकी धारणा है कि मृतकों का पुनरूत्थान नहीं होता। उन्होंने ईसा के सामने यह प्रश्न रखा,
28) ‘‘गुरूवर! मूसा ने हमारे लिए यह नियम बनाया-यदि किसी का भाई अपनी पत्नी के रहते निस्सन्तान मर जाये, तो वह अपने भाई की विधवा को ब्याह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे।
29) सात भाई थे। पहले ने विवाह किया और वह निस्सन्तान मर गया।
30) दूसरा और
31) तीसरा आदि सातों भाई विधवा को ब्याह कर निस्सन्तान मर गये।
32) अन्त में वह स्त्री भी मर गयी।
33) अब पुनरूत्थान में वह किसकी पत्नी होगी? वह तो सातों की पत्नी रह चुकी है।’’
34) ईसा ने उन से कहा, ‘‘इस लोक में पुरुष विवाह करते हैं और स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं;
35) परन्तु जो परलोक तथा मृतकों के पुनरूत्थान के योग्य पाये जाते हैं, उन लोगों में न तो पुरुष विवाह करते और न स्त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं।
36) वे फिर कभी नहीं मरते। वे तो स्वर्गदूतों के सदृश होते हैं और पुनरूत्थान की सन्तति होने के कारण वे ईश्वर की सन्तति बन जाते हैं।
37) मृतकों का पुनरूत्थान होता हैं मूसा ने भी झाड़ी की कथा में इसका संकेत किया है, जहाँ वह प्रभु को इब्राहीम का ईश्वर, इसहाक का ईश्वर और याकूब का ईश्वर कहते है।
38) वह मृतकों का नहीं, जीवितों का ईश्वर है, क्योंकि उसके लिये सभी जीवित है।’’
39) इस पर कुछ शास्त्रियों ने उन से कहा, ‘‘गुरुवर! आपने ठीक ही कहा’’।
40) इसके बाद उन्हें ईसा से और कोई प्रश्न पूछने का साहस नहीं हुआ।