इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत जेफरीनुस (समीर)
📒पहला पाठ- 1 थेसलनीकियों 2: 1-8
1 भाइयो! आप स्वयं जानते हैं कि आप लोगों के यहाँ मेरा आगमन व्यर्थ नहीं हुआ।
2 आप जानते हैं कि हमें इसके ठीक पहले फिलिप्पी में दुव्र्यवहार और अपमान सहना पड़ा था। फिर भी हमने ईश्वर पर भरोसा रख कर, घोर विरोध का सामना करते हुए, निर्भीकता से आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया।
3 हमारा उपदेश न तो भ्रम पर आधारित है, न दूषित अभिप्राय से प्रेरित है और न उस में कोई छल-कपट है।
4 ईश्वर ने हमें योग्य समझ कर सुसमाचार सौंपा है। इसलिए हम मनुष्यों को नहीं, बल्कि हमारा हृदय परखने वाले ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उपदेश देते हैं।
5 आप लोग जानते हैं और ईश्वर भी इसका साक्षी है कि हमारे मुख से चाटुकारी बातें कभी नहीं निकलीं और न हमने लोभ से प्रेरित हो कर कुछ किया।
6 हमने मनुष्यों का सम्मान पाने की चेष्टा नहीं की – न आप लोगों का और न दूसरों का,
7 यद्यपि हम मसीह के प्रेरित होने के नाते अपना अधिकार जता सकते थे। उल्टे, अपने बच्चों का लालन-पालन करने वाली माता की तरह हमने आप लोगों के साथ कोमल व्यवहार किया।
8 आपके प्रति हमारी ममता तथा हमारा प्रेम यहाँ तक बढ़ गया था कि हम आप को सुसमाचार के साथ अपना जीवन भी अर्पित करना चाहते थे।
📙सुसमाचार – मत्ती 23:23-26
23 “ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम पुदीने, सौंफ और जीरे का दशमांश तो देते हो, किन्तु न्याय, दया और ईमानदारी, संहिता की मुख्य बातों की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना तुम्हारे लिए उचित था।
24 अन्धे नेताओ! तुम मच्छर छानते हो, किन्तु ऊँट निगल जाते हो।
25 “ढोंगी शास्त्रियो और फ़रीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम प्याले और थाली को बाहर से तो माँजते हो, किन्तु भीतर वे लूट और असंयम से भरे हुए हैं।
26 अन्धे फ़रीसी! पहले भीतर से प्याले को साफ़ कर लो, जिससे वह बाहर से भी साफ़ हो जाये।