संत जोआकिम और संत अन्ना


📙पहला पाठ- प्रवक्ता 44: 1, 10-15

1 हम पीढ़ियों के क्रमानुसार अपने लब्ध प्रतिष्ठ पूर्वजों का गुणगान करें।

10 जिन लोगों के उपकार नहीं भुलाये गये हैं, उनके नाम यहाँ दिये जायेंगे।

11 उन्होनें जो सम्पत्ति छोड़ी है, वह उनके वंशजों में निहित है।

12 उनके वंशज आज्ञाओें का पालन करते हैं

13 और उनके कारण उनकी सन्तति भी। उनका वंश सदा बना रहेगा और उनकी कीर्ति कभी नहीं मिटेगी।

14 उनके शरीर शान्ति में दफ़नाये गये और उनके नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहेंगे।

15 लोग उनकी प्रज्ञा की प्रशंसा करेंगे सभाओें में उनका गुणगान किया जायेगा।


📒सुसमाचार – मत्ती 13: 16-17

16.”परन्तु धन्य हैं तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं!

17 मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ-तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।