बारहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: मसंत जोसेमारिया
📒पहला पाठ उत्पत्ति 16: 1-12, 15-16 या उत्पत्ति 16: 6-12, 15-16
6 उस समय से सारय हागार के साथ इतना दुर्व्यवहार
करने लगी कि वह घर छोड़ कर भाग गयI
7 प्रभु के दूत ने हागार को उजाड़ प्रदेश में, शूर के रास्ते पर किसी झरने के पास पाया।
8 और उस से कहा, ‘’सारय की दासी, हागार! तुम कहाँ से आयी और कहाँ जा
रही हो?’’ उसने उत्तर दिया, ‘’मैं अपनी स्वामिनी सारय के यहाँ से भाग आयी हूँ’’?
9 प्रभु के दूत ने उस से कहा, ‘’तुम अपनी स्वामिनी के पास लौट जाओ और उसका दुर्व्यवहार सहन करो’’।
10 प्रभु के दूत ने यह भी कहा, ‘’मैं तुम्हारे वंशजों की संख्या इतनी अधिक बढ़ाऊँगा
कि कोई भी उनकी गिनती नहीं कर पायेगा’’।
11 प्रभु के दूत ने उस से यह कहा, ‘’तुम गर्भवती हो और पुत्र प्रसव करोगी। तुम उसका नाम इसमाएल रखोगी, क्योंकि प्रभु ने तुम्हारे प्रति दुर्व्यवहार के विषय में सुना।
12 वह गोरखार-जैसा मनुष्य होगा, वह सब पर हाथ उठायेगा। वह अपने सब सम्बन्धियों का विरोध करेगा”।
15 हागार से अब्राम को एक पुत्र हुआ और अब्राम ने उसका नाम इसमाएल रखा।
16 जब हागार से इसमाएल उत्पन्न हुआ, उस समय अब्राम की आयु छियासी वर्ष की थी।
📙 सुसमाचार- मत्ती 7: 21-29
21 “जो लोग मुझे ‘प्रभु! प्रभु! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।
22 उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ‘प्रभु! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकाला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’
23 तब मैं उन्हें साफ़-साफ़ बता दूँगा, ‘मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियो! मुझ से दूर हटो।’
24 “जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।
25 पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।
26 “जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।
27 पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।”
28 जब ईसा का यह उपदेश समाप्त हुआ, तो लोग उनकी शिक्षा पर आश्चर्यचकित थे;
29 क्योंकि वे उनको शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।