वर्ष का चौंतीसवाँ सामान्य सप्ताह, शनिवार
📒 पहला पाठ : प्रकाशना 22:1-7
1) इसके बाद उसने मुझे स्फटिक-जैसे संजीवन जल की नदी दिखायी, जो ईश्वर और मेमने के सिंहासन से बह रही थी।
2) नगर के चौक के बीचोंबीच बहती हुई नदी के तट पर, दोनों ओर एक जीवन-वृक्ष था, जो बारह बार, हर महीने एक बार, फल देता था। उस पेड़ के पत्तों से राष्ट्रों की चिकित्सा होती है।
3) वहाँ कुछ भी नहीं रहेगा, जो अभिशाप के यौग्य हो। वहाँ ईश्वर और मेमने का सिंहासन होगा। उसके सेवक उसकी उपासना करेंगे,
4) वे उसे आमने-सामने देखेंगे और उसका नाम उनके माथे पर अंकित होगा।
5) वहाँ फिर कभी रात नहीं होगी। उन्हें दीपक या सूर्य के प्रकाश की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि प्रभु-ईश्वर उन्हें आलोकित करेगा और वे युग-युगों तक राज्य करेंगे।
6) उसने मुझ से कहा : ”ये बातें विश्वसनीय और सत्य हैं। जो नबियों को प्रेरित करता है, उस प्रभु-ईश्वर ने अपने दूत को भेजा है, जिससे वह अपने सेवकों को निकट भविष्य में होने वाली घटनाएं दिखायें।
7) ”देखो, मैं शीघ्र ही आऊँगा। धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यवाणी का ध्यान रखता है!”
📙 सुसमाचार : लूकस 21:34-36
34) “सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे;
35) क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा।
36) इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।”