पास्का का दूसरा रविवार

आज के संत: संत जीटा

📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 5: 12-16

12 प्रेरितों द्वारा जनता के बीच बहुत-से चिह्न तथा चमत्कार हो रहे थे। सब विश्वासी एकहृदय हो कर सुलेमान के मण्डप में एकत्र हो जाया करते थे।

13 दूसरे लोगों में किसी को भी उन में सम्मिलित होने का साहस नहीं होता था, हालांकि जनता उनकी बड़ी प्रशंसा करती थी।

14 विश्वास करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी: पुरुषों तथा स्त्रियों का एक बड़ा समुदाय प्रभु की कलीसिया का सदस्य बन गया।

15 लोग रोगियों को सड़कों पर ले जा कर खटोलों तथा चारपाइयों पर लिटा देते थे, ताकि जब पेत्रुस उधर गुजरे, तो उसकी छाया उन में से किसी पर पड़ जाये।

16 येरूसालेम के आसपास के नगरों से भी लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो जाया करते थे। वे अपने साथ रोगियों तथा अशुद्ध आत्माओं से पीड़ित व्यक्तियों को ले आते थे और वे सब चंगे कर दिये जाते थे।

📙 दूसरा पाठ- प्रकाशना 1: 9-13, 17-19

9 मैं योहन हूँ, ईसा में आप लोगों का भाई और संकट, राज्य तथा धैर्य में आपका सभागी। ईश्वर के सुसमाचार का प्रचार करने तथा ईसा के विषय में साक्ष्य देने के कारण मैं पातमोस नामक टापू में पड़ा रहता था।

10 मैं प्रभु के दिन आत्मा से आविष्ट हो गया और मैं ने अपने पीछे तुरही-जैसी वाणी को उच्च स्वर से यह कहते सुना,

11 “तुम जो देख रहे हो, उसे पुस्तक में लिखो और उसे सात कलीसियाओं को भेज दो- एफेसुस, स्मुरना, पेरगामोन, थुआतिरा, सारदैस, फिलदेलफि़या और लौदीकिया को”।

12 मुझ से कौन बोल रहा है, उसे देखने के लिए मैं मुड़ा और मूड़ कर मैंने सोने के सात दीपाधार देखे,

13 और उनके बीच मानव पुत्र-जैसे एक व्यक्ति को। वह पैरों तक लम्बा वस्त्र पहने था और उसके वक्ष स्थल पर स्वर्ण मेखला बाँधी हुई थी।

17 मैं उसे देखते ही मृतक-जैसा उसके चरणों पर गिर पड़ा। उसने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रख कर कहा, “मत डरो। प्रथम और अन्तिम मैं हूँ।

18 जीवन का स्रोत मैं हूँ। मैं मर गया था और देखो, मैं। अनन्त काल तक जीवित रहूँगा। मृत्यु और अधोलोक की कुंजियां मेरे पास हैं।

19 इस लिए तुमने जो कुछ देखा- जो अभी है और जो बाद में हाने वाला है – वह सब लिखो ।

20 तुमने जिन सात तारों को मेरे दाहिने हाथ में देखा, उनका और सोने के सात दीपाधारों का रहस्य इस प्रकार है: सात तारे सात कलीसियाओं के स्वर्गदूत हैं और सात दीपाधार सात कलीसियाएं।

📘 सुसमाचार – योहन 20:19-31

19 उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, “तुम्हें शांति मिले!”

20 और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, “तुम्हें शांति मिले!

21 जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।”

22 इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, “पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!

23 तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।

24 ईसा के आने के समय बारहों में से एक थोमस जो यमल कहलाता था, उनके साथ नहीं था।

25 दूसरे शिष्यों ने उस से कहा, “हमने प्रभु को देखा है”। उसने उत्तर दिया, “जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निशान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।

26 आठ दिन बाद उनके शिष्य फिर घर के भीतर थे और थोमस उनके साथ था। द्वार बन्द होने पर भी ईसा उनके बीच आ कर खडे हो गये और बोले, “तुम्हें शांति मिले!”

27 तब उन्होने थोमस से कहा, “अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो- ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ाकर मेरी बगल में डालो और अविश्वासी नहीं, बल्कि विश्वासी बनो।”

28 थोमस ने उत्तर दिया, “मेरे प्रभु! मेरे ईश्वर!”

29 ईसा ने उस से कहा, “क्या तुम इसलिये विश्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है? धन्य हैं वे जो बिना देखे ही विश्वास करते हैं।”

30 ईसा ने अपने शिष्यों के सामने और बहुत से चमत्कार दिखाये जिनका विवरण इस पुस्तक में नहीं दिया गया है।

31 इनका ही विवरण दिया गया है जिससे तुम विश्वास करो कि ईसा ही मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो।