पास्का का छठा सप्ताह
आज के संत: संत जेरमानुस
📒 पहला पाठ- प्रेरित चरित 17: 15, 22- 18: 1
15 पौलुस के साथी उसे आथेंस ले चले और उसका यह सन्देश ले कर लौटे कि जितनी जल्दी हो सके, सीलस और तिमथी मेरे पास चले आयें।
22 परिषद् के सामने खड़ा हो कर पौलुस ने यह कहा, “आथेंस के सज्जनों! मैं देख रहा हूँ कि आप लोग देवताओं पर बहुत अधिक श्रद्धा रखते हैं।
23 आपके मन्दिरों का परिभ्रमण करते समय मुझे एक वेदी पर यह अभिलेख मिला- ’अज्ञात देवता को’। आप लोग अनजाने जिसकी पूजा करते हैं, मैं उसी के विषय में आप को बताने आया हूँ।
24 जिस ईश्वर ने विश्व तथा उस में जो कुछ है, वह सब बनाया है, और जो स्वर्ग और पृथ्वी का प्रभु है, वह हाथ से बनाये हुए मन्दिरों में निवास नहीं करता।
25 वह इसलिए मनुष्यों की पूजा स्वीकार नहीं करता कि उसे किसी वस्तु का अभाव है। वह तो सभी को जीवन, प्राण और सब कुछ प्रदान करता है।
26 उसने एक ही मूलपुरुष से मानव जाति के सब राष्ट्रों की सृष्टि की और उन्हें सारी पृथ्वी पर बसाया। उसने उनके इतिहास के युग और उनके क्षेत्रों के सीमान्त निर्धारित किये।
27 यह इसलिए हुआ कि मनुष्य ईश्वर का अनुसन्धान सकें और उसे खोजते हुए सम्भवतः उसे प्राप्त करें, यद्यपि वास्तव में वह हम में से किसी से भी दूर नहीं है;
28 क्योंकि उसी में हमारा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है। जैसा कि आपके कुछ कवियों ने कहा है, हम भी उसके वंशज हैं।
29 यदि हम ईश्वर के वंशज हैं, तो हमें यह नहीं समझना चाहिए कि परमात्मा सोने, चाँदी या पत्थर की मूर्ति के सादृश्य रखता है, जो मनुष्य की कला तथा कल्पना की उपज है।
30 ईश्वर ने अज्ञान के युगों का लेखा लेना नहीं चाहा, परन्तु अब उसकी आज्ञा यह है कि सर्वत्र सभी मनुष्य पश्चात्ताप करें;
31 क्योंकि उसने वह दिन निश्चित किया है, जिस में वह एक पूर्व निर्धारित व्यक्ति द्वारा समस्त संसार का न्यायपूर्वक विचार करेगा। ईश्वर ने उस व्यक्ति को मृतकों में से पुनर्जीवित कर सबों को अपने इस निश्चय का प्रमाण दिया है।”
32 मृतकों के पुनरुत्थान की चर्चा सुनते ही कुछ लोगों ने उपहास किया और कुछ लोगों ने यह कहा, “इस विषय पर हम फिर कभी आपकी बात सुनेंगे”।
33 इसलिए पौलुस उन्हें छोड़ कर चला गया।
34 फिर भी कई व्यक्ति उसके साथ हो लिये और विश्वासी बन गये: जैसे परिषद् का सदस्य दियोनिसियुस, दामरिस नामक महिला और अन्य लोग भी।
1 इसके बाद पौलुस आथेंस छोड़ कर कुरिन्थ आया,
📙 सुसमाचार – योहन 16: 12-15
12 मुझे तुम लोगों से और बहुत कुछ कहना है परन्तु अभी तुम वह नहीं सह सकते।
13 जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि वह जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बतायेगा।
14 वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।
15 जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिये मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।