पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 2:31-45

31) राजा! आपने यह दिव्य दृश्य देखा। एक विशाल, देदीप्यमान और भीषण मूर्ति आपके सामने खड़ी थी।

32) उस मूर्ति का सिर सोने का था, उसकी छाती और भुजाएँ चाँदी की थी, उसका पेट और कमर पीतल की,

33) उसकी जाँघें लोहे की और उसके पैर अंशतः लोहे के और अंशतः मिट्टी के थे।

34) आप उसे देख ही रहे थे कि एक पत्थर अचानक अपने आप गिरा, उस मूर्ति के लोहे और मिट्टी के पैरों पर लगा गया और उसने उनके टूकडे-टुकड़े कर डाले।

35) उसी समय लोहा, मिट्टी, पीतल, चाँदी और सोना सब चूर-चूर हो क्रर हो कर ग्रीष्म-ऋतु की भूसी की तरह पवन द्वारा उड़ा लिया गया और उसका कुछ भी शेष नहीं रहा। जो पत्थर मूर्ति पर लग गया था, वह समस्त पृथ्वी को ढकने वाला विशाल पर्वत बन गया।

36) यह था आपका स्वप्न। अब मैं आप को उसका अर्थ बताऊँगा।

37) राजा! आप राजाओं को राजा हैं।

38) स्वर्ग के ईश्वर ने आप को राजत्व, अधिकार, सामर्थ्य और सम्मान प्रदान किया। उसने मनुयों, मैदान के पशुओं और आकाश के पक्षियों को- वे चाहें कहीं भी निवास करें- आपके हाथों सौंपा और आप को सब का अधिपति बना दिया। मूर्ति के सोने का सिर आप ही हैं।

39) आपके बाद का दूसरा राज्य आयेगा। वह आपके राज्य से कम वैभवशाली होगा और इसके बाद एक तीसरा राज्य, जो पीतल का होगा और समस्त पृथ्वी पर शासन करेगा।

40) चैथा राज्य लोहे की तरह मजबूत होगा। जिस प्रकार लोहा सब कुछ पीस कर चूर कर सकता है, उसी प्रकार वह राज्य पहले के राज्यों को चूर-चूर कर नष्ट कर देगा।

41) आपने देखा है कि वे पैर अंशतः मिट्टी के और अशंतः लोहे के थे- इसका अर्थ है कि उस राज्य में फूट होगी।

42) उस में लोहे की शक्ति होगी, क्योंकि आपने देखा है कि मिट्टी में लोहा मिला हुआ था।

43) उसके पैर अशंतः लाहेे और अशंत: मिट्टी के थे- इसका अर्थ यह है कि उस राज्य का एक भाग शक्तिशाली और एक भाग दुर्बल होगा। आपने देखा है कि लोहा मिट्टी से मिला हुआ था- इसका अर्थ है कि विवाह-सम्बन्ध द्वारा राज्य के भागों को मिलाने का प्रयत्न किया जायेगा, किन्तु वे एक नहीं हो जायेंगे जिस तरह लोहा मिट्टी से एक नहीं हो सकता है।

44) ’’इन राज्यों के समय स्वर्ग का ईश्वर एक ऐसे राज्य की स्थापना करेगा, जो अनंत काल तक नष्ट नहीं होगा और जो दूसरे राष्ट्र के हाथ नहीं जायेगा। वह इन राज्यों को चूर-चूर कर नष्ट कर देगा और सदा बना रहेगा।

45) आपने देखा है कि अपने आप पर्वत पर से एक पत्थर गिर गया और उसने लोहा, पीतल, मिट्टी चाँदी और सोने को चूर-चूर कर दिया है, महान् ईश्वर ने राजा को सूचित किया कि भविय में क्या होने वाला है। यह स्वप्न सच्चा है और इसकी व्याख्या विश्वसनीय है।’’

सुसमाचार : सन्त लूकस 21:5-11

5) कुछ लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और मनौती के उपहारों से सजा है। इस पर ईसा ने कहा,

6) ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब जो कुछ तुम देख रहे हो, उसका एक पत्थर भी दूसरे पत्थर पर नहीं पड़ा रहेगा-सब ढा दिया जायेगा’’।

7) उन्होंने ईसा से पूछा, ‘‘गुरूवर! यह कब होगा और किस चिन्ह से पता चलेगा कि यह पूरा होने को है?’’

8) उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये; क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम ले कर आयेंगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘वह समय आ गया है’। उसके अनुयायी नहीं बनोगे।

9) जब तुम युद्धों और क्रांतियों की चर्चा सुनोगे, तो मत घबराना। पहले ऐसा हो जाना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।’’

10) तब ईसा ने उन से कहा, ‘‘राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र उठ खड़ा होगा और राज्य के विरुद्ध राज्य।

11) भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पड़ेगा। आतंकित करने वाले दृश्य दिखाई देंगे और आकाश में महान् चिन्ह प्रकट होंगे।