आगमन का पहला सप्ताह, सोमवार
📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 4:2-6
2) उस दिन प्रभु का लगाया पौधा रमणीय और शोभायमान बन जायेगा और पृथ्वी की उपज बचे हुए इस्राएलियों का गोरव और वैभव होगी।
3) येरूसालेम में रहने वाली सियोन की बची हुई प्रजा और वे लोग, जिनके नाम जीवन-ग्रन्थ में लिखे हुए हैं – वे सब ‘सन्त’ कहलायेंगे।
4) प्रभु न्याय तथा विनाश का झंझावात भेज कर सियोन की पुत्रियों का कलंक दूर करेगा और येरूसालेम में बहाया हुआ रक्त धो डालेगा।
5) तब प्रभु समस्त सियोन पर्वत और उसके सब निवासियों पर दिन के समय बादल उत्पन्न करेगा और रात के समय देदीप्यमान अग्नि का प्रकाश। इस प्रकार समस्त पर्वत के ऊपर प्रभु की महिमा वितान की तरह फैली रहेगी।
6) वह दिन में गरमी से रक्षा के लिए छाया प्रदान करेगी और आँधी तथा वर्षा में आश्रय और शरण प्रदान करेगी।
📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती 8:5-11
5) ईसा कफरनाहूम में प्रवेश कर ही रहे थे कि एक शतपति उनके पास आया और उसने उन से यह निवेदन किया,
6) ’’प्रभु! मेरा नौकर घर में पड़ा हुआ है। उसे लक़वा हो गया है और वह घोर पीड़ा सह रहा है।’’
7) ईसा ने उस से कहा, ’’मैं आ कर उसे चंगा कर दूँगा’’।
8) शतपति नें उत्तर दिया, ’’प्रभु! मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर चंगा हो जायेगा।
9) मैं एक छोटा-सा अधिकारी हूँ। मेरे अधीन सिपाही रहते हैं। जब मैं एक से कहता हूँ- ’जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से- ’आओ’, तो वह आता है और अपने नौकर से-’यह करो’, तो वह यह करता है।’’
10) ईसा यह सुन कर चकित हो गये और उन्होंने अपने पीछे आने वालों से कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ-इस्राएल में भी मैंने किसी में इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया’’।
11) ’’मैं तुम से कहता हूँ- बहुत से लोग पूर्व और पश्चिम से आ कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब के साथ स्वर्गराज्य के भोज में सम्मिलित होंगे,