चालीसे का चौथा सप्ताह

आज के संत: संत रिचर्ड

📒 पहला पाठ- निर्गमन 32: 7-14

7 तुम इस्राएलियों को उस देश में जाने के लिए क्यों निरुत्साह करते हो, जिसे प्रभु ने उन्हें दिया है?

8 तुम्हारे पूर्वजों ने भी यही किया था, जब मैंने उन्हें उस देश का भेद लेने के लिए कादेश-बरनेअ से वहाँ भेजा था।

9 वे एशकोल घाटी तक गये थे और उन्होंने देश का निरीक्षण भी किया था, किन्तु उसके बाद उन्होंने इस्राएलियों को इतना निरुत्साह कर दिया था कि वे प्रभु के दिये उस देश में जाने से इन्कार करने लगे।

10 उस दिन प्रभु ने क्रोध में आ कर यह शपथ ली थी कि

11 बीस साल और इस से ऊपर का कोई भी पुरुष, जो मिस्र से बाहर आया था, वह देश नहीं देख सकेगा, जिसे मैंने शपथपूर्वक इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने की प्रतिज्ञा की। यह इसलिए हुआ था कि उन्होंने सारे हृदय से मेरा अनुसरण नहीं किया था-

12 सिवा यफुन्ने के पुत्र कनिज्ज़ी कालेब और नून के पुत्र योशुआ के, जिन्होंने सारे हृदय से प्रभु का अनुसरण किया था।

13 इस पर प्रभु ने क्रोध में आ कर इस्राएलियों को चालीस वर्ष तक उजाड़खण्ड में तब तक भटकने दिया था, जब तक वह पूरी पीढ़ी मर नहीं गयी, जिसने प्रभु को अप्रसन्न किया था।

14 अब तुम, पापियों की सन्तान, अपने पूर्वजों के बदले, इस्राएलियों के विरुद्ध प्रभु का क्रोध भड़काने आये हो।

📙 सुसमाचार – योहन 5: 31-47

31 “यदि मैं अपने विषय में साक्ष्य देता हूँ, तो मेरा साक्ष्य मान्य नहीं है।

32 कोई दूसरा मेरे विषय में साक्ष्य देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे विषय में जो साक्ष्य देता है, वह मान्य है।

33 तुम लोगों ने योहन से पुछवाया और उसने सत्य के सम्बन्ध में साक्ष्य दिया।

34 मुझे किसी मनुष्य के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं। मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम लोग मुक्ति पा सको।

35 योहन एक जलता और चमकता हुआ दीपक था। उसकी ज्योति में थोड़ी देर तक आनन्द मनाना तुम लोगों को अच्छा लगा।

36 परन्तु मुझे जो साक्ष्य प्राप्त है, वह योहन के साक्ष्य से भी महान् है। पिता ने जो कार्य मुझे पूरा करने को सौंपे हैं, जो कार्य मैं करता हूँ, वही मेरे विषय में यह साक्ष्य देते हैं कि मुझे पिता ने भेजा है।

37 पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा, मेरे विषय में साक्ष्य दिया है। तुम लोगों ने न तो कभी उसकी वाणी सुनी और न उसका रूप ही देखा।

38 उसकी शिक्षा तुम लोगों के हृदय में घर नहीं कर सकी, क्योंकि तुम उस में विश्वास नहीं करते, जिसे उसने भेजा।

39 तुम लोग यह समझ कर धर्मग्रंथ का अनुशीलन करते हो कि उस में तुम्हें अनन्त जीवन का मार्ग मिलेगा। वही धर्मग्रन्ध मेरे विषय में साक्ष्य देता है,

40 फिर भी तुम लोग जीवन प्राप्त करने के लिए मेरे पास आना नहीं चाहते।

41 मैं मनुष्यों की ओर से सम्मान नहीं चाहता।

42 “मैं तुम लोगों के विषय में जानता हूँ कि तुम ईश्वर से प्रेम नहीं करते।

43 मैं अपने पिता के नाम पर आया हूँ, फिर भी तुम लोग मुझे स्वीकार नहीं करतें यदि कोई अपने ही नाम पर आये, तो तुम लोग उस को स्वीकार करोगे।

44 तुम लोग एक दूसरे से सम्मान चाहते हो और वह सम्मान नहीं चाहते, जो एक मात्र ईश्वर की ओर से आता है? तो तुम लोग कैसे विश्वास कर सकते हो?

45 यह न समझो कि मैं पिता के सामने तुम लोगों पर अभियोग लगाऊँगा। तुम पर अभियोग लगाने वाले तो मूसा हैं, जिन पर तुम भरोसा रखते हो।

46 यदि तुम लोग मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते; क्योंकि उन्होंने मेरे विषय में लिखा है।

47 यदि तुम लोग उनके लेखों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी शिक्षा पर कैसे विश्वास करोगे?”