अठारहवाँ सामान्य सप्ताह
संत योहन मरिया वियाने
📒पहला पाठ- गणना 11: 4-15
4 उनके साथ चलने वाले छोटे लोग स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित हो उठे और इस्राएली भी विलाप करने लगे। उन्होंने यह कहा, ”कौन हमें खाने के लिए मांस देगा?
5 हाय! हमें याद आता है कि हम मिस्र में मुफ़्त मछली खाते थे, साथ ही खीरा, तरबूज, गन्दना, प्याज और लहसुन।
6 अब तो हम भूखों मर रहे हैं – हमें कुछ भी नहीं मिलता। मन्ना के सिवा हमें और कुछ दिखाई नहीं देता।”
7 मन्ना धनिया के बीज-जैसा था। उसका रूप-रंग गुग्गुल के सदृश था।
8 लोग उसे बटोरने जाते थे, चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे, और बरतनों में उबाल कर उसकी रोटियाँ पकाते थे। उसका स्वाद तेल में तली हुई पूरी-जैसा था
9 जब रात को ओस शिविर पर उतरती थी, तो मन्ना भी गिरता था।
10 मूसा ने लोगों को, हर परिवार को अपने-अपने तम्बू के द्वार पर विलाप करते सुना। प्रभु का क्रोध भड़क उठा। मूसा को यह बहुत बुरा लगा
11 और उसने प्रभु से यह कहा, ”तू अपने दास को इतना दुःख क्यों दे रहा है? तू मुझ पर इतना अप्रसन्न क्यों है कि तूने इस प्रजा का पूरा भार मुझ पर ही डाल दिया है?
12 क्या मैंने इसे उत्पन्न किया है, जो तू मुझ से कहता है – जिस तरह दाई दूध-पीते बच्चे को सँभालती है, तुम इसे गोद में उठा कर उस देश ले जाओ, जिसे मैंने इसके पूर्वजों को देने की शपथ खायी है।
13 मैं इन सब लोगों के लिए कहाँ से मांस ले आऊँ! वे विलाप करते हुए मुझ से कहते हैं, ‘हमें खाने के लिए मांस दीजिए’।
14 मैं अकेले ही इस प्रजा को नहीं सँभाल सकता, मैं यह भार उठाने में असमर्थ हूँ।
15 यदि मेरे साथ तेरा यही व्यवहार हो, तो यह अच्छा होता कि तू मुझे मार डालता। यह संकट मुझ से दूर करने की कृपा कर।”
📙सुसमाचार – मत्ती 14: 13-21
13 ईसा यह समाचार सुन कर वहाँ से हट गये और नाव पर चढ़ कर एक निर्जन स्थान की ओर चल दिये। जब लोगों को इसका पता चला, तो वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उनकी खोज में चल पड़े।
14 नाव से उतर कर ईसा ने एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया और उन्होंने उनके रोगियों को अच्छा किया।
15 सन्ध्या होने पर शिष्य उनके पास आ कर बोले, “यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे गाँवों में जा कर अपने लिए खाना खरीद लें।”
16 ईसा ने उत्तर दिया, “उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं। तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो।”
17 इस पर शिष्यों ने कहा, “पाँच रोटियों और दो मछलियों के सिवा यहाँ हमारे पास कुछ नहीं है”।
18 ईसा ने कहा, “उन्हें यहाँ मेरे पास ले आओ”।
19 “ईसा ने लोगों को घास पर बैठा देने का आदेश दे कर, वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले लीं। उन्होंने स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को दीं और शिष्यों ने लोगों को।
20 सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये।
21 भोजन करने वालों में स्त्रियों और बच्चों के अतिरिक्त लगभग पाँच हज़ार पुरुष थे।