पास्का का तीसरा रविवार

आज के संत: संत फ्लोरियनपहला

📒पाठ- प्रेरित चरित 5: 27-32, 40-41

27 उन्होंने प्रेरितों को ला कर महासभा के सामने पेश किया। प्रधानयाजक ने उन से कहा,

28 हमने तुम लोगों को कड़ा आदेश दिया था कि वह नाम ले कर शिक्षा मत दिया करो, परन्तु तुम लोगों ने येरूसालेम के कोने-कोने में अपनी शिक्षा का प्रचार किया है और उस मनुष्य के रक्त की जिम्मेवारी हमारे सिर पर मढ़ना चाहते हो”।

29 इस पर पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने यह उत्तर दिया, “मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है।

30 आप लोगों ने ईसा को क्रूस के काठ पर लटका कर मार डाला था, किन्तु हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने उन्हें पुनर्जीवित किया।

31 ईश्वर ने उन्हें शासक तथा मुक्तिदाता का उच्च पद दे कर अपने दाहिने बैठा दिया है, जिससे वह उनके द्वारा इस्राएल को पश्चाताप और पापक्षमा प्रदान करे।

32 इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी, जिसे ईश्वर ने उन लोगों को प्रदान किया है, जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।”

40 वे उसकी बात मान गये। उन्होंने प्रेरितों को बुला भेजा, उन्हें कोड़े लगवाये और यह कड़ा आदेश दे कर छोड़ दिया कि तुम लोग ईसा का नाम ले कर उपदेश मत दिया करो।

41 प्रेरित इसलिए आनन्दित हो कर महासभा के भवन से निकले कि वे {ईसा के} नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये।

📙दूसरा पाठ- प्रकाशना 5: 11-14

11 मेरे सामने वह दृश्य चलता रहा और मैंने सिंहासन, प्राणियों और वयोवृद्धों के चारों ओर खड़े बहुत-से स्वर्गदूतों की आवाज सुनी-उनकी संख्या लाखों और करोड़ों थी।

12 वे ऊँचे स्वर से कह रहे थे, “बलि चढ़ाया हुआ मेमना सामर्थ्य, वैभव, प्रज्ञा, शक्ति, सम्मान, महिमा तथा स्तुति का अधिकारी है”।

13 तब मैंने समस्त सृष्टि को- आकाश और पृथ्वी के, पृथ्वी के नीचे और समुद्र के अन्दर के प्रत्येक जीव को- यह कहते सुना, “सिंहासन पर विराजमान को तथा मेमने को युगानुयुग स्तुति, सम्मान, महिमा तथा सामर्थ्य!”

14 और चार प्राणी बोले, “आमेन” और वयोवृद्धों ने मुँह के बल गिर कर दण्डवत् किया।

📘सुसमाचार – योहन 21: 1-19 या योहन 21: 1-14

1 बाद में ईसा तिबेरियस के समुद्र के पास, अपने शिष्यों को फिर दिखाई दिये। यह इस प्रकार हुआ।

2 सिमोन पेत्रुस, थोमस जो यमल कहलाता था, नथनाएल, जो गलीलिया के काना का निवासी था, ज़ेबेदी के पुत्र और ईसा के दो अन्य शिष्य साथ थे।

3 सिमोन पेत्रुस ने उन से कहा, “मैं मछली मारने जा रहा हूँ”। वे उस से बोले, “हम भी तुम्हारे साथ चलते हैं”। वे चल पडे और नाव पर सवार हुये, किन्तु उस रात उन्हें कुछ नहीं मिला।

4 सबेरा हो ही रहा था कि ईसा तट पर दिखाई दिये; किन्तु शिष्य उन्हें नही पहचान सके।

5 ईसा ने उन से कहा, “बच्चों! खाने को कुछ मिला?” उन्होने उत्तर दिया, “जी नहीं”।

6 इस पर ईसा ने उन से कहा, “नाव की दाहिनी ओर जाल डाल दो और तुम्हें मिलेगा”। उन्होंने जाल डाला और इतनी मछलियाँ फस गयीं कि वे जाल नहीं निकाल सके।

7 तब उस शिष्य ने, जिसे ईसा प्यार करते थे, पेत्रुस से कहा, “यह तो प्रभु ही हैं”। जब पेत्रुस ने सुना कि यह प्रभु हैं, तो वह अपना कपड़ा पहन कर- क्योंकि वह नंगा था- समुद्र में कूद पडा।

8 दूसरे शिष्य मछलियेां से भरा जाल खीचतें हुये डोंगी पर आये। वे किनारे से केवल लगभग दो सौ हाथ दूर थे।

9 उन्होंने तट पर उतरकर वहाँ कोयले की आग पर रखी हुई मछली देखी और रोटी भी।

10 ईसा ने उन से कहा, “तुमने अभी-अभी जो मछलियाँ पकडी हैं, उन में से कुछ ले आओ।

11 सिमोन पेत्रुस गया और जाल किनारे खीचं लाया। उस में एक सौ तिरपन बड़ी बड़ी मछलियाँ थी और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल नहीं फटा था।

12 ईसा ने उन से कहा, “आओ जलपान कर लो”। शिष्यों में किसी को भी ईसा से यह पूछने का साहस नहीं हुआ कि आप कौन हैं। वे जानते थे कि वह प्रभु हैं।

13 ईसा अब पास आये। उन्होंने रोटी ले कर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी।

14 इस प्रकार ईसा मृतकों में से जी उठने के बाद तीसरी बार अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुये।

15 जलपान के बाद ईसा ने सिमोन पेत्रुस से कहा, “सिमोन योहन के पुत्र! क्या इनकी अपेक्षा तुम मुझे अधिक प्यार करते हो?” उसने उन्हें उत्तर दिया, “जी हाँ प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ”। उन्होंने पेत्रुस से कहा, “मेरे मेमनों को चराओ”।

16 ईसा ने दूसरी बार उस से कहा, “सिमोन, योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” उसने उत्तर दिया, “जी हाँ प्रभु! आप जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ”। उन्होंने पेत्रुस से कहा, “मेरी भेडों को चराओ”।

17 ईसा ने तीसरी बार उस से कहा, “सिमोन योहन के पुत्र! क्या तुम मुझे प्यार करते हो?” पेत्रुस को इस से दुःख हुआ कि उन्होंने तीसरी बार उस से यह पूछा, ’क्या तुम मुझे प्यार करते हो’ और उसने ईसा से कहा, “प्रभु! आप को तो सब कुछ मालूम है। आप जानते हैं कि मैं आपको प्यार करता हूँ।“ ईसा ने उससे कहा, मेरी भेड़ों को चराओ”।

18 “मैं तुम से यह कहता हूँ – जवानी में तुम स्वयं अपनी कमर कस कर जहाँ चाहते थे, वहाँ घूमते फिरते थे; लेकिन बुढ़ापे में तुम अपने हाथ फैलाओगे और दूसरा व्यक्ति तुम्हारी कमर कस कर तुम्हें वहाँ ले जायेगा। जहाँ तुम जाना नहीं चाहते।”

19 इन शब्दों से ईसा ने संकेत किया कि किस प्रकार की मृृत्यु से पेत्रुस द्वारा ईश्वर की महिमा का विस्तार होगा। ईसा ने अंत में पेत्रुस से कहा, “मेरा अनुसरण करो”।