अठारहवाँ सामान्य सप्ताह
संत मरियम के महामंदिर का प्रतिष्ठान
📒पहला पाठ- गणना 12: 1-13
1 मूसा ने एक इथोपियाई स्त्री से विवाह किया था। इस इथोपियाई पत्नी के कारण मिरयम और हारून मूसा की निन्दा करने लगे।
2 उन्होंने कहा, ”क्या प्रभु केवल मूसा के द्वारा बोला है? क्या वह हमारे द्वारा भी नहीं बोला है?” प्रभु ने यह सुना।
3 मूसा अत्यन्त विनम्र था। वह पृथ्वी के सब मनुष्यों में सब से अधिक विनम्र था।
4 प्रभु ने तुरन्त मूसा, हारून और मिरयम से कहा, ”तुम तीनों दर्शन-कक्ष जाओ”। तीनों वहाँ गये।
5 तब प्रभु बादल के खम्भे के रूप में उतर कर तम्बू के पास खड़ा हो गया। उसने हारून और मिरयम को बुलाया। दोनों आगे बढ़े
6 और प्रभु ने उन से कहा, ”मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हारे नबियों को दिव्य दर्शनों में दिखाई देता हूँ और स्वप्नों में उन से बातें करता हूँ।
7 मैं अपने सेवक मूसा के साथ ऐसा नहीं करता। मेरी सारी प्रजा में वही विश्वसनीय है।
8 मैं उसे पहेली नहीं बुझाता, बल्कि आमने-सामने स्पष्ट रूप से बातें करता हूँ। वह प्रभु का स्वरूप देखता है। मेरे सेवक मूसा की निन्दा करने में तुम्हें डर क्यों नहीं लगा?”
9 प्रभु का क्रोध उन पर भड़क उठा और वह उन्हें छोड़ कर चला गया।
10 तब बादल तम्बू पर से हट गया और मिरयम का शरीर कोढ़ से बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो गया। हारून ने मिरयम की ओर मुड़ कर देखा कि वह कोढ़िन हो गयी है।
11 हारून ने मूसा से कहा, ”महोदय! हमने मूर्खतावश पाप किया है। कृपया हमें उसका दण्ड न दिलायें।
12 मिरयम को उस मृतजात शिशु के सदृश न रहने दें, जिसका शरीर जन्म के समय आधा गला हुआ है।”
13 मूसा ने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना की, ”ईश्वर! इसका रोग दूर करने की कृपा कर।”
📙सुसमाचार – मत्ती 14: 22-36
22 इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा कर देंगे।
23 ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढ़े। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।
24 नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।
25 रात के चौथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।
26 जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, “यह कोई प्रेत है”, डर के मारे चिल्ला उठे।
27 ईसा ने तुरन्त उन से कहा, “ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।”
28 पेत्रुस ने उत्तर दिया, “प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए”।
29 ईसा ने कहा, “आ जाओ”। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;
30 किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा, तो चिल्ला उठा, “प्रभु! मुझे बचाइए”।
31 ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, “अल्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?
32 वे नाव पर चढ़े और वायु थम गयी।
33 जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया, “आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं”।
34 वे पार उतर कर गेनेसरेत पहुँचे।
35 वहाँ के लोगों ने ईसा को पहचान लिया और आसपास के सब गाँवों में इसकी ख़बर फैला दी। वे सब रोगियों को ईसा के पास ले आ कर
36 उन से अनुनय-विनय करते थे कि वे उन्हें अपने कपड़े का पल्ला भर छूने दें। जितनों ने उनका स्पर्श किया, वे सब-के-सब अच्छे हो गये।