चौदहवाँ सामान्य रविवार
आज के संत: संत मरियम गोरेती
📒पहला पाठ इसायस 66: 10-14
10 “ येरुसालेम के साथ आनन्द मनाओ। तुम, जो येरुसालेम को प्यार करते हो, उसके कारण उल्लास के गीत गाओ। तुम, जो उसके लिए विलाप करते थे, उसके कारण आनन्दित हो जाओ,
11 जिससे तुम उसकी संतान होने के नाते सान्त्वना का दूध पीते हुए तृप्त हो जाओ और उसकी गोद में बैठ कर उसकी महिमा पर गौरव करो“;
12 क्योंकि प्रभु यह कहता है, “मैं शान्ति को नदी की तरह और राष्ट्रों की महिमा को बाढ़ की तरह येरुसालेम की ओर बहा दूँगा। उसकी सन्तान को गोद में उठाया और घुटनों पर दुलारा जायेगा।
13 जिस तरह माँ अपने पुत्र को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम्हें सान्त्वना दूँगा। तुम्हें येरुसालेम से दिलासा मिलेगा।“
14 तुम्हारा हृदय यह देख कर आनन्दित हो उठेगा, तुम्हारी हड्डियाँ हरी-भरी घास की तरह लहलहा उठेंगी। प्रभु अपने सेवकों के लिए अपना सामर्थ्य, किंतु अपने शत्रुओं पर अपना क्रोध प्रदर्शित करेगा।
📙दूसरा पाठ- गलातियों 6: 14-18
14 मैं केवल हमारे प्रभु ईसा मसीह के क्रूस पर गर्व करता हूँ। उन्हीं के कारण संसार मेरी दृष्टि में मर गया है और मैं संसार की दृष्टि में।
15 किसी का खतना हुआ हो या नहीं, इसका कोई महत्व नहीं। महत्व इस बात का है कि हम पूर्ण रूप से नयी सृष्टि बन जाये।
16 इस सिद्धान्त के अनुसार चलने वालों को और ईश्वर के इस्राएल को शान्ति और दया मिले!
17 अब से कोई मुझे तंग न करें। ईसा के चिह्न मेरे शरीर पर अंकित हैं।
18 भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा आप लोगों पर बनी रहे! आमेन।
📘सुसमाचार – लूकस 10:1-12, 17-20
1 इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।
2 उन्होंने उन से कहा, “फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।
3 जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।
4 तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।
5 जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’
6 यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।
7 उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।
8 जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।
9 वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।
10 परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाज़ारों में जा कर कहो,
11 ’अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।’
12 मैं तुम से यह कहता हूँ – न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।
17 बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, “प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन होते हैं”।
18 ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैंने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा।
19 मैंने तुम्हें साँपों, बिच्छुओं और बैरी की सारी शक्ति को कुचलने का सामर्थ्य दिया है। कुछ भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकेगा।
20 लेकिन, इसलिए आनन्दित न हो कि अपदूत तुम्हारे अधीन हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।”