सत्ताईसवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत ब्रूनो (कपिल)
📒पहला पाठ योना 1:1-16:2:1, 11
1 प्रभु की वाणी अमित्तय के पुत्र योना के यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
2 “उठों! महानगर निनीवे जा कर वहाँ के लोगों को डाँटो, क्योंकि मैं उनकी बुराई को अनदेखा नहीं कर सकता”।
3 किन्तु योना ने प्रभु के सामने से भाग कर तरशीश के लिए प्रस्थान किया। यह याफा पहुँख और उसे वहाँ तरशीश जाने वाला जहाज मिला। उसने किराया दिया और प्रभु के सामने से तरशीश भागने के उद्देश्य से वह नाव पर सवार हो गया।
4 प्रभु ने समुद्र पर जोरों की आँधी भेजी और समुद्र में ऐसा भयंकर तूफान पैदा हुआ कि जहाज टूटने-टूटने को हो गया।
5 मल्लाहों पर भय छा गया और वे अपने-अपने देवता की दुहाई देने लगे। उन्होंने जहाज का भार कम करने के लिए सामान समुद्र में फेंक दिया। योना जहाज के भीतरी भाग में उतर कर लेट गया था और गहरी नींद सो रहा था।
6 कप्तान ने उसके पास आ कर कहा, “सोते क्यों हो? उठ कर अपने ईश्वर की दुहाई दो। वह ईश्वर शायद हमारी सुध ले, जिससे हमारा विनाश न हो।”
7 इसके बाद मल्लाह एक दूसरे से कहने लगे, “आओ! हम चिट्ठि डाल कर देखें कि किस व्यक्ति के कारण यह विपत्ति हम पर आयी है”। उन्होंने चिट्ठि डाली और योना का नाम निकला।
8 उन्होंने उस से कहा, “हमें अपना परिचय दो। तुम कहाँ से आये? तुम किस देश के निवासी हो? किस राष्ट्र के सदस्य हो?”
9 उसने उन्हें उत्तर दिया, “मैं इब्रानी हूँ। मैं स्वर्ग के ईश्वर, प्रभु पर श्रद्धा रखता हूँ, जिससे समुद्र और पृथ्वी बनायी है।”
10 महल्लाह यह सुन कर बहुत डर गये और उन्होंने उस से कहा, “तुमने ऐसा क्यों किया?” योना ने उन्हें बताया था कि वह प्रभु के सामने से भाग गया था।
11 तब उन्होंने उस से पूछा, “हम तुम्हारे साथ क्या करें जिससे समुद्र हमारे लिए शांत हो जाये?” क्योंकि समुद्र में तूफान बढता जा रहा था।
12 उसने उन्हें उत्तर दिया, “मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो और समुद्र तुम्हारे लिए शान्त हो जायेगा; क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे ही कारण यह भयंकर तूफान तुम लोगों को सता रहा है।”
13 इस पर मल्लाहों ने डाँड़ के सहारे जहाज़ को किनारे तक पहुँचाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि समुद्र में उनके चारों ओर ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।
14 तब उन्होंने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना की, “प्रभु! इस मनुष्य की हत्या से हमारा विनाश न हो। तू हम पर निर्दोष रक्त बहाने का अभियोग नहीं लगा; क्योंकि, प्रभु! तूने चाहा कि ऐसा हो।”
15 इस पर उन्होंने योना को उठा कर समुद्र में फेंक दिया और समुद्र शान्त हो गया।
16 मल्लाह प्रभु से बहुत डर गये। उन्होंने प्रभु को बलि चढायी और मन्नतें मानीं।
1 प्रभु के आदेशानुसार एक मच्छ योना को निगल गया और योना तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में पडा रहा।
11 इसके बाद प्रभु ने मच्छ को आदेश दिया और उसने योना को तट पर उगल दिया।
📙सुसमाचार- लूकस 10: 25-37
25 किसी दिन एक शास्त्री आया और ईसा की परीक्षा करने के लिए उसने यह पूछा, “गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”
26 ईसा ने उस से कहा, “संहिता में क्या लिखा है?” तुम उस में क्या पढ़ते हो?”
27 उसने उत्तर दिया, “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो”।
28 ईसा ने उस से कहा, “तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे।”
29 इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए ईसा से कहा, “लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?”
30 ईसा ने उसे उत्तर दिया, “एक मनुष्य येरूसालेम से येरीख़ो जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये।
31 संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया।
32 इसी प्रकार वहाँ एक लेवी आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया।
33 इसके बाद वहाँ एक समारी यात्री आया और उसे देख कर उस को तरस हो आया।
34 वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँधी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा शुश्रूषा की।
35 दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उस से कहा, ’आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और ख़र्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।’
36 तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?”
37 उसने उत्तर दिया, “वही जिसने उस पर दया की”। ईसा बोले, “जाओ, तुम भी ऐसा करो”।