चालीसे का पाँचवाँ सप्ताह

आज के संत: संत योहन बपतिस्ता दे ला साल

📒 पहला पाठ – दानिएल 13: 1-9, 15-17, 19-30, 33-62 या दानिएल 13: 41-62

लोगों ने सुसन्ना को प्राणदण्ड की आज्ञा दी।

42 इस पर सुसन्ना ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा,

43 “शाश्वत ईश्वर! तू सब रहस्य और भविय में होने वाली घटनाएँ जानता है। तू जानता है कि इन्होंने मेरे विरुद्ध झूठी गवहाी दी है। इन्होंने जिन बुरी बातों का अभियोग मुझ पर लगाया है, मैंने उन में से एक भी नहीं किया- फिर भी मुझे मरना होगा।”

44 ईश्वन ने उसकी सुन ली। जब लोग उसे प्राणदण्ड के लिए ले जा रहे थे,

45 तो ईश्वर ने दानिएल नामक युवक में एक दिव्य प्रेरणा उत्पन्न की।

46 वह पुकार कर कहने लगा, “मैं इसके रक्त का दोषी नहीं हूँ”।

47 इस पर सब लोग उसकी ओर देखने लगा और बोले, “तुमहारे कहने का अभिप्राय क्या है?”

48 उसने उन में खडा हो कर कहा, ” इस्राएलियों! आप लोगों की बुद्धि कहाँ है, जो आप जाँच और पूरी जानकारी के बिना इस्राएल की पुत्री को प्राणदण्ड देते हैं?

49 आप न्यायालय लौट जायें, क्योंकि इन्होंने इसके विरुद्ध झूठी गवाही दी है।”

50 इस पर लोग तुरन्त लौट गये और नेताओं ने दानिएल से कहा, “आइए, हमारे बीच बैठिए और हमें अपनी बात बताइए; क्योंकि ईश्वर ने आप को नेताओं-जैसा अधिकार प्रदान किया है”।

51 दानिएल ने उन से कहा, “इन दोनों को एक दूसरे से अलग कर दीजिए और मैं इन से पूछताछ करूँगा”।

52 जब दोनों को अलग कर दिया गया, तो दानिएल ने एक को बुला कर उस से कहा,

53 “अधर्म करते-करते तेरे बाल पक गये हैं। अब तुझे अपने पुराने पापों का दण्ड मिलने वाला है। तू निर्दोषों को दण्ड दे कर और दोषियों को निर्दोष ठहरा कर अन्यायपूर्वक विचार किया करता था, जब कि प्रभु ने कहा है- तुम निर्दोष और धर्मी को प्राणदण्ड नहीं दोंगे। अब यदि तूने इसे देखा

54 तो हमें बता कि तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को एक साथ देखा”। उसने उत्तर दिया, “बाबुल के नीचे”।

55 दानिएल ने कहा, “इतना बडा झूठ बोल कर तूने अपना सिर गँवा दिया है! ईश्वर के दूत को ईश्वर से यह आदेश मिल चुका है कि वत तुझे दो टुकड़े कर दे”।

56 दानिएल ने उसे ले जाने की आज्ञा दे कर दूसरे को बुला भेजा और उस से कहा,

57 “तू यूदा का नहीं, कनान की सन्तान है। सौदर्य ने तुझे पथभ्रष्ट किया आर वासना ने तरा हृदय दूषित कर दिया है। तुम लोग इस्राएल की पुत्रियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते थे और वे डर के मारे तुम्हारा अनुरोध स्वीकार करती थी। किन्तु यह यूदा की पुत्री है, जो तुम्हारे अधर्म के सामने नहीं झुकी है।

58 तो, मुझे बता- तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को साथ देखा?” उसने उत्तर दिया, “बलूत के नीचे”।

59 इस पर दानिएल ने कहा, “तूने भी इतना बडा झूठ बोलकर अपना जीवन गँवा दिया है! ईश्वर का दूत हाथ में तलवार लिये, प्रतीक्षा कर रहा है। वह तुझे दो-टुकडे कर देगा और तुम दोंनों का सर्वनाश करेगा।”

60 तब समस्त सभा ऊँचे स्वर से जयकार करते हुए ईश्वर की स्तुति करने लगी, जो अपने पर भरोसा रखने वालों की रक्षा करता है।

61 दानिएल ने उनके अपने शब्दों द्वारा दोनों नेताओं की गवाही असत्य प्रमाणित की थी, इसलिए लोग उन पर टूट पड़े और

62 उन्हौंने मूसा की संहिता के अनुसार उन दुष्टों को वह दण्ड दिया, जिसे वे अपने पड़ोसी को दिलाना चाहते थे और लोगों ने दोनों का वध कर डाला। इस प्रकार उस दिन एक निर्दोष महिला की जीवन-रक्षा हुई।


📙 सुसमाचार – योहन 8: 12-20

12 ईसा ने फिर लोगों से कहा, “संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, वह अन्धकार में भटकता नहीं रहेगा। उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।”

13 फरीसियों ने उन से कहा, “आप अपने विषय में साक्ष्य देते हैं। आपका साक्ष्य मान्य नहीं है।”

14 ईसा ने उत्तर दिया, “मैं अपने विषय में साक्ष्य देता हूँ। फिर भी मेरा साक्ष्य मान्य है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया और कहाँ जा रहा हूँ।

15 तुम मनुष्य की दृष्टि से न्याय करते हो।

16 मैं किसी का न्याय नहीं करता और यदि न्याय भी करूँ, तो मेरा निर्णय सही होगा; क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ। जिसने मुझे भेजा, वह मेरे साथ है।

17 तुम लोगों की संहिता में लिखा है कि दो व्यक्तियों का साक्ष्य मान्य है।

18 मैं अपने विषय में साक्ष्य देता हूँ और पिता भी, जिसने मुझे भेजा, मेरे विषय में साक्ष्य देता है”

19 इस पर उन्होंने ईसा से कहा, “कहाँ है आपका वह पिता?” उन्होंने उत्तर दिया, “तुम लोग न तो मुझे जानते हो और न मेरे पिता को। यदि तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जान जाते।”

20 ईसा ने मंदिर में शिक्षा देते हुए यह सब खजाने के पास कहा। किसी ने उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया, क्योंकि तब तक उनका समय नहीं आया था।