अठारहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत काजेतान / संत सिस्तुस और साथी


📒पहला पाठ- गणना 20: 1-13

1 इस्राएलियों का सारा समुदाय, पहले महीने, सिन नामक मरूभूमि पहुँचा और कुछ समय तक कादेश में रहा। वहाँ मिरयम की मृत्यु हो गयी और वह दफ़नायी गयी।
2 लोगों को पानी नहीं मिल रहा था, इसलिए वे एकत्र हो कर मूसा और हारून का विरोध करने लगे।
3 उन्होंने यह कहते हुए मूसा से शिकायत की, ”ओह! यदि हम अपने भाई-बन्धुओं के साथ ही प्रभु के हाथ मर गये होते!
4 क्या आप इसलिए प्रभु का समुदाय इस मरूभूमि में ले आये कि हम और हमारे पशु यहाँ मर जायें?
5 आप हमें मिस्र से निकाल कर इस अशुभ स्थान में क्यों ले आये, जहाँ न तो अनाज मिलता है, न अंजीर, न अंगूर और न अनार? यहाँ तो पीने का पानी तक नहीं मिलता!”
6 मूसा और हारून सभा को छोड़ कर दर्शन-कक्ष के द्वार पर आये। वे मुँह के बल गिर पड़े और उन्हें प्रभु की महिमा दिखाई दी।
7 प्रभु ने मूसा से यह कहा,
8 ”डण्डा ले लो और अपने भाई हारून के साथ समुदाय को एकत्र करो। तुम लोगों के सामने चट्टान को यह आदेश दोगे – हमें अपना पानी दो!’ इस प्रकार तुम चट्टान से पानी निकालोगे और तुम लोगों और पशुओं को पीने के लिए पानी दोगे।”
9 मूसा ने तम्बू से डण्डा ले लिया, जैसा कि प्रभु ने उसे आदेश दिया था।
10 मूसा और हारून ने चट्टान के सामने लोगों को एकत्र किया और उन से कहा, ”विद्रोहियो ! सुनो। क्या हम तुम लोगों के लिए इस चट्टान से पानी निकालें?”
11 मूसा ने हाथ उठा कर दो बार चट्टान पर डण्डा मारा और चट्टान से पानी की धारा फूट निकली। इस प्रकार लोगों और पशुओं को पीने के लिए पानी मिला।
12 इसके बाद प्रभु ने मूसा और हारून से कहा, ”तुमने मुझ में विश्वास नहीं किया और इस्राएलियों की दृष्टि में मेरी पवित्रता को बनाये नहीं रखा ; इसलिए तुम इस समुदाय को उस देश नहीं पहुँचाओगे, जिसे मैं उन्हें दे दूँगा।”
13 यह मरीबा का पानी है, जहाँ इस्राएलियों ने प्रभु की शिकायत की और प्रभु ने उनके सामने अपनी पवित्रता प्रकट की।


📙सुसमाचार – मत्ती 16: 13-23

13 ईसा ने कैसरिया फ़िलिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, “मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?” 

14 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई”। 

15 इस पर ईसा ने कहा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?”

16 सिमोन पेत्रुस ने उत्तर दिया, “आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं”। 

17 इस पर ईसा ने उस से कहा, “सिमोन, योनस के पुत्र! तुम धन्य हो, क्योंंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है। 

18 मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे। 

19 मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजियाँ प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।” 

20 इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ। 

21 उस समय से ईसा अपने शिष्यों को यह समझाने लगे कि मुझे येरूसालेम जाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दु:ख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा।  

22 पेत्रुस ईसा को अलग ले गया और उन्हें यह कहते हुए फटकारने लगा, “ईश्वर ऐसा न करे। प्रभु! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी।” 

23 इस पर ईसा ने मुड़ कर, पेत्रुस से कहा, “हट जाओ, शैतान! तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहे हो। तुम ईश्वर की बातें नहीं,  बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।”