चौदहवाँ सामान्य सप्ताह
आज के संत: संत हेसपेरूस और जोय
📙पहला पाठ- उत्पत्ति 32: 23-33
23 याकूब उसी रात को उठा और अपनी दो पत्नियों, दो दासियों और ग्यारह पुत्रों के साथ यब्बोक नामक नदी के उस पार गया।
24 वह उन्हें और अपनी सारी सम्पत्ति नदी के उस पार ले गया और
25 इस पार अकेला ही रह गया। एक पुरुष भोर तक उसके साथ कुश्ती लड़ता रहा।
26 जब उसने देखा कि वह याकूब को पछाड़ नहीं सका, तो उसने उसकी जाँघ की नस पर प्रहार किया और लड़ते-लड़ते याकूब की जाँघ का जोड़ उखड़ गया।
27 उसने कहा, ”मुझे जाने दो, क्योंकि भोर हो गया है”। याकूब ने उत्तर दिया, ”जब तक तुम मुझे आशीर्वाद नहीं दोगे, तब तक मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा”।
28 उसने पूछा, ”तुम्हारा नाम क्या है?” उसने उत्तर दिया, ”मेरा नाम याकूब है”।
29 इस पर उसने कहा, ”अब से तुम याकूब नहीं, बल्कि इस्राएल कहलाओगे; क्योंकि तुम ईश्वर और मनुष्यों के साथ लड़ कर विजयी हो गये हो”
30 तब याकूब ने पूछा, ”मुझे अपना नाम बता दो”। उसने उत्तर दिया ”तुम मेरा नाम क्यों जानना चाहते हो?”
31 और उसने वहाँ याकूब को आशीर्वाद दिया। याकूब ने उस स्थान को नाम ‘पनुएल’ रखा, क्योंकि उसने यह कहा, ”ईश्वर को आमने-सामने देखने पर भी मैं जीवित रह गया”।
32 जब उसने पनुएल पार किया, तो सूर्य उग रहा था। उस समय से जाँघ का जोड़ उखड़ जाने के कारण वह लँगड़ाता रहा।
33 इस कारण इस्राएली आज तक जाँघ की नस नहीं खाते, क्योंकि उस मनुष्य ने याकूब की उस नस पर प्रहार किया था।
📒सुसमाचार – मत्ती 9: 32-38
32 वे बाहर निकल ही रहे थे कि कुछ लोग एक गूँगे अपदूतग्रस्त मनुष्य को ईसा के पास ले आये।
33 ईसा ने अपदूत को निकाला और वह गूँगा बोलने लगा। लोग अचम्भे में पड़ कर बोल उठे, “इस्राएल में ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा गया है”।
34 परन्तु फ़रीसी कहते थे, “यह नरकदूतों के नायक की सहायता से अपदूतों को निकालता है”।
35 ईसा सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते, हर तरह की बीमारी और दुर्बलता दूर करते हुए, सब
नगरों और गाँवों में घूमते थे।
36 लोगों को देख कर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके-माँदे पड़े हुए थे।
37 उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं।
38 इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।”